अजमेर/ वरिष्ठ पत्रकार व गजलकार डॉ. रमेश अग्रवाल का गज़ल संग्रह ‘भीड़ में तनहाइयां’ का विमोचन समारोह रविवार को स्थानीय जवाहर रंगमंच पर आयोजित किया गया। गजल संग्रह का विमोचन विख्यात कवि व पत्रकार आलोक श्रीवास्तव और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेदव्यास ने किया। इससे पूर्व मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। समारोह में हिन्दी गजलों के लिए ख्यातनाम गजलकार गोपाल गर्ग व सुरेंद्र चतुर्वेदी ने गजल संग्रह की समीक्षा प्रस्तुत की। डॉ. अग्रवाल ने हिरण के अंतिम आर्तनाद में छिपी छटपटाहट और वेदना का रिश्ता ‘गजल’ से जोड़ते हुए अपने संग्रह ‘भीड़ में तनहाइयां’ को अनुभूतियों की अभिव्यक्ति बताया।
कार्यक्रम में गज़ल गायक गुलशन खान ने डॉ. अग्रवाल के इस गजल संग्रह की चुनिंदा गज़लों की संगीतमय प्रस्तुति दी। इस दौरान उन्होंने ‘था सुकूं बैठा मुंडेरों पर उड़ा किसने दिया, मुश्किलों तुमको मेरे घर का पता किसने दिया’। ‘जब तलक मकसद कोई दिखता नहीं, आदमी से आदमी मिलता नहीं’, पत्थर कभी तू मोम की तरह पिघल के देख, दुनिया न गर बदल सके खुद को बदल के देख, और भीड़ में तनहाइयां बढ़ती हुई, लोग हैं परछाइयां चलती हुईं गजलों का संगीतमयी प्रस्तुति से समां बांधा। दर्शक सुर और संगीत की लय में मंत्रमुग्ध होते रहे।
समारोह को संबोधित करते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि गज़लों का ताजा दौर हिन्दी से जुड़ा है। आम आदमी की भाषा में हिन्दी की गजल वर्तमान हालात को बयां करती है तो उनका असर प्रभावी होता है। गज़ल वो माध्यम है, जो किसी भी विषय से पाठक और श्रोता को बिलकुल उसी तरह जोड़ देता है, जिस तरह एक चलचित्र किसी विषय से दर्शक को जोड़ता है। अहा जिंदगी के संपादक आलोक श्रीवास्तव ने विमोचन समारोह के अवसर पर कहा कि जीवन में जटिलताएं बहुत हैं, देश में बहुत कुछ बदल गया है। इसे पकडऩे के लिए मौलिकता और व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है, जो डॉ. अग्रवाल की गजलों में मिलती है। विमोचन समारोह में शहर के साहित्यकारों, गजलकारों, कवियों, पत्रकारों के साथ ही अनेक राजनैतिक और प्रशासनिक हस्तियां मौजूद थीं। उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अग्रवाल की इससे पूर्व दो पुस्तकें पत्रकारिता विषय पर प्रकाशित हो चुकी हैं। यह उनकी तीसरी प्रकाशित कृति है।