‘सबका लाल खून तो फर्क उनमें है क्या‘

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अजमेर/ नाट्यवृंद थियेटर एकेडमी, अजमेर फोरम एवं इण्डोर स्टेडियम के संयुक्त तत्वावधान में 8 से 22 जून तक आयोजित की जा रही 15 दिवसीय ग्रीष्मकालीन ‘यूथ एक्टिंग वर्कशॉप (युवा अभिनय कार्यशाला)‘ में आज 13 जून, 2013 गुरूवार को शिविरार्थी युवक-युवतियों ने इम्प्रोवाइजेशन अभ्यास के तहत आकर्षक अभिनय प्रस्तुतियां देकर प्रभावित किया। रंगकर्मी उमेश चौरसिया के निर्देशन में अभिनय कौशल के गुर सीख रहे 18 युवक व 9 युवतियों ने अब तक के प्रशिक्षण में जितना सीखा, उसी की प्रायोगिक प्रस्तुति के रूप में आज चार समूह बनाकर लघु नाटक प्रस्तुत किये। इस अवसर परमुख्य अतिथि चिति संधान योग की अध्यक्षा स्वामी अनादि सरस्वती ने आशीर्वचन देते हुए बताया कि सीखने की प्रक्रीया धीरे-धीरे गति पकड़ती है, हम विश्वास पर अटल रहकर चलते जाएं तो सफलता निश्चित ही मिलती है। उन्होंनें कहा कि नाटक मन को शांत व तनाव मुक्त बनाने में भी सहायक होते हैं। विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के मुख्य परीक्षा नियंत्रक आर.बी.गुप्ता ने कहा कि अभिनय के माध्यम से अभिव्यक्ति क्षमता विकसित होती है और यह वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में युवाओं के लिए यह सीखना जरूरी हो गया है। नाटक आज युवाओं का शौक नहीं पैशन बन गया है, ऐसी एक्टिंग वर्कशॉप युवाओं को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद करती है। इनके अलावा कोर्डीनेटर एस.पी.मित्तल, लायन्स क्लब के संभागीय अध्यक्ष सतीश बंसल, शिक्षा बोर्ड सहायक निदेशक विजेन्द्र चतुर्वेदी, डॉ. अनन्त भटनागर, कृष्णगोपाल पाराशर इत्यादि ने भी उपस्थित होकर शिविरार्थी युवाओं का उत्साहवर्द्धन किया।

अभिनय प्रतिभा का परिचय कराया-अंकित शांडिल्य, पल्लवी, निर्मल, अभि व रितिका के ग्रुप ने कन्या भ्रूण हत्या, वैभव जैन, मुग्धा पाण्डे, नितिश, दीपक व त्रिनेत्र के ग्रुप ने सांप्रदायिक एकता, नरेन्द्र सोनी, पावनी, हर्षुल, विनीत व अशोक के ग्रुप ने अर्थिक असमानता, राशि शर्मा, हर्ष, पीयूष, किरण व यज्ञा के ग्रुप ने मस्ती की पाठशाला विषयों पर आधारित लघु नाटकों की आकर्षक प्रस्तुति देकर अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया। यह उल्लेखनीय है कि बिना किसी पूर्व तैयारी के इन नाटकों के कथानक, संवाद, पात्र इत्यादि का सारा अभ्यास उसी समय वर्कशॉप स्थल पर ही करके आपसी तालमेल के द्वारा ये नाटक प्रस्तुत किये गये। इन लघु नाटकों में गांवों में कन्या जन्म को रोकने के लिए बहू पर किये जाने वाले अत्याचारों का मार्मिक चित्रण, ‘सबका लाल खून तो फर्क उनमें है क्या‘ गीत के द्वारा दंगों को रोकने और एकता का संदेश, अमीरों को सब सुविधाएं और गरीबों के लिए अभाव का दर्द तथा लड़का-लड़की के भेद को भुलाकर लड़कियों को भी पढ़ाई में आगे बढ़ने के अवसर देने की प्रेरणा को प्रभावी रूप सेे दिखाया गया।

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