एक ओर राजस्थान की सरकार बार-बार दावा कर रही है कि फरार कुख्यात आदतन अपराधी आनंदपाल सिंह को ढूंढने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है, वही इसे मजाक ही कहा जाएगा कि जिन पुलिसकर्मियों ने 3 सितम्बर को आनंदपाल सिंह की मिठाई खाई थी, उन्हें घटना के चौथे दिन भी होश नहीं आया है। सबको पता है कि आनंदपाल को जब नागौर की डीडवाना कोर्ट से वापस अजमेर जेल लाया जा रहा था, तब रास्ते में परबतसर के निकट समर्थकों ने पुलिस वाहन पर फायरिंग कर आनंदपाल को छुड़ा लिया। आनंदपाल की सुरक्षा में लगे 12 पुलिस के सशस्त्र जवान इसलिए कोई जवाबी कार्यवाही नहीं कर सके, क्योंकि उन्होंने हमले से पहले आनंदपाल द्वारा मुफ्त में दी गई मिठाई खा ली थी। जांच अधिकारियों का कहना है कि 3 सितम्बर को खाई गई मिठाई से अभी तक पुलिसकर्मी बेहोश ही हैं। अधिकारियों के कथन से साफ जाहिर होता है कि पुलिस सच्चाई को छिपा रही है। क्या ऐसा हो सकता है कि जहरीली मिठाई खाने वाले पुलिसकर्मी लगतार चौथे दिन भी बेहोश रहें? यदि मिठाई इतनी ही जहरीली थी तो अब तक कई पुलिसकर्मियों की हालत बिगड़ जानी चाहिए थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारियों और सरकार में बैठे नेताओं और मंत्रियों को स्वयं की पोल खुलने का डर हो। इसलिए होश वाले पुलिसकर्मियों को अभी तक बेहोश ही बताया जा रहा है। यदि पुलिसकर्मियों को जांच की गोपनीयता की वजह से बेहोश बताया जा रहा है तो पुलिस को यह स्थिति भी स्पष्ट करनी चाहिए। यदि सरकार 6 सितम्बर को भी पुलिसकर्मियों को बेहोश बता रही है तो सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल तो उठेंगे ही।
अफसरों के झगड़े में उलझी है जांच:
जितना समय गुजरेगा, उतना आनंदपाल पुलिस की पकड़ से दूर चला जाएगा। वहीं पुलिस की जांच भी अफसरों के झगड़े में उलझ गई है। अजमेर में विकास कुमार से पहले महेन्द्रसिंह चौधरी एसपी थे। विकास कुमार ने आते ही ऐसा प्रदर्शित किया, जैसे चौधरी के कार्यकाल में पुलिस न केवल भ्रष्ट थी बल्कि पुलिस वाले ही अपराध करवाते थे। जब लोगों ने पुलिस को चेतक, सिगमा, क्यूआरटी कमांडों के साथ सड़कों पर देखा था, विकास कुमार की चारों तरफ वाह-वाही हुई। यहीं वजह रही कि जब आनंदपाल को भगाने की जिम्मेदारी विकास कुमार पर आने लगी तो महेन्द्रसिंह चौधरी के समर्थक सक्रिय हो गए और मीडिया में प्रसारित करवाया कि महेन्द्र चौधरी के समय आनंदपाल की जो सुरक्षा थी उसे विकास कुमार ने कम कर दिया। यहां तक कहा गया कि आनंदपाल के सुरक्षाकर्मियों से ही विकास कुमार ने अपनी सुरक्षा के लिए क्यूआरटी कमांडों फोर्स बना ली। चौधरी के समर्थकों के इस कुप्रचार का जवाब 6 सितम्बर को विकास कुमार ने स्वयं दिया। विकास कुमार ने मीडिया में गत छह माह के आंकड़े उजागर कर दिए। इन आंकड़ों में बताया गया कि तारीख पेशी के समय महेन्द्र चौधरी जितने पुलिसकर्मी आनंदपाल के साथ भेजते थे, उतने ही विकास कुमार के कार्यकाल में भेजे गए। 3 सितम्बर को दो और अपराधियों के होने की वजह से पुलिसकर्मियों को आधुनिक हथियार दिए गए। अब यदि पुलिसकर्मी मुफ्त की मिठाई खाकर बेहोश ही हो जाएं तो आधुनिक हथियार और विकास कुमार क्या करेंगे? सरकार को चाहिए कि अफसरों का आपसी झगड़ा खत्म करवाएं, ताकि जल्द से जल्द आनंदपाल को पकड़ा जा सके। पर ऐसा होना मुश्किल नजर आता है कि पुलिस का अमला जातीय आधार पर बंटा हुआ है।
हथकड़ी से छूट क्यों ?
यह तो नहीं कहा जा सकता कि आनंदपाल की फरारी में अदालत का एक आदेश भी सहयोगी रहा है, लेकिन यह सही है कि यदि आनंदपाल के हाथों में हथकड़ी लगी होती तो शायद वह फरार नहीं हो पाता। कुख्यात अपराधी होने के बावजूद भी आनंदपाल को हथकड़ी इसलिए नहीं लगाई जाती थी क्योंकि अदालत ने छूट दे रखी थी। अदालत के आदेश के बाद पुलिस अपने विवेक से हथकड़ी नहीं लगा सकती है।
ऑडियो टेप चर्चा में:
आनंदपाल की फरारी के बाद से सोशल मीडिया में एक ऑडियो टेप वायरल हो रहा है। इस टेप में राजपूत समाज के एक व्यक्ति का कहना है कि आनंदपाल फरार नहीं हुआ है, बल्कि पुलिस के कब्जे में है और पुलिस एनकाउंटर में कभी भी आनंदपाल को मौत के घाट उतार देगी। टेप में राजपूत समाज को एकजुट होने का आह्वान किया गया है। संबंधित व्यक्ति अपना नाम भी बता रहा है। इस टेप की ओर भी पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511