राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) ए. मुखोपाध्याय और जेल विभाग के डीजी अजीत सिंह ने 8 सितम्बर को अजमेर का दौरा किया। दौरे का मकसद फरार हुए कुख्यात बदमाश आनंदपाल के मामले में जांच करना था। घूघरा स्थित हाई सिक्योरिटी जेल और सेंट्रल जेल का निरीक्षण करने के बाद मुखोपाध्याय ने मीडिया से कहा कि आनंदपाल सिंह की फरारी को पुलिस की लापरवाही नहीं माना जा सकता है, यह तो पुलिस की चूक है। समझ में नहीं आता कि मुखोपाध्याय ने किस नजरिए से ऐसा बेतुका बयान दिया है। गत 3 सितम्बर को पुलिस के जिन अधिकारियों और जवानों ने आनंदपाल की मुफ्त की मिठाई खाई और फिर बेहोश हो गए, क्या यह लापरवाही नहीं है? लापरवाही तो क्या यदि मुखोपाध्याय लीपापोती के बजाए ईमानदारी के साथ जांच करेंगे तो आनंदपाल फरारी में पुलिस की मिलीभगत भी सामने आएगी। आनंदपाल के नहीं पकड़े जाने पर सीएम वसुंधरा राजे भी चिंतित हंै और इसे राज्य सरकार की प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, ऐसे में प्रदेश के गृह सचिव का ऐसा बयान सरकार का मजाक उड़ाता है। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार का गृह विभाग आनंदपाल सिंह की फरारी की जांच किस प्रकार से करता है।
यदि जांच का जिम्मा मुखोपाध्याय जैसे अफसरों के पास ही है तो फिर आनंदपाल सिंह इतनी असानी से पकड़ में नहीं आएगा। मुखोपाध्याय जिस पुलिस की पैरवी कर रहे हैं उसी पुलिस से आनंदपाल दो एके 47 राइफल भी छीनकर ले गया है। गृह विभाग के लिए यह भी शर्मनाक बता है कि जब आनंदपाल अजमेर की हाई सिक्योरिटी की जेल में बंद था, तब कुख्यात अपराधी बाहर से आकर आनंदपाल से मुलाकात कर रहे थे। मुखोपाध्याय का कहना है कि जनहित में अब तक की जांच को गोपनीय रखा जा रहा है। लेकिन गृह विभाग के लिए यह शर्मनाक बात है कि 6 दिन गुजर जाने के बाद भी आनंदपाल पकड़ा नहीं जा सका। इतना ही नहीं उस पिकअप वाहन का भी पता नहीं चला है, जिसमें बैठकर आनंदपाल के समर्थक परबतसर तक आए थे। मुखोपाध्याय और उनके गृह विभाग की काबीलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 6 दिन बाद भी न तो आनंदपाल का सुराग लगा है और न ही पिकअप जैसे बड़े वाहन को खोजा का सका है।
मुखोपाध्याय को यह समझना चाहिए कि आनंदपाल कोई रात के अंधेरे में नहीं भागा, बल्कि दिन दहाड़े राजमार्ग पर पुलिस पर फायरिंग कर भागा है। क्या सरकार के गृह सचिव उस पुलिस का बचाव कर रहे हैं जो मुफ्त की मिठाई खाने की आदि हैं? सीएम वसुंधरा राजे का तो पता नहीं, लेकिन अजमेर के अनेक प्रशासनिक अधिकारी और जागरुक नागरिक मुखोपाध्याय के प्रवृत्ति हो अच्छी तरह जानते हैं। मुखोपाध्याय जब अजमेर के संभागीय आयुक्त थे, तब उनके पास राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष का भी अतिरिक्त चार्ज था। अध्यक्ष का काम मुखोपाध्याय ने किस प्रकार किया, इसको लेकर आज भी शिक्षा बोर्ड में चर्चा होती है। अजमेर का संभागीय आयुक्त रहते हुए ही मुखोपाध्याय ने जयपुर में अपने बंगले की मरममत करवाई। जिन अधिकारियों ने अजमेर के संभागीय आयुक्त कार्यालय से जयपुर के बीच रोजाना चक्कर लगाए उन्हें पता है कि मुखोपाध्याय किस तरह से काम करते हैं। इसलिए शायद मुखोपाध्याय की नजर में अब पुलिस की लापरवाही और मिली भगत कोई मायने नहीं रखती है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511