भर्ती परीक्षाओं में संगठित गिरोह सक्रिय, परीक्षा की विश्वसनीयता कैसे संभव है-देवनानी

प्रो. वासुदेव देवनानी
अजमेर, 24 मार्च। पूर्व शिक्षा मंत्री व अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी ने कहा है कि पिछल तीन साल में हुई 15 बड़ी भर्ती परीक्षाओं में से एक भी बेदाग नहीं रही। परीक्षाओं में गड़बड़ी और पेपर लीक कराने वाले गिरोह पनप गए हैं। संगठित गिरोह डमी अभ्यर्थी परीक्षा में बैठाते हैं और भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने के लिए युवाओं को गुमराह करते हुए उन्हें फर्जी डिग्रियां बांट देते हैं। यह सारा खेल राजनीतिक सरपरस्ती में होता है और करोड़ों रूपए का लेन-देन होता है। ऐसे में परीक्षाओं की विश्वसनीयता बनाए रखना कैसे संभव हो सकता है।
विधानसभा में गुरूवार को राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम ) संशोधन विधेयक 2022 पर बोलते हुए देवनानी ने कहा कि प्रदेश में लाखों विद्यार्थियों के सपनों के साथ अन्याय हुआ है। पिछले तीन सालों में आरएएस परीक्षा, पटवारी परीक्षा 2021, कांस्टेबल भर्ती 2019, एएसआई 2021, रीट परीक्षा सहित पन्द्रह बड़ी भर्तियां बेदाग रही हैं। जो हाल इन परीक्षाओं का हुआ, उससे तो प्रदेशवासियों का सरकार पर से विश्वास ही उठ गया है। प्रदेश में एक सर्वे हुआ, जिसमें सरकार संतुष्ट होने संबंधी प्रश्न पूछा गया, 87 प्रतिशत लोगों ने सरकार से संतुष्ट होने से मना कर दिया। 83 प्रतिशत लोगों ने नकल के जिम्मेदार सरकार के मंत्री और नेताओं को जिम्मेदार माना। इन सबके चलते यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार ने निश्चित ही विश्वसनीयता खोई है।
गिरोह के गिरोह पनपे, हौंसले हुए बुलंद
देवनानी ने कहा कि विधेयक लाना और उसकी क्रियान्विति नहीं होने का ही परिणाम है कि प्रदेश में परीक्षा पेपर लीक कराने वाले गिरोह के गिरोह पनपते चले गए। उचित कार्रवाई के अभाव में उनके हौंसले बुलंद हंै। ये सभी संगठित गिरोह हैं, जो डमी विद्यार्थियों को परीक्षाओं में बैठाने, फर्जी डिग्रियां बांटने इत्यादि अवैध कार्यों को धड़ल्ले से अंजाम दे रहे हैं। इन गिरोहों को राजनीति प्रभाव एवं संरक्षण प्राप्त है। अधिकांश कोचिंग संस्थान गिरोहों की खुली ‘दुकानंे’ हैं। परीक्षा से पूर्व ही सलेक्शन और नहीं होने पर पैसा वापस लौटाने की गारंटी देने वाले संस्थान हमारे आंखों के सामने हंै।
भ्रष्ट सरकार के मंत्री और अफसर ही लिप्त
सरकार पर जमकर बरसते हुए देवनानी ने कहा कि इस संशोधन विधेयक की क्रियान्विति की राज्य सरकार से तो उम्मीद नहीं की जा सकती। जिस भ्रष्ट सरकार के मंत्री और अफसर ही पेपर लीक प्रकरणों में लिप्त हों, तो उससे यह उम्मीद की भी कैसे जा सकती है। उन्होंने कहा कि भर्ती परीक्षाओं का जो हाल हुआ है और हो रहा है, उससे लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है और सरकार ने भी अपनी विश्वसनीयता खो दी है।
रीट पेपर लीक के असली गुनाहगार राजनीतिक रसूकात वाले
