संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि हमारा लक्ष्य निर्दोष बनने का है । उत्तराध्यन सूत्र के 31 वे अध्ययन में कुछ चीजें छोड़ने योग्य बताई गई है, जिन्हें जानकार उन्हें छोड़ दिया जाता है। पाप भी जीवन में छोड़ने योग्य है, हमें पापों को जानकर उन्हें छोड़ने का प्रयास करना है ।
आज हम पहले पाप में स्पर्श इंद्रिय बल प्राण की हिंसा कैसे होती है यह जानने का प्रयास करते हैं। जिस क्रिया द्वारा जीव के स्पर्श करने की शक्ति को बाधा पहुंचती हो, वह स्पर्शइंद्रिय बल प्राण हिंसा है। जैसे किसी गाय,कुत्ते, सूअर आदि पर गरम उबलते हुए तेल के छींटे डाल देना, उन पर तेजाब छीटक देना ।बहुत बार सुनने में आता है कि अमुक युवक ने अमुक युवती पर तेजाब फेंक दिया, तो ऐसा कार्य है जिससे दूसरों की स्पर्शइंद्रिय को पीड़ा होती हो, वह पर स्पर्शइंद्रिय बल प्राण हिंसा है। इसमें किसी को चिमटी भर देना, अंग छेदन कर देना जैसे ग्वाले, गडरिया, सूअर पालक अपने पशुधन की पहचान के लिए उनके कान आदि किसी अंग को काट लेते हैं ,यह भी एक प्रकार की हिंसा ही है ।घर ,मकान,गार्डन आदि को सजाने मैं या पूजन आदि के नाम पर वनस्पति का छेदन भेदन,वनस्पति काय के जीवो की स्पर्शइंद्रिय को बाधा पहुंचाना है। याद रखें पेट के चीरा एक डॉक्टर भी लगाता है, और पेट के चीरा एक डाकू भी लगाता है, मगर दोनों में से दंड का भागी कौन होगा? स्पष्ट है कि डाकू दंड का भागी होगा. क्योंकि उसकी भावना सामने वाले को नुकसान पहुंचाने की है ,मगर डॉक्टर की भावना तो सामने वाले को लाभ पहुंचाने की है।
स्वयं के शरीर को हानि पहुंचाना स्वयं के स्पर्शइंद्रिय बल प्राण की हिंसा होती है इसमें टैटू आदि खुदवा कर स्वयं के शरीर का छेदन करवाना, अपने शरीर को तेजाब पेट्रोल आदि डालकर जला डालना, आग लगा देना आदि इस प्रकार की समस्त क्रियाये जिसमें स्वयं की स्पर्शइंद्रिय को बाधा पहुंचती हो ।इसी के साथ व्यक्ति की सुखरोलीया वृत्ति, आलस और आराम तलब जीवन जीने की आदत, क्योंकि शरीर को ज्यादा साता देने से शरीर कमजोर होता है। ज्यादा A.C आदि के प्रयोग से शरीर का इम्यूनिटी पावर कमजोर होता है। आप विचार करें कि आपका लड़का ज्यादा मजबूत है ,या एक किसान का? किसान का,कारण साफ है कि वह प्राकृतिक जीवन में पला बढ़ा हुआ है इसलिए सहन करने का सामर्थ्य उसमें ज्यादा है। अतः स्व और पर दोनों की स्पर्शइंद्रिय बल प्राण की हिंसा से आप बचे, अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्य दर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया
पदम चंद जैन
* मनीष पाटनी,अजमेर*