यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः

शिव शर्मा
मनु स्मृति के श्लोक की एक पंक्ति है – जिस घर में स्त्री की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। ? पूजा यानी सत्कार। देवता का अर्थ है सुख समृद्धि, शांति, बरकत आदि। तो जहां नारी का सत्कार होता है, उस घर में सर्व मंगल , सर्व सुख विद्यमान रहते हैं।
अब समझें कि स्त्री की पूजा क्या है ? स्त्री का अर्थ देह नहीं है ; देह की पूजा के लिये नहीं कहा गया है। गीता में श्रीकृष्ण ने दसवें अध्याय के 34 वें श्लोक में कहा है कि नारी यानी ईश्वर की ये सात विभूतियां अथवा गुण – कीर्ति, श्री (लक्ष्मी), वाक् (मृदुल वाधी), स्मृति ( मै देह नहीं हूं, यह याद रखना), मेधा या बुद्धि, धृति या धैर्य तथा क्षमा। तो नारी के सत्कार का मतलब है इन गुणों का निर्वाह करना। जिस घर में परिवार के सदस्य इन गुणों का पालन करते हैं, वहां देवताओं के निवास जैसा आनंद हो जाता है।
ये गुण स्त्री की शोभा बढाते हैं ; इसलिए मनु महाराज ने ऐसा श्लोक लिख दिया। गृहस्थी की शेभा स्त्री, धर की मर्यादा स्त्री, कुल का गौरव स्त्री, सृजन स्त्री, बरकत स्त्री, रसोई की शान स्त्री। वह केवल प्रजनन नहीं है, प्रकृति की सम्पूर्णता है। प्रकृति ही ब्रह्म की अपरा (सम्पूर्ण क्रिया) शक्ति है। इालिए स्त्रीत्व में नारीत्व में जीवन के वैभव की सम्पूर्णता का सृजन सम्भव है। . तो इसीलिए नारी का सम्मान होना ही चाहिये। वह वस्तुगत देह मात्र नहीं, ईश्वरीय विभूतियों का प्रतिरूप भी है।
उधर भगवान शिव को भी अर्ध नारीश्वर कहा गया है – आधी नारी। पुरुष के क्रोमोसोम मे एक एक्स (नारी) ओर एक वाई (नर) जीन होती है। इसलिए महादेव अर्धनारीश्वर हैं। उनका स्त्री रूप देवी पार्वती है। तो महादेव के अर्धांग का सत्कार करने से ‘मंगल भवन अमंगल हारि’ जैसा आनंद हो जाता है। स्त्री के क्रोमोसोम में दानो एक्स जीन हैं। यानी केवल स्त्री।इस कारण वह पूणतर्ः स्त्री है। स्वयं में सम्पूर्ण है। ..परमहंस रामकृष्ण ने स्त्री ( स्वयं की पत्नी शरदा देवी) की षोङश पूजा की थी।.. उन में 16 मातृका शक्तियों का आह्वान किया था। तब शारदा मणि ही मां काली का साक्षात प्रतिरूप् ‘शारदा माँ’ हो गईं। आनंदमयी मां ने भी अपने पति से खुद की ऐसी ही पूजा कराई थी। इस की गहराई में उन विभूतियों के निर्वाह का संकल्प है जो गीता में श्रीकृष्ण ने बताई हैं।
मनु महाराज द्वारा लिखा गया पूरा ष्लोक है –
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः।
यत्रै तासतु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। – जहां नारी का सम्मान नहीं होता, उस घर में किये गये सारे शुभ कार्य विफल रह जाते हैं।

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