आयोग का विखंडन रुकना मुश्किल, बोर्ड मुख्यालय अजमेर में रह सकता है

RPSC 450हालांकि कांग्रेस के अग्रिम संगठन युवक कांग्रेस ने एडीसी को ज्ञापन दे कर राजस्थान लोक सेवा आयोग का विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड अलग से गठित करने का कड़ा विरोध जताया है, मगर जैसा की अजमेर जिले के सभी आठों भाजपा विधायकों का रुख है, लगता नहीं है कि यह विखंडन अब रुक पाएगा। युवक कांग्रेस ने आंदोलन की चेतावनी दी है, मगर लगता नहीं की अजमेर की जनता में इतनी जागरूकता है कि वह अजमेर की महत्ता से जुड़े इस मसले में अपनी भागीदारी निभाएगी।
असल में यह मसला इसलिए कमजोर प्रतीत होता है, क्योंकि जिस कांग्रेस पर विपक्ष की भूमिका निभाने का दायित्व है, वह विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बाद खुद को संभालने में जुटी हुई है। इसके अतिरिक्त लोकसभा चुनाव भी नजदीक हैं। उसकी सरगरमी शुरू भी हो चुकी है। रहा सवाल भाजपा विधायकों का तो उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि अपनी ही पार्टी की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा के फैसले का विरोध कर सकें। वे इसे विखंडन ही मानने को तैयार नहीं हैं। हां, अलबत्ता वे इतना जरूर कह रहे हैं कि सरकार पर दबाव बनाएंगे कि बोर्ड का मुख्यालय अजमेर में ही हो, ताकि अजमेर अहमियत बरकरार रहे। अजमेर दक्षिण की विधायक अनिता भदेल, अजमेर पश्चिम के विधायक वासुदेव देवनानी, मसूदा विधायक सुशील कंवर पलाड़ा और पुष्कर विधायक सुरेश रावत ने साफ तौर पर कहा है कि वे मुख्यमंत्री से आग्रह करेंगे कि मुख्यालय अजमेर में ही रखा जाए।
पूर्व कांग्रेसी विधायकों का ज्यादा जोर भी इसी बात है कि बोर्ड को अजमेर से बाहर न ले जाया जाए। पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर का कहना है कि देश में आयोग ने साख बनाई है। इसका विखंडन नहीं होना चाहिए था। सरकार को नए बोर्ड का मुख्यालय आयोग में ही रखना चाहिए। पूर्व मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने भी इसी बात पर जोर दिया है कि मुख्यालय अजमेर में ही हो। उनका कहना है कि यदि अधीनस्थ बोर्ड का मुख्यालय अजमेर से बाहर किया गया, तो विरोध करेंगे। इसी प्रकार नसीराबाद के पूर्व विधायक महेन्द्र गुर्जर का कहना है कि राव कमेटी के फैसले से आयोग अजमेर को मिला। अब आयोग का विखंडन कर इसे बाहर ले जाया जा रहा है। इसका विरोध करेंगे। यानि कि उन्हें ज्यादा ऐतराज इस बात पर रहेगा कि बोर्ड का मुख्यालय अजमेर को छोड़ कर कहीं और हो।
कुल मिला कर ऐसा प्रतीत होता है कि विखंडन तो हो कर रहेगा, बस बोर्ड का मुख्यालय अजमेर में ही रहने पर संतुष्ट रहना होगा। देखना ये होगा कि कहीं सरकार अभी लोकसभा चुनाव तक इस मामले में चुप रहे और बाद में बोर्ड का मुख्यालय कहीं और न ले जाए।
जहां तक तकनीकी पहलु का सवाल है, यह स्पष्ट है कि सरकार का कदम विखंडनकारी ही है। यह बात सही है कि आयोग का गठन राजपत्रित पदों के लिए किया गया था, मगर अस्सी के दशक में एक बार अराजपत्रित अर्थात लिपिक पदों पर भर्ती का काम आयोग से कराया गया। इसके लिए नियमों में संशोधन किए गए। पिछली भाजपा सरकार ने तो ग्रेड थर्ड शिक्षकों और पटवारियों की भर्ती का काम भी कराया। इनके लिए भी नियमों में बदलाव किया गया। मगर अब जिन पदों को कानून बदलकर आयोग के क्षेत्राधिकार में लाया गया अब उन्हें कानून बदल कर वापस छीना जा रहा है।
इस सिलसिले में आयोग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष दयानंद शर्मा के तर्क भी गौर करने योग्य हैं। वो ये कि आयोग सीमित संसाधन और स्टाफ की कमी के बाद भी चार महीने में 21 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा आयोजित कर चुका है। आयोग में कुछ और संसाधन बढ़ाए जाएं, तो अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड की आवश्यकता ही नहीं होगी। यदि मौजूदा स्टाफ का 50 प्रतिशत कार्मिक और उपलब्ध कराएं तो राजस्व हानि से बच सकती है।

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