उन्होंने कहा कि रीट पेपर लीक के दोषी अपराधियों के खिलाफ तो विधेयक ले आए, लेकिन रिमोट स्थानों पर जानबूझकर परीक्षा केन्द्र बनाकर गड़बड़ियों को अंजाम देने वाले एवं पेपर में विसंगतियां कर मामले को न्यायायल में अटकाने के जिम्मेदारों के नामों पर यह विधेयक चुप है। पेपर लीक के असली गुनहगार राजनीतिक पहुंच रखने वाले एवं उनके रिश्तेदारों के कोचिंग संस्थान हैं, जिनके खिलाफ एक भी शब्द इस संशोधित विधेयक में नहीं आया है। एक पूर्व मंत्री के तीन-तीन रिश्तेदारों के आरएएस परीक्षा में 80-80 अंक आना और उनका सलेक्शन होना, क्या चर्चा का विषय नहीं है? नेताओं से संबंध रखने वाले कलाम संस्थान जैसे कोचिंग संस्थान पूरे प्रदेश में कुकुरमुत्तों की तरह फैले हुए हैं, जिन पर कोई भी हाथ नहीं डालना चाहता है।
राजीव स्टडी सर्कल के लोग जिम्मेदार, सीबीआई जांच कराएं सरकार
देवनानी ने कहाकि भर्ती परीक्षाओं में फीस से लाखों रूपए का लेन-देन होता है, लेकिन परीक्षाओं की कभी आॅडिट नहीं होती है। पेपर शिक्षा संकुल में रखवाए गए, उसकी जांच आज तक नहीं हुई। पेपरों की सुरक्षा एवं संचालन की जिम्मेदारी सरकारी अधिकारियों की बजाए प्राइवेट लोगों को दी गई। कलक्टर और एसपी के अधीन पेपर रखे जाने थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सारा मिलीभगत का खेल खेला गया और अरबो रूपए का लेन-देन हुआ है। प्रदेश के मंत्री सहित राजीव स्टडी सर्कल से जुडे़ लोगों की सीबीआई जांच सरकार को करानी चाहिए। अगर राज्य सरकार यह नहीं कराती है तो हम सत्ता में आने पर सीबीआई जांच कराएंगे और दोषियों को जेल में भेजकर रहेंगे।
यह प्रावधान तो पहले से है, उपयोग क्यों नहीं किया
देवनानी ने कहा कि आज सरकार जो बिल लाई है, वैसा बिल 1992 पहले से ही है। लेकिन उसके प्रावधान का उपयोग सरकार ने आज तक नहीं किया। एक के भी खिलाफ ना मुकदमा दर्ज हुआ और ना ही किसी को सजा मिली। ऊपर से यह विधेयक लाकर अब हम क्या हल निकाल लेंगे। विधेयक में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के बर्खास्त अध्यक्ष को बचाने के लिए अध्यक्ष का नाम जानबूझकर विलोपित किया है, जबकि निदेशक, प्रबंधक, सचिव इत्यादि अधिकारियों के नाम इसमें जोड़े गए।
विधेयक लाने से नहीं बुलडोजर चलाने से होता है भय व्याप्त
उन्होंने कहा कि विधेयक लाने से नहीं कठोरता से क्रियान्विति होने से काम होता है। राजस्थान सरकार को अगर करना ही था तो उत्तरप्रदेश सरकार की तरह विधेयक लाने की बजाए सीधे दोषी अधिकारी, नेताओं व अफसरों की सम्पत्ति जब्त करते। गिरोहों में भय व्याप्त करने के लिए गैंगस्टर आदेश जारी कर सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलाना उचित रहता।
ज्यूडिशियल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद बिल लाए सरकार
देवनानी ने कहा कि सरकार को ज्यूडिशियल कमीशन बनाने के साथ ज्यूडिशियल लोगों के साथ यह विधेयक बनाना था, लेकिन उसने ऐसा नहीं कर राजनीति व्यक्तियों के साथ मिलकर यह बनाया, जिसका कोई मतलब नहीं है। ऐसा विधेयक बेरोजगार युवाओं के आंखों में धूल झोंकेने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जल्दबाजी में विधेयक पारित करने के बजाए छह माह के लिए जनमत में प्रसारित कर ज्यूडिशियल कमीशन बनाकर और उसकी रिपोर्ट के आधार पर विधेयक लाने के बारे में सरकार विचार करे।

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