अस्पताल का तिकोना समोसा. . .

JLN 450अस्पताल के बाहर ढेरों ठेले और ढाबे लगे हुए हैं। जिनसे नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस मंथली लेती है। यहां सभी ढेलों पर कई तरह के ‘बम’ बनाए जाते हैं।
ऐसी ही एक तामचीनी की टूटी जंग खाई प्लेट में एक तिकोना और एक चपटा गोल आकृति का बम पड़ा था। वह बम हवलदार बलदेव, सिपाही तथा मुर्दे का भाई के सामने पड़ी सड़ी हुई, टूटी टेबल पर रखा था। वे बम को ‘डिफ्यूज’ करने की जगह गपागप खा रहे थे।
यह गंदगी, धूल-मिट्टी, आलू, नमक-मिर्च, दस्त के कीटाणु, नाखूनों की गंदगी, टायफाइड व टीबी के जर्म्स तथा मैदे का बना बम इस चाय की दुकान का बना समोसा व कचौरी कहलाती थी। बीमारी से ठसाठस भरे इस समोसे व कचौरी से कहीं भी जीवाणु युद्ध छेड़ा जा सकता था। इसे खाकर कोई भी बीमारी प्राप्त की जा सकती है। हंसिए नहीं जनाब। गर्भाधान के अलावा इससे सब कुछ हो सकता है।
आप देखिए अस्पताल के बाहर ऐसी ढेरों चाय की दुकानें हैं, जो पार्किंग स्पेस में लगी हुई है और बातें होती है स्मार्ट सिटी की।
यहां ‘हाइजीन’ का कत्ल होता है। साफ-सफाई का गला घोंटा जाता है तथा हेल्थ पर तलवारें चलाई जाती है। यहां चाय की पत्तियों में पीलिया, समोसे- कचौरी में दस्त, और खाने की चीजों में अमीबा है। यहां के बैठने के मुड्डियों में खाज, हैजा तथा पेट के कीड़े मुफ्त दिए जाते हैं।
अस्ताल की छत्रछाया में ही नगर निगम व ट्रैफिक पुलिस की मेहरबानी से बीमारियों की यह फैक्ट्री बेलगाम दौड़े जा रही है।
बीमार आदमी व उसके परिजन व मित्र इन्हीं बीमारियों की फैक्ट्री में खाते-पीते है तथा ढेरों बीमारियों को लादकर डॉक्टरों की अग्नि परीक्षा लेने पुन: भर्ती हो जाते हैं।
चूंकि जहर को जहर ही काटता है। तो भईया कभी-कभी एक बीमारी के कीटाणु शरीर में पहुंचने पर पाते है कि यहां तो मेरे भी बाप यानि अन्य बड़े जीवाणु पहले ही ढेरों हैं। जीवाणु आपस में कट मरते है और मरीज अपने आप ठीक हो जाता है। इनको भारतीय चिकित्सा परिषद से पुरूस्कार मिलना चाहिए।
ऐसी हर एक थड़ी पर स्टूलों पर हवलदार बलदेव, सिपाही तथा मुर्दे का भाई चाय-नाश्ता कर रहे हैं।
‘खा ले भैया, न जाने कितनी देर लगे,’ सिपाही ने मुर्दे के भाई से कहा और एक सूखा कड़क समोसा खा गया। समोसा गले तथा खाने की नली को चीरता हुआ पेट में टपक गया।
‘पेट भर गया हमारा,’ मुर्दे के भाई ने कहा।
‘हम तो एक कचौरी और खाएंगे,’ हवलदार बोला।
‘हम एक रसगुल्ला लेंगे,’ सिपाही बोला।
मुर्दे के भाई ने आवाज लगाकर कचौरी, रसगुल्ला लाने को कहा, जिसे दुकान वाले ने चड्डी में हाथ डालकर खुजाते हुए सुना और हाथ बाहर निकालकर सामान सर्व किया और पुन: काम पर लग गया।
‘क्या बोले डॉक्टर साहब,’ मुर्दे के भाई ने बड़ी आशा से पूछा।
‘डॉ. साहब कह रहे थे कि कहो तो हत्या का केस बना दें?’ हवलदार ने कहा।
‘फिर हमने कहा आदमी पुश्तैनी गरीब है,ज्यादा न दे पाएगा। कृपा की जाए।’
वे मान गए। कहने लगे हवलदार साब आप जैसा बोले। अब डॉक्टर साब आत्महत्या ही बनाएंगे।
भईया ऐसे डॉक्टर कहां है जो आत्महत्या को आत्महत्या ही बनाएं। हमारे डॉक्टर साब गरीब को देखकर रोने लगते हैं। वो गरीब की लाश सडऩे नहीं देते हैं।
मुर्दे का भाई समझ गया कि वो बहुत सारे दयालुओं व कृपालुओं व गरीब नवाजों के बीच फंस चुका है अब उसकी खैर नहीं।
उसने एक लंबी सांस ली और बदबू मारता हुआ समोसा प्लेट से उठाकर दूर फेंक दिया। जैसे ही समोसा गिरा कुत्ते ने कैंच कर लिया। और कुत्ते ने गंदा सा मुंह बनाया और मुंह फेर कर ‘चीरघर’ की ओर चल पड़ा।
भाई को भाई की लाश के लिए न चाहते हुए चाय और समोसा खाना और खिलाना पड़ा और अभी लाश लेने के लिए संघर्षरत है।
और तभी हवलदार बलदेव के मोबाइल पर फोन आ गया और रिंगटोन में ये गाना बजने लगा।
चार बज गए है, लेकिन पार्टी अभी बाकी है।

राजीव शर्मा, शास्त्री नगर,अजमेर
9414002571
[email protected]

error: Content is protected !!