जोशी पत्रकारिता व जनसंचार विश्वविद्यालय विधेयक अवैध व गैरकानूनी, सरकार इसे वापस ले-देवनानी

प्रो. वासुदेव देवनानी
अजमेर, 22 मार्च। पूर्व शिक्षा मंत्री व अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी ने कहा है कि हरिदेव जोशी पत्रकारिता व जनसंचार विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक ना केवल अवैध व गैरकानूनी है, बल्कि सरकार की मनमानी, नादिरशाही और तानाशाही का प्रमाण है, जिसे सरकार को वापस लेना चाहिए। सरकार की मंशा केवल वामपंथी विचारधारा और राजीव गांधी स्टडी सर्कल के लोगों को सपोर्ट और भर्ती करने की है। यदि यह विधेयक वापस नहीं लिया जाता है, तो यह प्रदेश की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने वाला होगा।
देवनानी ने मंगलवार को इस विधेयक पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा, अनेक वक्ताओं ने भी अपने विचारों से यह स्पष्ट कर दिया है कि यह विधेयक अवैध व गैरकानूनी है। यह विधेयक यूजीसी एक्ट-2010 व 2018 के खिलाफ है। कोई भी सरकार यदि यूजीसी के नियमों को अपनाती है, तो उसके लिए इन नियमों की शत-प्रतिशत पालना करना जरूरी होता है। कुलपति पद की नियुक्ति के लिए प्रोफेसर के पद पर दस वर्ष का अनुभव होना जरूरी है, लेकिन इस विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति के लिए सरकार पढ़ाई-लिखाई को भी जरूरी नहीं मानती है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में भी खूब पढ़े-लिखे लोगों की भरमार है, पत्रकारिता व जनसंचार में भी डाॅक्टरेट की उपाधिधारक बहुत से लोग हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि जो उनके इशारे पर काम करे, उनकी चाटुकारिता करे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस को गालियां दे, उसे ही कुलपति बनाया जाए।

क्या किसी भी अयोग्य को कुलपति बनाया जा सकता है?
देवनानी ने सवाल उठाया कि जिस तरह पत्रकारिता विश्वविद्यालय में ओम थानवी को अयोग्य होने के बावजूद कुलपति बनाया गया, तो क्या बीस साल वकालत करने वाले वकील या उसके मुंशी को विधि विश्वविद्यालय, कृषि का अनुभव रखने वाले को कृषि विश्वविद्यालय और किसी टेक्नोक्रेट को टेक्निकल विश्वविद्यालय में कुलपति क्यों नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कुलपति की नियुक्ति करने में सरकार के लिए उच्च शिक्षा अध्ययन का कोई महत्व नहीं है। केवल वामपंथी विचारधारा वाले लोगों और राजीव गांधी स्टडी सर्कल के लोगों को भर्ती करने की योजना बनाई जा रही है। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि आखिर हम राजस्थान में क्या करना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पालना राजस्थान में क्यों नहीं
देवनानी ने कहा कि जिस तरह यूजीसी के नियमों का पालन करना सभी सरकारों के लिए जरूरी होता है, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी पूरे देश में मान्य होते हैं। हाल ही 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय आया, जिसके तहत सरदार पटेल विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति की नियुक्ति अवैध घोषित हुई है। उन्होंने सवाल किया कि इस निर्णय को राजस्थान में भी लागू क्यों नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा क्यों नहीं करना चाहती है सरकार
उन्होंने कि जिस हरिदेव जोशी पत्रकारिता व जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति की योग्यता के बारे में यह संशोधन विधेयक लाया गया है, उसके बारे में राजस्थान हाईकोर्ट में रिट विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। लेकिन सरकार को तीन सप्ताह का भी धैर्य नहीं है। सरकार ना तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की पालना चाहती है और ना ही हाईकोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करना चाहती है। केवल तानाशाही और नादिरशाही अपना कर मनमानी करना चाहती है।

भर्ती प्रक्रिया पर कुलाधिपति लगा चुके हैं रोक
देवनानी ने कहा कि इसी विश्वविद्यालय में नियमों व मापदंडों को दरकिनार कर शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए। रोस्टर की आपत्ति निस्तारित नहीं की गई और यूजीसी योग्यता बदलकर विज्ञापन जारी कर दिया गया। इस संबंध में जब उन्होंने कुलाधिपति व राज्यपाल को पत्र लिखा, तो राज्यपाल ने उनकी ही शिकायत का हवाला देते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता अलग विषय और शिक्षा अलग विषय है। इन हालात को देखते हुए वे पुरजोर मांग करते हैं कि सरकार को यह संशोधन विधेयक वापस लेना चाहिए।

