आज दुनिया के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, जिसमें से ई-वेस्ट एक नई उभरती विकराल एवं विध्वंसक समस्या भी है। दुनिया में हर साल 3 से 5 करोड़ टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के मुताबिक भारत सालाना करीब 20 लाख टन ई-वेस्ट पैदा करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-वेस्ट उत्पादक देशों में 5वें स्थान पर है। ई-वेस्ट के निपटारे में भारत काफी पीछे है, जहां केवल 0.003 मीट्रिक टन का निपटारा ही किया जाता है। यूएन के मुताबिक, दुनिया के हर व्यक्ति ने साल 2021 में 7.6 किलो ई-वेस्ट डंप किया। भारत में हर साल लगभग 25 करोड़ मोबाइल ई-वेस्ट हो रहे हैं। ये आंकड़ा हर किसी को चौंकाता है एवं चिंता का बड़ा कारण बन रहा है, क्योंकि इनसे कैंसर और डीएनए डैमेज जैसी बीमारियों के साथ कृषि उत्पाद एवं पर्यावरण के सम्मुख गंभीर खतरा भी बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, ई-कचरे से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के सीधे संपर्क से स्वास्थ्य जोखिम हो सकता है।
दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की तेजी से बढ़ती खपत है। आज हम जिन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपनाते जा रहे हैं उनका जीवन काल छोटा होता है। इस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है। जैसे ही कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को फेंक दिया जाता है। इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों के मरम्मत और रिसायक्लिंग की सीमित व्यवस्था है या बहुत महंगी है। ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद खराब होता है लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं। साल 2021 में डेफ्ट यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में फोन बदलने का सबसे बड़ा कारण साफ्टवेयर का धीमा होना और बैटरी में गिरावट रहा। दूसरा बड़ा कारण, नये फोन के प्रति आकर्षण था। कंपनियों की मार्केटिंग और दोस्तों द्वारा हर साल फोन बदलने की आदतों से भी प्रभावित होकर भी लोग नया फोन ले लेते हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं होती। इस वजह से भी ई-कचरे में इजाफा हो रहा है। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक अगर साल 2019 में उत्पादित कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसायकल कर लिया गया होता वो करीब 425,833 करोड़ रुपए का फायदा देता। यह आंकड़ा दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है।
यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ‘ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में दुनिया में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ था। अनुमान है कि साल 2030 तक इस वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में तकरीबन 38 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाएगी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह समस्या कितनी बड़ी है और आने वाले समय में यह और कितना बढ़ने वाली है। बात अगर दिल्ली की करें तो यहां हर साल 2 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है। हालांकि, इसे वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से हैंडल नहीं किया जा रहा है। इससे आग लगने जैसी कई जानलेवा घटनाएं हो चुकी हैं, जो दिल्ली के निवासियों और कूड़ा उठाने वालों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इसी क्रम में अभी हाल ही में दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि दिल्ली में भारत का पहला ई-कचरा इको-पार्क खोला जायेगा। 20 एकड़ में बनने वाले इस पार्क में बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, लैपटॉप, चार्जर, मोबाइल और पीसी से अनूठे एवं दर्शनीय चीजों को निर्मित किया जायेगा। इसी कड़ी में कानपुर में ई-वेस्ट प्रबंधन का एक बेहतरीन मॉडल सामने आया है। यहां जयपुर के एक कलाकार ने ई-वेस्ट से 10 फीट लंबी मूर्ति बनाई है। इसे बनाने में 250 डेस्कटॉप और 200 मदरबोर्ड, केबल और ऐसी अनेक खराब इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का जिक्र किया था। उन्होंने लोगों से आह्वान किया था कि पर्यावरण को बचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक-कचरे का प्रभावी प्रबंधन करना होगा। गौरतलब है कि भारत में साल 2011 से ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे के प्रबंधन से जुड़ा नियम लागू है। बाद में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 लागू किया गया था। इस नियम के तहत पहली बार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माताओं को विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी के दायरे में लाया गया। नियम के अंतर्गत उत्पादकों को ई-कचरे के संग्रहण तथा आदान-प्रदान के लिये उत्तरदायी बनाया गया है और उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान भी किया गया है। अगर आप चाहते हैं कि ई-वेस्ट को कम किया जाए, तो इसके लिए जरूरी है कि चीजों की रिसाइक्लिंग की जाए। किसी पुराने मोबाइल या कंप्यूटर आदि को रिसाइकल किया जाए और इनका फिर से इस्तेमाल हो। कई लोग या कंपनियां अपने पुराने लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल को वेस्ट कर देते हैं, जो ई-वेस्ट के रूप में सामने आते हैं। लेकिन आप ऐसे में इसे किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं। इसके लिये लायंस क्लब इन्टरनेशनल-डिस्ट्रिक-321-ए ने अनूठी एवं अनुकरणीय पहल करते हुए ई-अवशेषों एवं वेस्ट को एकत्र कर रही है। अन्य जनसेवी संस्थाएं भी ऐसे सराहनीय उपक्रम कर रही है, आप ऐसे किसी एनजीओ या किसी छोटी कंपनी आदि को पुराने मोबाइल, लैपटॉप आदि दे सकते हैं। जरूरत तो इस बात की है कि आपको अपने पुराने मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि को तब तक इस्तेमाल करना चाहिए, जब तक यह संभव हो सके।
भारत सरकार ई-कचरे के निपटारे के लिए प्रबंधन नीति लाई थी, लेकिन वह कारगर नहीं साबित हुई और अब रिसाइकल इंसेंटिव के साथ नई नीति ला रही है। ताकि ई-निर्माण इकाइयां ई-वेस्ट का रिसाइकल करने और पर्यावरण बचाव के प्रति जवाबदेह हो सकें। मौजूदा समय देश में यह काम बड़े स्तर पर असंगठित क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जहां ई-वेस्ट का निपटारा गलत एवं अवैज्ञानिक तरीकों से किया जा रहा है। सरकार ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2022 अधिसूचित किया है, जो प्रत्येक विनिर्माता, उत्पादक, रिफर्बिसर, डिस्मैंटलर और ई-वेस्ट रिसाइकलर पर लागू होगा। ई-वेस्ट अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को लेकर केंद्र सरकार सख्त है और इसे लेकर केंद्र सरकार ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। दिशानिर्देशों के अनुसार अब जो भी ई-वेस्ट पैदा करेगा उन्हें उसे नष्ट करने की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। नए नियमों के तहत इस जिम्मेदारी को न उठाने वालों से सख्ती से निपटा भी जाएंगा, जिसमें उन्हें जुर्माना और जेल दोनों ही भुगतना करना पड़ सकता है। इसके अलावा ई-वेस्ट के दायरे को भी बढ़ा दिया गया है, जिसमें 21 वस्तुओं की जगह अब 106 वस्तुओं को शामिल किया गया है, जिसमें मोबाइल चार्जर से लेकर घरों में इस्तेमाल की जाने वाली सभी छोटी-बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल चीजें शामिल हैं।
प्रेषक
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
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