उज्जैन। दुनिया में जहा देखो, जिसको देखो वो आगे निकलने की होड़ में लगा
हुआ है। जो वो है ही नहीं वो दिखने की कोशिश कर रहा है। लोगों को झूठ के
सहारे ठगने में लगा है, लेकिन वो ये नहीं जानता वो शिकार नहीं कर रहा खुद
शिकार बन रहा है। अपनी सफलता को पाने के लिए झूठ के सहारे आप लोगों को
फंसाने की जो तरकीब लगा रहे हो, कहीं आप खुद तो उसमें नहीं फंस रहे हो?
उक्त वाक्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव जयंतसेनसुरीश्वर जी म.सा. के शिष्यरत्न
मुनि वैभवरत्नविजय जी ने धमलम्बियों को संबोधित करते हुए कहे। मुनि श्री
ने आगे कहा कि आप खुद के सम्मान को प्राप्त करने के लिए सबको गिरते रहते
हो और खुद की चारों तरफ प्रशंसा चाहते हो। खुद की सफलता के लिए खुद की
तारीफ के झूठे पर्चे भी बाजार में चलाने में नहीं हिचकिचाते हो। किसी भी
क्रूरता का कदम उठाने में हिचकिचाते
नहीं, यानि अपने मान सम्मान की इमारत दूसरों के अपमानों पर खड़ी होती है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि सम्मान मिलने पर कैंसर से पीडि़त रोगी भी और
सम्मान का हिस्सा बन जायेगा। जिस सम्मान के लिए कितनों के अपमान पर अपनी
शिखर ईमारत खड़ा किया है, वो नेता अभिनेता भी कई बार तरक्की के लिये
खुशामत में अपना शीश चरणों में झुका देते हैं। सिंहासनों की यात्रा के
लिए कई लोग गरीबों के झोपड़ी में भी राहलेटे हैं। उनके हाथ का रुखा सुखा
भी खा लेते हैं लेकिन सिंहासन की प्राप्ति के बाद बेचारे उन गरीबों के
विश्वास को पैरों तले रोंध देते हैं। जिस सिंहासन के लिए दूसरों के
विश्वास को पैरों तले रोंध दिया, लोगों के अपमानों पर सम्मान का ईमारत
खड़ा किया। उस शीश को किसी के चरणों में गिरा देना शिकार करते शिकारी का
खुद ही शिकार हो जाना है।
अशोक जैन
9424812103