सांसारिक जीवन में विवाह बंधन का भी विशेष महत्व है, जिसमें से लगभग हर व्यक्ति को गुजरना पड़ता है, जिसका वर्तमान परिदृश्य में क्या बदलाव आया है, और वो कहाँ तक योग्य है, वैसे शादी विवाह दो व्यक्ति एव दो परिवारों का सुखद मिलन है, जो दो परिवारों में खुशियाँ लेकर आता है! वर्तमान समय में दुल्हा दुल्हन की शादी में अनेक रंग देखने को मिलतें है, जिसका कुछ सालों से अधिक प्रचलन बढ़ गया है, देखिए आपको में वर्तमान एवं बीते हुए शादी विवाह की कुछ रस्मों की जानकारी की ओर लेकर चलता हूँ! वर्तमान में होने वाली शादियों के बारे में बात की जाए तो नव दुल्हा दुल्हन की जब शादी का रिश्ता पक्का होने के बाद से ही घर में शादी का माहौल तैयार हो जाता है, और उस माहौल में कई शादियों का पहला कार्यक्रम प्री वेंडिंग है, जिसका पिछले कुछ सालों से अधिक प्रचलन बढ़ गया है, शादियों में प्री वेंडिंग शूटिंग एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें शादी से पहले नव युवक युवती अपनी शादी की प्री वेंडिंग शूटिंग के लिए पार्क, मंदिरों, होटलों, ट्यूरिजम स्थान, आदि स्थानों पर फोटो शूट के लिए जाते हैं, और फोटो शूट करके आतें है, जिनको शादी में विशेष रूप से प्रवेश द्वार पर लगाया जाता है, और दिखाया जाता है, कि हम तो शादी के पहले ही देश दुनिया देखकर आ गए हैं, जिसका परिवार एवं समाज में गलत संदेश जाता है, एवं फिजूल खर्च होता है, जबकि प्री वेंडिंग शूटिंग राजस्थानी संस्कृति के भी खिलाफ है, हमारी परंपरा के विरुद्ध है, जागरूकता के कारण इस व्यवस्था पर अब कई समाज ने प्रतिबंध भी लगाना शुरू कर दिया है, जो अच्छी पहल है! यह शूटिंग तो शादी के खर्चे को एक कदम आगे बढ़ाती है!
परन्तु यह सब वर्तमान पीढ़ी के युवा एवं युवतियों को अच्छा लगता है, जबकि पुराने दौर में माँ बाप ही दुल्हा दुल्हन पसंद करते थे, और कुंवारे युवक युवती शादी नहीं होने तक एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखते थे, जो उनके माँ बाप एवं परिवार ने तय कर दिया वो सब मान्य होता था, परन्तु आज के दौर में कितना बदल गया! अब आप ही सोचिए प्री वेंडिंग शूट में माँ बाप का जितना पैसा खर्च किया जाता है, उस पैसे को मां बाप से पूछो कैसे जोड़ा है? प्री वेंडिंग के नाम पर शादियों में हजारों रूपये खर्च किए जाते हैं, और फिर शादी की कुछ दिनों पहले ही नव दुल्हा दुल्हन एवं परिवार के लोग अपने अपने स्टेटस, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि सोशलमीडिया पर प्री वेंडिंग की तस्वीरें जैसे 10 Days Left, 9 Days Left आदि जब तक शादी नहीं हो जाती की भरमार छा जाती है, जिसका पुराने दौर में कोई लेना देना नहीं था, और आज यही फैशन है, इसके बिना तो शादी के फंक्शन ही शुरू नहीं होतें, खासकर पैसो वालों के घरों में, और इसका सीधा असर गरीब तबके के परिवार पर पड़ता है! प्री वेंडिंग के तस्वीरें शादी के पांडाल के मुख्य द्वार पर ऐसे लगाई जाती है, कि जैसे कही जंग जीत कर आए हो! दूसरी रस्म में हल्दी की रस्म आती है, वर्तमान में इसका तौर तरीका बदल गया और इसने मोडिफाइड रुप ले लिया है, इस हल्दी की रस्म में डेकोरेशन ऐसा सजाया जाता है, जिसमें सबकुछ पीला हो क्यौंकि हल्दी पीली होती है, पीले डेकोरेशन के चक्कर में मां बाप के माथे पर चिंता की लकीरें खीचती जातीं है, पहले शादी की हल्दी रस्म में ग्रामीण क्षेत्रों में साबुन, शेम्पू और ब्यूटीपार्लर नहीं थे, तो हल्दी की उबटन पीसकर दुल्हे या दुल्हन के चेहरे व शरीर की मृत चमड़ी एवं मेल हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, आटा, चंदन, दूध आदि का प्रयोग करते थे, ताकि दुल्हा दुल्हन सुंदर दिखे और यह जिम्मेदारी परिवार की महिलाओं के पास रहतीं थी, परन्तु आज के दौर में हल्दी रस्म बनावटी, मोडिफाइड और दिखावटी हो गई, जिसमें हजारों रूपये खर्च करके एक विशेष हल्दी रस्म का आयोजन किया जाता है, जिसका