जहां क्रोध और द्वेष होता है वहां भगवान का प्राकट्य नही होता

zमदनगंज-किशनगढ। व्यक्ति का हृदय जब निर्मल होता है उस निर्मल हृदय में ही प्र्रभु का वास होता है। अखिल भारतीय श्रीनिबार्काचार्य पीठ के युवाचार्य श्यामशरण देव ने ये शब्द श्री राधा सर्वेश्वर संकीर्तन मंडल के रजत जयन्ती महोत्सव पर ध्रुव चरित की व्याया करते हुये कहे की भगवान का नाम संकीर्तन करना बहुत ही सरल है। इस उपाय के करने से जीव की बुद्धि निर्मल होती है उसका चिन्तन भी श्रेष्ठ होता है। भगवान के नाम स्मरण से जीव माया को पार कर सकता है। मन की चर्चा करते हुय यह मन बहुत ही चंचल है। इस चंचलता को प्रतिष्थित करने के लिये मन में भगवान को धारण करना चाहिये। भगवान समस्त आपदाओ का हरण करते है। ध्रुव को सुनीति कहती है कि जिसके हृदय में क्रोध होता है उसमें भगवान नहीं प्राप्त होते हैं। भगवान के चरणारविन्द में ही गति मिल सकती है। सुनीति पांच वर्ष के बालक को भगवद आदि की ओर प्रेरित करती है । अपनी माता से उपदेश प्राप्त कर भगवद् ाक्ति के लिये वन की ओर अग्रसर हो जाते है। ागवान के दो भक्त है। एक ध्रुव और दूसरा है भक्त प्रहलाद। ध्रुव निश्चय का प्रतीक है वहीं प्रहलाद विश्वास का प्रतीक है। भगवान की प्राप्ति निश्चय और विश्वास से ही होती है। ध्रुव राजा उतानपाद की शुद्ध गोद को छोड भगवान की विशाल गोद में बैठने के लिये निश्चय के साथ ही अग्रसर हुये। इस संसार में जब जीव को प्रताडना मिलती है तब वह भगवान की ओर जाता है। विभिषण, सुग्रीव, पाण्डवों की चर्चा करते हुये कि इन सबको प्रताडना मिली तब वे भगवान की ओर गये। विश्वास एवं समर्थन की चर्चा करते हुये आपने कहा कि द्रोपदी ने पूर्ण समर्पण से श्रीकृष्ण को पुकारा तो वे उसकी मदद को आये। प्रवचन से पूर्व युवाचार्य जी ने भगवान श्री राधासर्वेश्वर प्रभु की पूजा की। श्री संतोष कुमार गर्ग ने माल्यार्पण कर युवाचार्य जी का स्वागत किया। कार्यक्रम में विधायक नाथुराम सिनोदिया, किशनगढ मार्बल एसोसियेशन के अध्यक्ष सुरेश टांक ने युवाचार्यजी क ा माल्यार्पण कर अशीर्वाद स्वरूप स्मृति चिन्ह प्राप्त किया। -राजकुमार शर्मा

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