पार्टी में लोगों को बनाए नहीं रखा जा रहा है, तो फिर किस बात का चिंतन हुआ

प्रेेम आनन्दकर, अजमेर।
👉अकड़ में क्या रखा है साहब। अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है। अनेक विद्वान कहते हैं कि जब समय बुरा चल रहा हो, तो झुककर ही चलना चाहिए। यदि बुरे समय में भी अकड़ रखी जाए, तो फिर अपना ही नुकसान होना तय है। कमोबेश यही हाल कांग्रेस का हो रहा है। कांग्रेस दिनों-दिन रसातल में जा रही है। हो सकता है, उदयपुर में हुए चार दिवसीय चिंतन शिविर पार्टी को फिर से जिंदा करने और संगठनात्मक ढांचा मजबूत बनाने के लिए अनेक मसलों पर चर्चा हुई हो, लेकिन शायद यह चर्चा नहीं हुई कि पार्टी में जान लाने के लिए आला नेतृत्व और नेताओं को झुक कर चलना चाहिए। अपने रूठों लोगों को मनाने के साथ उन्हें पार्टी में बनाए रखना चाहिए। जो लोग अब तक पार्टी छोड़कर चले गए, उनके लिए कुछ भी नहीं सोचना चाहिए, लेकिन ऐसे प्रयास करने चाहिए कि अब कोई भी नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर नहीं जाए। किंतु यहां तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा है। उदयपुर में हुए चिंतन को पलीता लगना शुरू हो गया है।

प्रेम आनंदकर
गुजरात में हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ दी है, तो पंजाब में कांग्रेस के पुराने नेता सुनील जाखड़ पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। प्रतापगढ़ जिले में डूंगरपुर के विधायक व युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश घोघरा ने विधायक पद से अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया है। हालांकि घोघरा वास्तव में विधायकी छोड़ना चाहते हैं, तो उन्हें इस्तीफा मुख्यमंत्री नहीं, विधानसभा अध्यक्ष को भेजना चाहिए था, लेकिन हो सकता है, उन्होंने सरकार और पार्टी के प्रति नाराजगी जताने के लिए इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेजा। कहते हैं कि ’’रस्सी जल जाती है, लेकिन बल नहीं जाता है।’’ ऐसा ही कुछ कांग्रेस में हो रहा है। किसी समय सबसे पुरानी और देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी अब महज दो राज्यों में सिमट कर रह गई है। इसी अकड़ के कारण मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य की कद्र नहीं की, तो वहां फिर से भाजपा सत्ता में आ गई और मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य कांग्रेस को अलविदा कर भाजपा में चले गए। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में खींचतान के चलते ना सरकार ढंग से चल पा रही है और ना ही संगठन। गोविंदसिंह डोटासरा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के कुछ दिन बाद ही पूरे प्रदेश में जिला इकाइयां भंग कर दी थीं, लेकिन अभी तक उनका पुनर्गठन नहीं कर पाए हैं। इसी प्रकार सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियां करने में तीन साल लगा दिए। अब भी कई संस्थाओं में राजनीतिक ताजपोशी होनी बाकी है। जबकि अगला चुनाव आने में महज डेढ़ साल रह गया है। ऐसे में यदि अब भी राजनीतिक नियुक्तियां कर दी जाती हैं, तो ताज पहनने वालों को काम करने का मौका ही नहीं मिलेगा और उनके माथे पर विफलता का सेहरा ही बंधेगा। सरकार अभी तक ब्यूरोक्रेसी के भरोसे चलती रही है और चल रही है, लेकिन यह तथ्य भी स्वीकार करना होगा कि ब्यूरोक्रेसी किसी की सगी नहीं होती है। यदि कांग्रेस सरकार अपने लोगों को राजनीतिक नियुक्तियां कर सत्ता में भागीदार बनाती हो, तो सकता है, वे बेहतर काम करते। पायलट की नाराजगी दूर करने के लिए अभी तक पार्टी स्तर पर कोई प्रयास नहीं हुए हैं। कहीं ऐसा नहीं हो कि पायलट भी कांग्रेस से किनारा कर जाएं। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को संगठन की कमान सौंपने का खासा विरोध हुआ था, लेकिन आला नेतृत्व ने किसी की नहीं सुनी। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्रसिंह को किनारे कर दिया गया। नतीजा सबके सामने है, कांग्रेस निपट गई। यदि कांग्रेस अमरेंद्र पर ही भरोसा करके चलती, तो उसकी पंजाब में यह हालत नहीं होती। कांग्रेस नेतृत्व के सामने पार्टी को संभालने के लिए अब भी समय है। यदि नेतृत्व नहीं चेता और सबको साथ लेकर चलने की नीति नहीं अपनाई, तो फिर कांग्रेस का भविष्य बचाए रखना मुश्किल होगा।

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