नाटक ने मिली दर्शको की तालियां और वाहवाही
मंच पर 30 कलाकारों ने अपने सशक्त व दमदार अभिनय से दर्शकों बांधे रखा
अजमेर, 29 अजमेर फेस्टिवल के तीसरे दिन सतगुरू इंटरनेशनल के सभागार में अपना थियेटर, आधुनिक नाट्यकला संस्थान्, आप-हम संस्था, कलाअंकुर, इंडियन लेडिज क्लब, न्यू आदर्श शिक्षा समिति, द टर्निग पॉईट स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में सतगुरू इंटरनेशनल स्कूल के सहयोग से चार दिवसीय नाट्य फेस्टिवल के द्वितीय दिन भीलवाड़ा की संस्था रसधार सांस्कृति संस्थान की ओर गोपाल आचार्य के निर्देशन में जटिल और अनसुलझी, अनगनित रंगो, ध्वनियों और बहुरंगी शेड्स में नाटक ‘‘भोपा भैरूनाथ’’ का मंचन किया गया। भोपा भैंरूनाथ, जटिल और अनसुलझी, अनगिनत रंगो, ध्वनियों और बहुरंगी शेड्स का नाटक रहा जिसमें 30 से अधिक कलाकारों ने अभिनय से बताया कि शहर से आया हुआ कंकू का पति बंशी और ससुराल के लोग बेवजह उससे नाखुश रहते हैं। पति-पत्नि की लड़ाई में बंशी वापस शहर और कंकू पीहर चली जाती है। बंशी का रवैया न केवल अपमानजनक होता है बल्कि उसे घर से बाहर कर देने की धौंस भी देता है। ससुराल का कोई भी सदस्य उससे ठीक से पेश नहीं आता। धीरे-धीरे कंकू के प्रति उसके पति, घर, परिवार व समाज का दुर्व्यवहार बढ़ता ही जाता है। बंशी, कंकु को प्रताड़ित कर बांज, डायन होने के आरोप भी लगाता है। अपमान से परेशान होकर कंकू मनोवैज्ञानिक विक्षोभ के अंधेरों में घिर जाती है। पंच फैसले के बाद उसे प्रचलित लोक विश्वास के अनुसार भैंरूनाथ के देवरे पर लाया जाता है। जहां पहुंचते ही वह अपनी तमाम मानसिक तनावों के साथ फूट पड़ती है। अभिव्यक्ति का असर कंकू को उसके खोए हुए आत्मविश्वास को लौटाने में मदद करता है और विचलित मन की कुंठाओं की गांठे खुलने पर वह सामान्य जीवन की तरफ लौटने बेखूबी मंच पर अभिनित किया। नाटक की मुख्य भूमिका कंकू अजमेर की बेहतरीन अदाकार डॉ. स्निग्धा योबी जॉर्ज ने अपने दमदार अभिनय से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया अन्य सभी कलाकारों के सशक्त अभिनय व संवाद अदायगी के प्रभाव से दर्शकों ने अभिनेताआंेे से सीधा जुड़ाव महसूस किया।
नाटक भोपा भैरूनाथ में मानवीय रिश्तों की जटिल संरचना को करीब से नही बल्कि देहाती समाज और उसमें शामिल स्त्री दुनिया की भावभूमि का स्पर्श बेखूबी देखने को मिला नाटक में राजस्थान के अंचल की भाषाई विशिष्टता, वेशभूषा, मुहावरे, रहनकृसहन एवं चरित्रों के आपसी व्यवहार को यथार्थ रूप में बनाए रखने में सफल रहा।
नाटक में सूत्रधार (नंद किशोर शर्मा), शंकर (अनिमेश आचार्य), गोकल बा (देवराज पुरोहित), छोगा (दुष्यंत हरित व्यास) संपत (हरि सिंह चौहान), सरिया (कुलदीप सिंह), नारायण (निष्काम राठी), बंसी उस्ताद (रवि ओझा), कंकू (डॉ. स्निग्धा यॉबी जॉर्ज) कंकू की मां (रेखा जैन), शनि महाराज (विभूति चौधरी), कजोड (अनुराग सिंह राठौड़), बंसी की मां (शिवांगी की माँ), जोधा (दिनेश कोठारी) भोपा (गोपाल आचार्य), पंच की भूमिका में देवराज, हरि सिंह, प्रभु प्रजापत, अंकित शाह, विभूति, हजूरिया के रूप में देवराज पुरोहित, ग्रामीणों के रूप में विभूति, अंकित, सुरेन्द्र, आशिष गौरव, रेखा, पूजा, शिवांगी, गरिमा पंचोली, भजन मंडली हितेश, कुलदीप, प्रभु प्रजापत, थे। नाटक में संगीत पं. शंभू प्रसाद पंवार ने दिया, मंच सज्जा दिनेश सोनी, ध्वनि संचालन रणजीत सिंह, प्रकाश व्यवस्था दीपक पारीक, वेशभूषा प्रभु व विभूति की रही। नाटक में सह निर्देशन रवि ओझा का रहा।
फेस्टिवल के प्रारंभ में दो दिन मंचित नाटकों के बारें मंे जानकारी दी गई। अंत में सभी कलाकारों का सम्मान व वरिष्ठ नाट्य निर्देशक गोपाल आचार्य को माला पहनाकर आयोजकों की ओर स्मृति चिन्ह भेट कर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर राजा डी थारानी, सुनील दत्त जैन, कंवल प्रकाश किशनानी, डॉ. हरबस दुआ, गिरधर तेजवानी, एस.पी.मित्तल, सुरेन्द्र चतुर्वेदी, सोमरत्न आर्य, रमेश अग्रवाल, वरिष्ठ रंगकर्मी लाखन सिंह, यॉबी जॉर्ज, निरंजन कुमार, राजेन्द्र सिंह, उज्जवल मित्रा, विष्णु अवतार भार्गव, नरेन्द्र भारद्वाज, विकल्प सिंह, हरीश बेरी, अरविंद, रतन, अंशुल, शैलूष, मुकेश, सतीश कुमार, जुम्मा खान, तरूण, मोहित, शब्बीर, तरूण कुमार, गिरराज, गोपाल बंजारा, कृष्ण गोपाल पाराशर, मृदुल भारद्धाज, सुचिर भारद्धाज, प्रीति तोषनीवाल, रास बिहारी गौड़, अनंत भटनागर, पवित्र कोठारी, श्रीमती श्वेता आनंद, हमेन्त भाटी, अनिल जैन, प्रहलाद पारीक,,, प्रशान्त अग्रवाल, पुष्पा लोढ़ा, डॉ. लाल थदानी, नरेश अगवानी, मेघा, पद्मा, विमलेश, भामिनी, आदि समाजसेवी व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
संस्था के निरंजन कुमार ने बताया अजमेर फेस्टिवल दर्शकों की उत्सुकता बढ़ती देखी गयी, निश्चित रूप से नाट्कला को अजमेर में स्थापित करने उपयोगी रहेगा।
कल शनिवार को मंचित नाटक
30 मार्च अजमेर फेस्टिवल के अंतिम दिन बीकानेर के विख्यात नाट्य निर्देशक सुदेश व्यास द्वारा दुलारी बाई का मंचन किया जायेगा जिसमें स्त्री चेतना और सामाजिक ताने-बाने पर आधारित यह नाटक अपनी गहरी भावनात्मकता और सशक्त कथानक से दर्शकों के मन में अमिट छाप छोड़ेगा।