तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा पार्ट 3

j k garg
अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास का दण्ड मिला । सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने के लिये क्रष्ण मन्दिर जाना पड़ा । 1930 में सुभाष कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। वे जब कलकत्ता महापालिका के प्रमुखख अधिकारी बने तो उन्होंने कलकत्ता के रास्तों का अंग्रेजी नाम हटाकर भारतीय नाम पर कर दिया |1934 ई. में सुभाष अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे | उस समय उन्हें अपनी पुस्तक टाइप करने के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी | उन्हें एमिली शेंकल नाम की एक टाइपिस्ट महिला मिली | उन्होंने से सन् 1942 में बाढ़ गस्टिन नामक स्थान पर हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार एमिली शेंकल से विवाह किया। एमिली शेंकल से उनको पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम अनीता रक्खा | सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। 1938 में हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया । इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। । 3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लाक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था | समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने ‘युवक-दल’ की स्थापना की |

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। उन्होंने भारतवासियों को “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा दिया था जो आज भी हमारे मन मस्तिष्क में गूंज रहा है |

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