सरकारी मशीनरी व राजनैताओ की बल्ले बल्ले

atul sethiपंचायती राज चुनाओ में शौक्षणिक योग्यता की अनिवार्येता लागु करने से सरकारी मशीनरी व राजनैताओ की बल्ले हो गई.जो लोग पांच वर्ष से चुनाव की तैयारी कर रहे थे और अचानक शैक्षणिक योग्यता लागु होने से उनकी स्तिथि उस सिनेमा प्रेमी जैसी हो गई जो सिनेमा हांल तो पहूंच गया लेकिन टिकट खिडकी बंद हो गई ऐसे में ब्लेक से टिकट लेना पडा.यही हालत सरपंच बनने के सपने संजोने वाले के साथ हुई.उन्होने भी ब्लेक से हजारो रुपये देकर आठवीं पास की मार्कसीट खरीद ली.पहले मार्कसीट के रुपये दिये फिर चुनाओ में खर्च किया.अब जब मुकदमा दर्ज हो गया तो नेताओ के धोक लगा रहे है अगर नेताओ की महेरबानी हो जाये तो गिरफ्तारी में देरी करवा सकते है लेकिन असल चाबी तो जांच अधिकारी के पास है.जिन लोगो ने सरपंच की शिकायत की उनसे जांच अधिकारी एक से दो लाख रुपये गिरफ्तार करने के मांग रहे है.दुसरी तरफ सरपंच गिरफ्तारी से बचने व मामले को रफादफा करने के लिये जांच अधिकारी को पांच से दस लाख रुपये देने को तैयार है.जिन सरपंचो की गिरफ्तारी हुई है वो राजनेतिक दुश्मनी निकालने के उद्देश्य से हुई है कानुन की इसमे कोई भुमिका नही है और जो सरपंच दोषी होते हुये भी मजे से सरपंचाई कर रहे है उनके आगे कानुन लाचार है उन्होने कानुन को धन की डोरी से कसकर बांध दिया है.जांच अधिकारी के लिये मात्र दस दिन की जांच है.जिस स्कुल की मार्कसीट है उस स्कुल वाले से सबसे पहले पुछ लिया जाये.स्कुल यह कहती है की मार्कसीट हमने दी तो जांच आगे बढ सकती है और स्कुल मार्कसीट देना नही स्वीकारती है तो आगे जांच की गुंजाईस ही नही रहती है सरपंच दोषी है फर्जी मार्कसीट दिलाने मे सहयोग करने वाले दोषी है उन्हे अब तक गिरफ्तार क्यो नही किया.जांच व गिरफ्तारी मे जितनी देर होगी जांच एजेन्सी उतनी ही संदेह के घेरे में आयेगी व आम जनता में विश्वास खो देगी.मै किसी सरपंच के न तो खिलाफ हुं और न ही गलत काम करने वालो के समर्थन में हुं मै तो इस व्यवस्था के खिलाफ हुं जिसकी वजह से प्रदेश में गंदी राजनिती के दुरुपयोग व सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार के कारण आम जनता अस्त व्यस्त हो गई है.
अतुल सेठी

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