अशोकाष्टमी व्रत आज

राजेन्द्र गुप्ता
अशोकाष्टमी व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। अगर इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो अशोकाष्टमी व्रत और शुभ माना जाता है। इस दिन अशोक वृक्ष से जुड़ा पूजा का विधान बताया गया है। अशोक कलिका प्राशन की प्रधानता होती है जिसकी वजह से इसे अशोकाष्टमी कहा जाता है। अशोका अष्टमी व्रत के बारे में गरुड़ पुराण में भगवान ब्रह्मा जी द्वारा बताया गया है, इस वजह से भी इसकी बेहद ही विशिष्ठ महत्ता है।

अशोकाष्टमी व्रत विधि और महत्व –
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इस दिन अशोक वृक्ष की पूजा करने व्रत रखने के साथ-साथ जल में अशोक के आठ पत्ते डालकर जल को पीने से व्यक्ति के सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस दिन सुबह स्नान आदि करके अशोक वृक्ष का पूजन करें। फिर अशोक वृक्ष की आठ कलियां लें और निम्नलिखित मंत्र को पढ़ने के साथ-साथ जल पान करें :
त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव। पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।।
ऐसी मान्यताएं हैं कि अशोक के वृक्ष के बीचे बैठना बेहद अच्छा माना जाता है जीवन में शोक की स्थिति पैदा नहीं होती। साथ ही अशोक के पेड़ के नीचे बैठने से स्त्रियों को समस्त कष्टों से छुटकारा मिलता है। अशोक वृक्ष को एक औषधि के रूप में देखा जाता है। संस्कृत में इसे हेम पुष्प व ताम्रपपल्लव कहते हैं।

अशोकाष्टमी की व्रत कथा –
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एक बार ब्रह्माजी ने बताया कि चैत्र के महीने में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त अशोक अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन अशोक वृक्ष की आठ कलियों का जल पान जो भी व्यक्ति करता है उसे किसी भी प्रकार का दुख नहीं होता। अशोकाष्टमी के महत्व से संबंधित कहानियां आपको रामायण में भी देखने को मिल जाएगी, जिसमें रावण की लंका में सीता जी अक्सर अशोक के वृक्ष के नीचे ही बैठा करती थी और वहीं उन्हें हनुमान जी मिले थे। जिन्होंने सीता को राम का संदेश पहुंचाया था।

अशोकाष्टमी व्रत एवं पूजा विधि
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अशोका अष्टमी के दिन प्रात:काल उठ कर शुद्ध जल से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।

शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए।

शिवलिंग पर अशोक के पत्तों को चढ़ाना चाहिए।

अशोक वृक्ष पर जल अर्पित करना चाहिए।

कच्चे दूध में गंगाजल डाल कर इसे अशोक वृक्ष की जड़ में डालना चाहिए।

सूत अथवा लाल धागे को सात बार अशोक वृक्ष लपेटना चाहिए।

अशोक वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए।

कुमकुम अक्षत से वृक्ष पर लागाना चाहिए।

अशोक वृक्ष के समक्ष घी का चौमुखी दीपक जलाना चाहिए।

वृक्ष की धूप दीप से आरती करनी चाहिए।

वहीं बैठ कर रामायण के एक अध्याय का पाठ करना चाहिए।

अशोक वृक्ष पर थोड़ा सा मिष्ठान भी अर्पित करना चाहिए।

अशोकाष्टमी के दिन व्रत करने, अशोक वृक्ष की पूजा करने से दुखों क नाश होता है।

इस दिन पानी में अशोक के पत्ते डाल कर पीने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं।

अशोका अष्टमी का व्रत एवं पूजन करने से व्यक्ति के जीवन के दुख कलेश दूर होते हैं। कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।

गरुण पुराण में अशोका अष्टमी की महिमा
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“अशोककलिका ह्यष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ । चैत्रे मासि सिताष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः ॥ “ गरुण पुराण में भी अशोक वृक्ष के बारे में बहुत ही सुंदर वर्णन प्राप्त होता है। इसके अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो इस दिन अशोका अष्टमी का व्रत बहुत ही शुभ दायक होता है। इस दिन व्रत करने से सभी शोक दूर हो जाते हैं। अशोकाष्टमी व्रत के दिन अशोक की मञ्जरी की आठ कलियों का सेवन करने से सभी शोक दूर होते हैं। अशोक की मंजरियों का सेवन करते समय इस मंत्र का उचारण करना चाहिए – “त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव । पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु ।।”

अशोक का वास्तुशास्त्र में उपयोग
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अशोक का वृक्ष को एक बहुत ही शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर वृक्ष माना गया है। इस वृक्ष को यदि घर में उत्तर दिशा में लगाया जाए तो यह घर की नकारात्मकता को दूर कर देता है। घर में अगर किसी भी प्रकार का वास्तु दोष हो तो अशोक वृक्ष को लगाने से दोष दूर होता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा बहने लगती है। अशोक के वृक्ष को घर पर लगाने से सुख व समृद्धि का आगमन होता है। अशोक वृक्ष घर पर होने से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त होता है। स्त्रियों यदि अशोक वृक्ष की छाया में बैंठें तो उनकी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा को बल प्राप्त होता है। अशोक का पूजन करने से दांपत्य जीवन सुखद रहता है। इस प्रकार अशोकाष्टमी का न सिर्फ आध्यात्मिक स्वरुप में ही अपना महत्व नहीं रखता है, अपितु यह संपूर्ण स्वरुप में मानव जीवन को प्रभावित करने में भी सक्षम होता है। किसी भी वृक्ष के प्रति आदर भाव प्रकृति के प्रति हमारा सम्मान ही है। जो प्रकृति हमें जीवन प्रदान करती है यदि हम उसके प्रति समर्पण का भाव रख सकें तो मनुष्य जीवन के लिए यह प्रगति और शांति के मार्ग को ही प्रशस्त करने में सहायक होता है। अपनी आने वाली पिढ़ियों को हम इन संस्कारों द्वारा प्रकृति और मनुष्य के जीवन का संबंध समझा सकने में सफल होंगे और एक शुभ वातावरण दे सकते हैं।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076

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