खतरे में वसुंधरा की गद्दी, ओम माथुर की लग सकती है लॉटरी!

om mathurजोधपुर। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे रहेंगी या जाएंगी? ललित मोदी मदद विवाद में फंसने के बाद वसुंधरा पर इस्तीफे का दबाव है. लेकिन राजस्थान सरकार ने साफ किया है कि इस्तीफे का सवाल ही नहीं है. पूरी पार्टी और राज्य के विधायक वसुंधरा के साथ हैं. राज्य सरकार के प्रवक्ता और राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे मामले पर राज्य सरकार का पक्ष साफ किया है. राठौड़ ने ये भी कहा है कि पार्टी के विधायक जयपुर से दिल्ली नहीं गये हैं. सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने वसुंधरा से किनारा इस कदर किया है कि पार्टी के प्रवक्ताओं को बचाव करने से मना कर दिया गया है. बीजेपी के भीतरी समीकरण वसुंधरा के खिलाफ है. राजनाथ और आरएसएस वसुंधरा के साथ नहीं. सूत्रों का कहना है कि इस विवाद में जेटली भी वसुंधरा के पक्ष में खड़े नहीं हो रहे हैं. वसुंधरा अगर हटती हैं तो बीजेपी के उपाध्यक्ष बनाये गये ओम माथुर की लॉटरी लग सकती है.

लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कुर्सी खतरे में पड़ गई है. ललित मोदी विवाद में नाम आने के बाद पार्टी वसुंधरा नाराज बताई जा रही हैं. लेकिन राजस्थान सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि पार्टी और राज्य के विधायक वसुंधरा के साथ हैं. जयपुर में कांग्रेस ने इस्तीफे की मांग को लेकर वसुंधरा राजे का पुतला फूंका है.

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे फिलहाल नरेंद्र मोदी के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई हैं. ललित मोदी प्रकरण में उनकी भूमिका को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमले कर रहा है. वैसे देखा जाए तो वसुंधरा राजे इससे पहले भी कई बार मोदी के लिए मुसीबत बन चुकी हैं. किसी जमाने में उनकी छवि मोदी विरोधी की थी हालांकि 2013 से दोनों के रिश्ते बेहतर हुए थे लेकिन अब क्या होगा ? कोई नहीं जानता. ललित मोदी प्रकरण के बाद वसुंधरा राजे के सियासी भविष्य को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. सवाल उठ रहा है कि वसुंधरा का गद्दी बचेगी या जायेगी ? इस सवाल का सबसे सटीक जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है लेकिन फिलहाल वो इस मुद्दे पर खामोश हैं. कब तक खामोश रहेंगे कोई नहीं जानता.

वैसे प्रधानमंत्री मोदी और वसुंधरा राजे का अबतक का रिश्ता कई नाजुक मोड़ों से गुजरा है. 2013 से पहले वसुंधरा राजे नरेंद्र मोदी के विरोधी खेमे की मानी जाती थीं और वाजपेयी सरकार में विदेश राज्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कई बार नरेंद्र मोदी के खिलाफ टीका टिप्पणी की थी.

नरेंद्र मोदी और वसुंधरा राजे के रिश्ते में बदलाव की कहानी शुरू हुई 29 जनवरी 2013 को . इसी दिन वसुंधरा राजे ने गांधीनगर जाकर मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास में नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद वसुंधरा ने पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी का समर्थन करना शुरू कर दिया और बदले में नरेंद्र मोदी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के पक्ष में धुंआधार प्रचार किया.

लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे और मोदी की जोड़ी ने राजस्थान की रेतीली सरजमीं में कमल खिलाने का कारनामा कर दिखाया. राज्य की कुल सभी 25 सीटें बीजेपी के हिस्से में गईं. इस समय तक दोनों के रिश्ते इतने बेहतर थे कि वसुंधरा राजे की नाराजगी की वजह से बीजेपी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को टिकट तक नहीं दिया गया और बाद में उन्हें पार्टी से निलंबित भी कर दिया गया.

2014 में वसुंधरा राजे राजस्थान की सीएम बन गईं, नरेंद्र मोदी देश के पीएम बन गये. यहां तक दोनों के रिश्तों में ऑल इज वेल दिखा लेकिन मंत्रिमडल को लेकर पहली बार दोनों के रिश्तों में खटास दिखा. सूत्रों के मुताबिक वसुंधरा राजे अपने बेटे दुष्यंत सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाना चाहती थीं लेकिन मोदी दुष्यंत सिंह के नाम पर तैयार नहीं हुए.

2012 के बाद पहली बार वसुंधरा राजे ने पीएम नरेंद्र मोदी सत्ता को चुनौती दी थी हालांकि बाद में वो टकराव से बचती दिखीं और ललित मोदी प्रकरण से पहले सबकुछ ठीक ठाक दिख रहा था लेकिन अब एकबार फिर से पीएम मोदी और वसुंधरा राजे का रिश्ता नाजुक मोड़ पर पहुंच गया है.

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