स्मार्ट सिटी : तो क्या पानी का बिलोवणा कर रहे हैं?

बैठे ठाले क्या करें, करना है कुछ काम, शुरू करें अंताक्षरी, ले कर मोदी का नाम
ajmer smart cityबेशक यह खबर झूठी नहीं कि अमेरिका अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने में मदद करेगा। यह समाचार भी झूठा नहीं कि इसको लेकर संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर लगातार बैठकें कर रहे हैं। यह बात भी झूठी नहीं कि स्मार्ट सिटी के नाम पर प्रतियोगिताएं हो रही हैं। फेसबुक पेज तक बना है। और तो और राजस्थान दिवस के मौके पर आयोजित सरकारी समारोह में शहर की चंद शख्सियतों को स्मार्ट सिटी के सिलसिले में सम्मानित तक कर दिया गया। साथ ही यह भी झूठ नहीं कि स्मार्ट सिटी की कवायद करने वाली नोडल एजेंसी अजमेर विकास प्राधिकरण को अभी पता ही नहीं कि स्मार्ट सिटी के लिए केन्द्र सरकार की गाइड लाइन्स क्या हैं। घोर विडंबना है।
जिस स्मार्ट सिटी को लेकर प्रशासन भारी कवायद कर रहा है, या करता दिख रहा है, वह फिलहाल तक तो पानी को बिलोने जैसा है। जिस स्मार्ट सिटी की घोषणा को सत्ताधारी दल के नेता भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसके बारे में उसके मंत्रियों तक को पता नहीं आखिर अजमेर का होने वाला क्या है? सब कुछ धूल में ल_। भाई वाह।
चूंकि रोजाना स्मार्ट सिटी को लेकर बैठकें हो रही हैं, इस कारण मीडिया भी उनको सच मान कर कवरेज देता रहा। मगर जैसे ही एक आरटीआई के जरिए इस बात का खुलासा हुआ कि जिस अजमेर विकास प्राधिकरण के जिम्मे यह काम है, उसके पास आज तक न केन्द्र की ओर से और न ही राज्य सरकार की ओर से इस आशय का कोई लिखित दस्तावेज ही पहुंचा है, सभी भौंचक्के रह गए। जैसे ही यह पता लगा कि केन्द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार अभी तक राजस्थान सरकार ने स्मार्ट सिटी नाम की किसी योजना की क्रियान्विति को लेकर कोई प्रस्ताव तक केन्द्र सरकार को भेजा ही नहीं है, कांग्रेसियों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फैंकू कहना और आसान हो गया।
चलो अजमेर सहित देश के तीन शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का काम तो अमेरिका की मदद से होगा, मगर हाल ही जब सरकार ने देश के एक सौ शहरों को स्मार्ट बनाने का ऐलान किया तो एनडीटीवी ने एक बड़ी बहस आयोजित की। उसमें बड़े बड़े विशेषज्ञों की चर्चा से खुलासा हुआ कि अब तक कुछ पता ही नहीं कि स्मार्ट सिटी आखिर है किस सपने का नाम? किसी को पता नहीं कि इसके नॉम्र्स क्या हैं? इसका भी पता नहीं कि स्मार्ट सिटी में ठेले वाले के लिए भी कोई जगह है या नहीं? है न चौंकाने वाली बात। एक बारगी ये मान भी लें कि सरकार ने फिलहाल घोषणा की है और उसके लिए नॉम्र्स बनाना बाकी है, मगर अजमेर सहित तीन शहरों में तो कवायद तक चालू हो गई है। अजमेर, जयपुर से लेकर दिल्ली में बैठकें हो चुकी हैं।
वैसे लगता ये है कि इसमें सरकार की उतनी गलती नहीं, जितनी कि प्रशासन की। सरकार ने तो नीतिगत रूप से घोषणा की है और उसके नॉम्र्स अब बनाए जाएंगे, मगर एडीए ने घोषणा के साथ हवा में ही कवायद शुरू कर दी। हवा में इसलिए कहना पड़ेगा कि खुद वही बता रहा है कि अभी कोई गाइड लाइन ही नहीं आई है। तो भला आप कवायद किस पर कर रहे हैं? यानि की धूल में ल_। यह ठीक वैसा ही नहीं लगता कि बैठे ठाले क्या करें, करना है कुछ काम, शुरू करें अंताक्षरी, ले कर मोदी का नाम।
होना यह चाहिए था कि जब तक गाइड लाइन नहीं आती, उस पर चर्चा ही नहीं होनी चाहिए। आपने चर्चा तो छोड़ो, कुछ लोगों को इसी के नाम पर सम्मानित तक कर दिया। खुदानखास्ता आपने जो चर्चा की है या जो खाका तैयार किया है, वह बाद में आने वाली गाइड लाइन से मेल ही न खाए तो। अफसोसनाक पहलु ये है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर हो रही कवायद में जितना समय लग रहा है, उसकी वजह से एडीए के रूटीन के काम ठप पड़े हैं। हालत ये है कि सैकड़ों लोग नियमन को लेकर चक्कर काट रहे हैं और लगे है शहर को स्मार्ट बनाने पर चर्चा करने में।
इस विषय पर जोर दे कर बात इसलिए करनी पड़ रही है कि इससे पहले भी अजमेर शहर के लिये बनी स्लम फ्री सिटी और दरगाह विकास योजना जैसी न जाने कितनी योजनाएं पहले भी पैदाइश से पहले दफ्न हो चुकी हैं। सीवरेज योजना का हाल भी किसी से छुपा हुआ नहीं है। ये बेहद दुखद है कि राज्य में दो राज्य मंत्री, एक राज्य मंत्री के समकक्ष और केन्द्र में एक राज्य मंत्री देने वाले इस शहर का ये हाल है। क्या यह कम खेद जनक नहीं कि स्मार्ट सिटी के प्रावधानों का पता न होने का पता लगने के बाद भी किसी मंत्री ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की।
-तेजवानी गिरधर
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