चाहिए रेलवे की भलाई तो बढ़ानी होगी कमाई

बढ़ता खर्च और घटती कमाई रेलवे की सबसे बड़ी समस्या है। इसकी सौ रुपये की कमाई में 95 रुपये परिचालन में ही खर्च हो जाते हैं। बाकी बची पांच फीसद राशि में इतने बड़े देश की उम्मीदें पूरी करने की चुनौती है। यही वजह है कि योजनाओं-परियोजनाओं के एलान तो हर साल होते हैं, लेकिन इनमें से पूरे बहुत कम हो पाते हैं। बड़ी परियोजनाएं ही नहीं, छोटे और साधारण कार्य भी धन की कमी से घिसट-घिसट कर आगे बढ़ रहे हैं।

रेलवे की कमाई का एकमात्र जरिया यातायात है। अन्य तरीकों से मामूली आमदनी होती है। 80 फीसद राजस्व माल परिवहन से और 20 फीसद यात्री परिवहन से हासिल होता है। पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में रेलवे को कुल एक लाख छह हजार 647 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। इसमें यातायात से होने वाली आमदनी एक लाख तीन हजार 917 करोड़ रुपये थी। अन्य उपायों से महज 2730 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। इसके मुकाबले कुल खर्च 99 हजार 502 करोड़ रुपये रहा था। इस तरह ऑपरेटिंग रेशियो 95 फीसद बना।

दूसरी ओर, चालू वर्ष 2012-13 के लिए रेलवे ने कुल राजस्व का लक्ष्य एक लाख 35 हजार 694 करोड़ रुपये रखा है। इसके तहत यातायात से एक लाख 32 हजार 552 करोड़ और अन्य मदों से 3142 करोड़ की आमदनी की उम्मीद की गई है। इसकी तुलना में एक लाख 13 हजार 461 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया है। यह अंदाज सही साबित हुआ तो रेलवे का ऑपरेटिंग रेशियो सुधर कर 84.9 फीसद हो जाएगा जिससे कुछ बचत संभव है। मगर नवंबर तक यातायात की जो स्थिति रही है, उससे यह संभव नहीं दिखता। यही वजह है कि 22 जनवरी से किराये बढ़ाने पड़े। इससे चालू वित्त वर्ष के बाकी सवा दो महीनों में 1200 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी, जिससे ऑपरेटिंग रेशियो कुछ हद तक लक्ष्य के नजदीक रह सकेगा। मगर बात केवल यात्री यातायात की नहीं है। माल ढुलाई भी अपेक्षानुरूप नहीं बढ़ रही।

दिसंबर तक रेलवे की माल ढुलाई केवल 4.4 फीसद बढ़ी। लौह अयस्क, सीमेंट, खाद्यान्न व कंटेनर यातायात लक्ष्य से कम रहा है। बाकी आइटमों की ढुलाई भी बढ़ी तो है मगर लक्ष्य से कम है। इन हालात में 102.5 करोड़ टन माल ढुलाई का लक्ष्य प्राप्त होना कठिन है। ऐसे में पिछले साल की तरह अंतिम समय में लक्ष्य में संशोधन करना पड़ सकता है। इसके बावजूद मालभाड़े की ऊंची दरों की बदौलत माल यातायात से कमाई का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। ऑपरेटिंग रेशियो के लिहाज से यह अच्छी बात है। इससे विकास योजनाओं की खातिर रेलवे के पास कुछ पैसा बचेगा। इसकी बदौलत रेलवे वित्त मंत्रालय से ज्यादा बजटीय सहायता प्राप्त करने के अलावा बाजार से ज्यादा कर्ज भी जुटा सकता है। दोनों ही स्थितियों में उसके पास लंबित परियोजनाओं को पूरा करने और नई योजनाओं को लागू करने के लिए ज्यादा धन होगा। हालांकि, रेलवे को पूरी तरह पटरी पर लाने के लिए इतना धन पर्याप्त नहीं है। इसके लिए आने वाले समय में किराये-भाड़े में और संशोधन की जरूरत है। इसके अलावा अन्य गैर परंपरागत तरीकों से राजस्व बढ़ाने के इंतजाम भी करने होंगे। सच तो यह है कि जब तक 75 फीसद का आदर्श ऑपरेटिंग रेशियो प्राप्त नहीं होता, तब तक रेलवे के आधुनिकीकरण का मंसूबा पूरा होना कठिन है।

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