अजमेर। गुरूवर हरप्रसाद मिश्रा उवैसी के गद्दीनशीन गुरू रामदत्त मिश्राजी का बुधवार की सुबह इंतकाल हो गया। उवेशिया सिलसिले के 20वें गुरू के रूप में स्थापित हुए गुरू रामदत्त मिश्रा ने डूमाडा स्थित हजरत हरप्रसाद उवैसी की दरगाह से अमन, चैन और सर्वधर्म भाईचारे का पैगाम फेलाकर अजमेर के नाम को नई खुशबु दी। सभी धर्मो के लोगों की आस्था का केन्द्र बनी बाबा बादामशाह की मजार से रूहानियत का पैगाम देश के कोने कोने में पहुंचाने वाले पूर्व गुरूवर बाबा हरप्रसाद मिश्राजी के बेटे गुरू रामदत्त ने उनके इंतकाल के बाद बाबा बादामशाह की रूहानियत और इंसानियत जन-जन में फैलाने का जो बीड़ा उठाया उसे काफी हदतक अपने अंजाम तक पहुंचाने में वे कामयाब भी हुए। पिछले कुछ दिनो से उनकी तबीयत नासाज़ थी। बुधवार को उन्होने इस दुनिया को अलविदा कहते हुए उस प्यारे पैंगबर की पनाह में पनाह पायी। इस खबर से उनके अनुयायी भक्तों में ग़म की लहर छा गयी और हर कदम गुरूवर हरप्रसाद उवैसी की दरगाह की ओर बढ़ चला। सभी ने नम आँखो से अपने गुरू को सुपुर्देख़ाक होते देखा।
गुरू रामदत्त मिश्राजी जीवन भर लोगों को एक ही बात समझाते रहे कि इस धरती पर कोई जात कोई धर्म नही है, है तो सिर्फ इंसानियत। उनका मानना था कि इंसान को पहले इंसान होना जरूरी है न कि हिन्दू मुसलमान क्योंकि रूहानियत वो ताकत है जो इंसान को ईश्वर से मिला देती है। उवैसीया सिलसिले से देशभर में 5 दरगाह हैं जहां कोई धर्म की बंदीश नही है। इंसानियत की खुशबु को पूरी दुनिया में फैलाने वाले मिश्राजी को नमन।