दिल में प्रभुता का निवास हो – यशस्विनी माताजी

श्री दिगंबर जैन मुनि संघ सेवा जागृति मंच के तत्वाधान में चल रहे प्रवचन कार्यक्रम के तहत यशस्विनी माताजी ने कहा कि जैसा मिला, इसके लिए कोई शिकायत न करें और अगर मनपसंद मिल गया तो गुमान न करें। हर घटना को प्रभु का प्रसाद मानें और उसकी रजा में राजी रहें जो जिंदगी के विषाद को भी प्रभु का प्रसाद मानकर चलता है, उसके लिए विषाद भी आशीर्वाद बन जाया करता है। प्रभु से इस बात की शिकायत न करो कि तुम्हें औरों से कम मिला है बल्कि इस बात के लिए धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें तुम्हारी पात्रता से ज्यादा दिया है।
माताजी ने कहा कि मनुष्य के पास तीन प्रकार की
उपलब्धियां होती हैं तन, मन और धन। अपना तन और धन भले बीवी बच्चों को दे देना पर अपना मन सिवाय प्रभु के और किसी को मत देना वरना तुम्हारा मन मानसरोवर नहीं बन सकता। दिल में प्रभु का वास होता है और दिमाग में शैतान का। इसलिए किसी भी कार्य को करने से पहले दिल की आवाज सुनने की आवश्यकता है। जो तन और धन की चिंता करे वह गृहसस्थ तथा जो मन और जीवन (समाधि) की चिंता करे वह संत।
प्रवचन में वनीषा जैन अनुपमा जैन सुबोध बड़जात्या सुनील पालीवाल आदि उपस्थित थे

सुनील जैन होकरा ने बताया कि आज प्रातकाल आदिनाथ भगवान का निर्वाण महोत्सव बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया और निर्वाण मोदक अर्पित किए गए आदिनाथ भगवान की पूजा एवं आरती माता जी के सानिध्य में की गई

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