कोई औचित्य नही है, परन्तु इस दौर में जो सोशलमीडिया चल गया क्योंकि सोशलमीडिया पर भी तो दिखावा होना चाहिए, सभी आने वाले लोग काम तो बाद में करेंगे पहले फोटो शूट करेंगे, और विभिन्न सोशलमीडिया साइट्स पर अपलोड करेंगे, आज की शादियों में परंपरा तो नाम मात्र रह गई बस केवल फोटो आनी चाहिए! यह पीला ड्रामा बाप के माथे पर चिंता की लकीरें खीचता और माथे से टेंशन रूपी पसीना टपकता है! यह परंपरा तो आजकल ग्रामीण परिवेश में भी प्रवेश कर चुकीं है, क्योंकि जो शहर में रहते हैं युवा पीढ़ी, उनको शहर में होता हुआ अमीरों के शादियों में सब अच्छा लगता है, परन्तु उन ग्रामीण युवाओं को पता नहीं है, कि यह सब अमीरों का चोचला है, हमारे गरीब माँ बाप यह सब कैसे कर पाएंगे, परन्तु वो युवा पीढ़ी उन माँ बाप की नहीं सुनेगी, मजबूरन कर्ज तले दबकर माँ बाप को ऐसी शादी करवानी पढ़ती है! ऐसे नव युवा पीढ़ी से आग्रह है, कि ऐसे फिजूल खर्ची नहीं करें जिससे अपने माँ बाप को कर्ज मे डुबना पड़े, उनसे पूछो उन्होंने अपने बच्चों की शादी के लिए कैसे जी तोड़ मेहनत करके पाई पाई जोड़ी है! दोस्तों क्योंकि जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत माँ बाप ही है, जिसके बिना सबकुछ फीका लगता है!
*आनंद तो शादियों में भी बहुत है, लेकिन हंसते हुए माँ बाप के चेहरे पर परेशानियां तो बहुत है, और प्री वेंडिंग, हल्दी, मेहंदी तो जब सफल है, तब उस रिश्ते में से खुशबू महकती रहे*
तीसरी मोडिफाइड रस्म मेहंदी की है! जिसका एक ऐसा ट्रेंड है, जिसमें भी शादी के पांडाल को एक विशेष हरे रंग से सजाया जाता है, दुल्हा दुल्हन हरे या पीले रंग के कपड़े पहनते है, मेहमान सब एक जैसे रंग के कपड़े पहनते है, जो अलग अलग फंक्शन के लिए अलग अलग रंग की ड्रेसेज परिवार के लोग पहनते है, एक जैसे कपड़े पहनकर जब देखते हैं, तो ऐसा लगता है, कि कोई बेंड बाजे या काम वाले जैसे लगते हैं, क्योंकि शादी समारोह में अधिकतर बेंड बाजे वाले या अन्य कार्य वाले ही एक जैसे कपड़े पहनते है, जिससे वह काम करने वालों की पहचान हो सके, परन्तु दोस्तों ये 21 वी सदीं का दौर है! इस कार्यक्रम के लिए भी अलग ही डेकोरेशन किया जाता है, जिसमें हजारों रूपये खर्च किए जाते हैं, वो भी कुछ समय के लिए, जिसका इस मंहगाई के दौर में कोई लेना देना नहीं है, परन्तु नवयौवन दुल्हा दुल्हन के लिए आज के युग में रील बनाने, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर फोटो शेयर करने के लिए यह सब फिजूलखर्ची के चोचले करने पड़ते हैं! जिसका भार घर के मुखिया पर आता है, वो सोचता है, कि यह कैसी शादी हो रही है, जिसमें अपनापन तो दिख ही नही रहा, बस केवल फोटो पन, सोशलमीडिया, आदि का ही रूतबा दिख रहा है! ये सब फैशनेबल कार्यक्रम फेसबुक, इंस्टाग्राम, रील, स्टेटस आदि पर अपने आप को अलग ही दिखाने के लिए परोस दिया जाता है, जिसका खर्चा लाखों में आता है! यह सब कुछ जब भी में शादी समारोह में देखता हूँ, तो पांव रूक जातें हैं, कि यह सब मोडिफाइड फंक्शन कौन लेकर आ गया, बाजारवाद की दुनिया में कमाई के लिए यह सब आ गया, जिसमें अमीरों के चक्कर में गरीब आम आदमी पीसता जा रहा है, इसके लिए युवा पीढ़ी को ही जाग्रत होना होगा अन्यथा इस बाजारवाद की दुनिया में पीसना तय है, जिसका का दूर दूर तक कोई लाभ नहीं है! इन सबको जब भी में देखता हूँ, तो मन घबरा जाता है, दिमाग अस्थिर हो जाता है, कि कौन और कब ऐसे फिजूलखर्ची शादियों को रोकने के लिए आगे आएगा! अब मेरा कदम इस और बढ़ने के लिए तैयार है!
*अरे पैसों से शादियों की रस्मों को महकाना कोई बड़ी बात नहीं है, मजा तब है, जब खूशबू उस रिश्ते से महकती रहे, व्यवहार से पहचान होती है, दोस्तों वरना उन महलों में भी झाड़ू नहीं लगते, जिसमें परिवार ना रहे*
जितेन्द्र गौड़
*युवा एवं वर्तमान परिदृश्य लेखक*
*OMG वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड होल्डर*