अजमेर में जाने माने पुराने बुद्धिजीवियों में षुमार जनाब शेख कमर का गत दिवस इंतकाल हो गया। वे धीर गंभीर, संजीदा, मृदु भाषी व खुले दिमाग के थे और जमात में हर जरूरतमंद की मदद को तत्पर रहते थे। उन्हें लिखने का बहुत शौक था। तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाषित हुए थे। आज के दौर में तो मुस्लिम समुदाय के अनेक पत्रकार साथी प्रिंट व इलैक्टोनिक मीडिया में हैं, मगर सत्तर अस्सी के दशक में गिनती के ही मुस्लिम पत्रकार थे। मेरा उनसे वास्ता 1983 में हुआ। वह मेरा पत्रकारिता का आरंभिक दौर था। वे मेरे पत्रकारिता के प्राथमिक गुरू श्री सतीश षर्मा के बहुत अच्छे दोस्त थे और दैनिक आधुनिक राजस्थान आया करते थे। वहीं उनसे कई मुद्दों पर गुफ्तगू हुआ करती थी। ज्वलंत विषयों पर खूब चर्चा किया करते थे। देश, राज्य व अजमेर की राजनीति की उन्हें गहरी समझ थी। सामाजिक लिहाज से भले की मुस्लिम नेता थे मगर धर्म निरपेक्षता के जबरदस्त पैरोकार थे, इस कारण हिंदुओं से बहुत घुले मिले थे और उनके अनेक हिंदू दोस्त थे। अल्पसंख्यकों में तालीम की कमी को लेकर बहुत चिंतित रहा करते थे। दरगाह शरीफ व मुस्लिम समुदाय की रसूमात के बारे में बहुत सारी जानकारियां मुझे उनसे ही हासिल हुईं जो आज भी मुझे लेखनी में काम आती हैं। उन्होंने तब दैनिक आधुनिक राजस्थान का उर्स विशेषांक प्रकाशित करवाने में अहम भूमिका निभाई थी।
वे उस जमाने में कांग्रेस के जाने पहचाने चेहरों में शामिल थे। समाज में सक्रियता के चलते वे अंदरकोट पंचायत के सदर भी रहे। मौजूदा दौर में उन जैसी शख्सियत के व्यक्ति बहुत कम हैं। उनकी कमी न केवल अंदरकोट वासियों को अपितु पूरे अजमेर को खलती रहेगी। वे कांग्रेस के युवा नेता एस एम अकबर के ताया थे। उर्जावान अकबर उन्हीं के नक्शे कदम पर कांग्रेस में सक्रिय भूमिका में हैं और दरगाह इलाके के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता के रूप जाने जाते हैं।
आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा कि मैने सूझ बूझ वाला
ऐसा एक मित्र खो दिया जिसका कोई सानी नहीं। अजमेर में दूसरे शेख कमर मिलना नामुमकिन हैं। जनाब शेख कमर की याद सदा कायम रहेगी। उनको मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।