मोदी और ओबामा,
यहाँ कौनसा मंच साझा है।।
स्मार्ट सिटी सा शहर,
झांसा है भई झांसा है।।
अभी निगम मांग रहा,
यहाँ सुझाव है।।
केवल आखिरी-
दिन का झुकाव है।।
बार बार इसके लिए,
होती रही हैं मीटिंग्स ।।
बनते बिगड़ते रहे नक़्शे,
कागजों पर की चीटिंग्स।।
ख्वाहिश रखने की,
गुस्ताखी से पड़े ताले हैं ।।
सूचि में ही शामिल होने के,
लो पड गये लाले हैं।।
365 दिन कवायद अब,
कौनसी पोथी बाँचेगी ।।
न नौ मन तेल होगा,
और ना राधा नाचेगी ।।
श्राद्धपक्ष के चलते ,
तर्पण कराये कौन ?
अब तो नेता भी ,
हो गये यहाँ मौन ।।
मोदी तो माहिर भये,
बेचने में सपने ।।
उठो सम्भालो होश,
अब तो अपने अपने ।।
न फुटपाथ खाली है,
अतिक्रमणो कीै मारा-मारी।।ं
बिलों में बिजली से,
करंट की यहाँ यारा-यारी।।
कभी मत बात यहाँ,
प्रदुषण की ही कीजिय।।
मनचाहे रुकते टेम्पो-बस,
केवल भर हाथ दीजिए ।।
पानी पूरा पडता नहीं,
कुछ सडकें, सुहातीं ।।
खाक बनेगा स्मार्ट,
बिजली भी जाती-आती ।।
सड़कों पर बोर्ड चमचमाते,
अचरज है विचार कसमसाते।।
कूड़े करकट के बोझ ,
तले दबा ये शहर।।
भला हो कैसे रहा स्मार्ट ,
अब चारों प्रहर ।।
-शमेंद्र जड़वाल.