कुलपति का कार्यकाल पांच नहीं, तीन वर्ष ही हो
‘‘राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जोधपुर संशोधन विधेयक-2022’’ पर बोलते हुए देवनानी ने कहा कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, जोधपुर प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है, जिसके आगे राष्ट्रीय लगता है। इस विधि विश्वविद्यालय से कानून निर्माता, कानून विशेषज्ञ इत्यादि पूरे देश को तैयार करके दिए हैं। यह विश्वविद्यालय में श्रेष्ठ कुलपति, नियमित फैकल्टी एवं उत्तम प्रकार की व्यवस्थाओं के चलते ही यह संभव हो सका है। वर्तमान में विश्वविद्यालय में एक भी फैकल्टी नियमित नहीं होना निश्चित ही दुखी करने वाली बात है। प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपति का कार्यकाल तीन साल रहता है लेकिन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, जोधपुर के कुलपति की अवधि पांच साल होना कहीं न कहीं स्वच्छ परंपरा के खिलाफ ही है। ऊपर से कुलपति का कार्यकाल दो बार करने पर विचार करना सरासर गलत प्रतीत होता है। सरकार को संशोधन ही लाना था तो इस विश्वविद्यालय में कुलपति के कार्यकाल की अवधि पांच के बजाए तीन साल ही करने का लाया जाता तो श्रेष्ठ होता। विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार आईएएस और आरएएस में से ही होगा, यह संशोधन करना भी उचित नहीं है। इस दौरान देवनानी ने संशोधन विधेयक को छह माह जनमत के लिए प्रसारित करने की मांग रखी।
राजकीय विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारे सरकार
सौरभ विश्वविद्यालय हिण्डौन सिटी (करौली), विधेयक-2022 एवं ड्यून्स विश्वविद्यालय, जोधपुर विधेयक 2022 पर बोलते हुए देवनानी ने कहा कि निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता देने से पहले राजकीय विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारना आवश्यक है। राजकीय विश्वविद्यालयों की स्थिति नहीं सुधरने के चलते लोग परेशान होकर निजी विश्वविद्यालयों की तरफ भागते हैं। अनेक बार फर्जी विश्वविद्यालयों के चक्कर में फंस जाते हैं और फर्जी डिग्रियां लेकर बैठ जाते हैं। जब तक मालूम होता है, तब तक बहुत देर हो जाती है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में शिक्षा का विस्तार करने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में निजी विश्वविद्यालय अधिनियम लाने का मुद्धा आया था, जिसके परिणामस्वरूप आज 52 निजी विश्वविद्यालय राज्य में संचालित है। राजस्थान निजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2005 का अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि पहले सब निजी विश्वविद्यालयों में विजिटर की व्यवस्था थी, जिसके चलते विजिटर के रूप में निजी विश्वविद्यालय का मुखिया राज्यपाल होता था। जिसका काम विश्वविद्यालय के दस्तावेजों की जांच, विश्वविद्यालय पर नियंत्रण, उसके दीक्षांत समारोह में शामिल इत्यादि काम था, लेकिन विजिटर का स्थान कब धीरे-धीरे चैयरपर्सन ने ले लिया, पता ही नहीं पड़ा। चैयरपर्सन की नियुक्ति सरकार की सहमति से विश्वविद्यालय ही करेगा, लेकिन ऐसा होने से निजी विश्वविद्यालय मनमानी करने लगे और उन पर से नियंत्रण धीरे-धीरे हटता चला गया। आज स्थिति यह हो गई है कि राज्यपाल के पास अब कोई पाॅवर ही नहीं रह गए हैं कि वे किसी निजी विश्वविद्यालय से कोई कागज मंगाकर चैक कर सकें। प्रवेश की प्रक्रिया, सीटों की संख्या, फीस इत्यादि को लेकर निजी विश्वविद्यालय अपनी मर्जी से तय कर रहे हैं। इन सब स्थितियों को देखते हुए नए निजी विश्वविद्यालयों को स्वीकृति देने के बजाए उन पर और अधिक नियंत्रण करने पर विचार होना चाहिए। देवनानी ने दोनों बिलों को 6 माह जनमत के लिए प्रसारित करने का आग्रह किया। देवनानी ने कहा कि उपरोक्त दोनों विश्वविद्यालयों की अच्छी तरह जांच कर ली जाए अन्यथा गुरूकुल विश्वविद्यालय की तरह कहीं वापिस न लेना पड़े।

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