एक तत्काल टिकट मुझे भी चाहिए

वो क्या है कि एक तत्काल टिकट मुझे भी चाहिए था. किसी के कहने पर पहले मैं रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक ट्रैवलिंग एजेन्सी के यहां चला गया. वहां मुझे बताया गया कि टिकट के अलावा तत्काल शुल्क के ढ़ाई सौ की बजाय 500 रू. और देने होंगे. मैंने मन में सोचा केजरीवाल के … Read more

मौत में उम्मीद…!!

मौत तो मनुष्य के लिए सदा – सर्वदा भयावह और डरावनी रही है। भला मौत भी क्या किसी में उम्मीद जगा सकती है… बिल्कुल जगा सकती है। इस बात का भान मुझे अपने पड़ोस में दारुण पीड़ा झेल रही एक  गाय का हश्र देख कर हुआ। हमारे देश में गौ  हत्या और गौ रक्षा शुरू … Read more

अब महिला श्रमिकों को भी मिलेंगे हमाल लाइसेंस

अब तक पुरूष व्यापारियों, हमालों, तोलने या मापने वालों को ही लाइसेंस दिए जा रहे थे। महिला श्रमिकों को लाइसेंस देने की दिषा में कभी काम ही नहीं किया गया। लाइसेंस नहीं होने से महिला हमाल श्रमिकों को मंडी में कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ता था। लेकिन एक लंबी कोशिश के बाद आज 25 … Read more

कहानी – सोच और व्यवहार के प्रतिमान में अन्तर

स्टीफन आर. कवि एक दिन ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. ट्रेन के डिब्बे में सभी यात्री शान्ति से बैठे थे, कुछ अखबार पढ़ रहे थे, कुछ सो रहे थे. माहौल शांत था. ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और एक आदमी कुछ बच्चों के साथ डिब्बे में दाखिल हुआ. उस आदमी के साथ आए बच्चे … Read more

क्यूँ भड़क रहे हैं मीडिया हाउस…?

आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने मीडिया को हिला के रख दिया है.. सिक्का हो, तस्वीर हो या आईना.. सभी के दो पहलू होते हैं.. कजरी बाबू ने मीडिया को बिका हुआ बताया तो मीडिया मालिकों के पेट में दर्द शुरू हो गया. दूसरों के कपडे उतारते रहो, कोई तुमको आईना दिखाए … Read more

आधुनिक समाज के ‘महाबाभन’…!!

-तारकेश कुमार ओझा- श्मशान में शवदाह से लेकर अंतिम क्रिया तक संपन्न कराने वाले महाबाभनों से सभी का कभी न कभी पाला पड़ता ही है। बेचारे इस वर्ग की भी अजीब विडंबना है। सामान्य दिनों में लोग इन्हें देखना भी पसंद नहीं करेंगे। लेकिन किसी अपने  के निधन पर मजबूरी में अंतिम क्रिया संपन्न होने तक … Read more

ये तो हमारे विचारों की ताकत ही है

-कमल कोठोत्या– हमारे चौदहवें दलाई लामा के शब्दों में, ‘अपने विचारांे पर ध्यान दीजिए क्योंकि वो आपके शब्द बन जाते हैं, अपने शब्दांे पर ध्यान दीजिए क्यांेकि वो आपके कार्य बन जाते हैं, अपने कार्यों पर ध्यान दीजिए क्योंकि वो आपकी आदतंे बन जाती हैं, अपनी आदतांे पर ध्यान दीजिए क्योंकि वो ही आपका व्यक्तित्व … Read more

खान तिकड़ी पर मीडिया की मेहरबानी का आखिर राज क्या है…!!

  -तारकेश कुमार ओझा- किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान वाली कहावत को शायद बदलते दौर में बदल कर मीडिया मेहरबान तो गधा पहलवान करने की जरूरत है। क्योंकि व्यवहारिक जीवन में इसकी कई विसंगितयां देखने को मिल रही है। इसकी वजह शायद पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा वाले चलन का समाज के हर क्षेत्र … Read more

राजमोहन कहते हैं, शायद महात्मा सही नहीं थे

ब्लॉगों का मेरा दूसरा संग्रह ‘माई टेक‘ शीर्षक से दिसम्बर, 2013 में लोकार्पित हुआ था, जिसमें काफी ब्लॉग सरदार पटेल, उनके द्वारा देसी रियासतों के उल्लेखनीय विलीनीकरण कार्य, और हैदराबाद के निजाम द्वारा भारतीय संघ में शामिल न होने के समझौते पर हस्ताक्षर न करने पर उनके द्वारा अपनाए गए तरीके जिससे निजाम को मुंह … Read more

महानायक की महामजबूरियां ……!!

-तारकेश कुमार ओझा- सहारा इंडिया प्रकरण से अपने जनरल नालेज में यह जानकर एक और इजाफा हुआ कि अपने महानायक यानी बिग बी यानी अमिताभ बच्चन जिन लोगों के एहसानों तले दबे हैं, उनमें सहारा इंडिया के सहाराश्री यानी सुब्रत राय सहारा भी शामिल हैं। अभी तक हम यही जानते थे कि महानायक केवल अपने … Read more

‘अ बिलियन आइडियाज’ की ओर से आयोजित एक ब्‍लॉगर्स मीट में मेरा विचार

कलकत्‍ता के पार्क स्‍ट्रीट में ‘द गोल्‍डेन पार्क’ होटल में पिछले रविवार यानि 9 मार्च 2014 को‘अ बिलियन आइडियाज’ की ओर से आयोजित एक ब्‍लॉगर्स मीट में भाग लेने का मौका मिला , इसमें विचार विमर्श के लिए निम्‍न मुद्दे थे ….. How to retain the inclusiveness and secular fabric of the nation How to harness … Read more

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