पुष्कर : स्थानीय छात्राओ का टुटा मनोबल

पुष्कर की सरकारी और गेरसरकारी स्कुलो की 200 से अधिक छात्राए कर रही थी मेले के सांस्क्रतिक कार्यक्रमों की तेयारी

अनिल पाराशर
अनिल पाराशर
पुष्कर मेला अब शायद धीरे धीरे स्थानीयो का नही होकर बाहर वालो का होने लग गया हे मेले में अब प्रशासन ने स्थानीय लोगो को मेले से धीरे धीरे दरकिनार करने की रणनिति जो अपना रखी हे उसमे लगभग कामयाब होती जा रही हे अब इसमें किसको दोष दे दोष देने लग जायेंगे और सच्चाई लिखना शुरू कर देंगे तो कपड़े फाड़ने लग जायेंगे आजकल जमाना गुलामी और चापलूसी करने वालो का जो रह गया सच्चाई का तो जमाना ही नही रहा इसलिए सब बोलने से कतराते हे इसलिए सब मोनी बाबा बन रखे हे अब देखो ना मेले में हमारी बेटियों तक को नजर अंदाज कर दिया अपनी कीमती पढाई को छोड़कर गत दस पन्द्रह दिनों से मेले के सांस्क्रतिक कार्यक्रमों की तेयारियो में जुट रखी जब हमारी बेटियों को कहा गया की मेले में एक कम्पनी को जिम्मेदारी दे दी गई हे इसलिए अब आपकी जरूरत नही हे यह सुनते ही सभी का मनोबल टूट गया आखिर कब तक पुष्कर वासीयो को नजर अंदाज करते रहेंगे ।हमारी पुष्कर की 200 बच्चियों को एक दम मेले से बाहर कर दिया आख़िरकार इनका दोष क्या हे इनका दोष यही हे ना कि यह पुष्कर की हे टिक हे मेले को शानदार आकर्षक करने के लिए मेले की जिम्मेदारी निजी कम्पनियों को सोप दी लेकिन कम से कम इन बच्चियों का तो मनोबल नही तोड़ने का था इन्होंने अपनी पढाई छोड़करजो तेयारिया कर रखी थी उसका तो ध्यान रखने था पर अपन भी क्या कर सकते जब स्थानीय जनता जनार्दन ही मोनिबाबा बन रखी हे हम तो बस लिख सकते हे और बोल सकते हे।हम तो चाहते हे हमारा मेला अच्छा हो पर कम से कम हमारी बच्चियों का तो मनोबल मत तोड़ो। क्या आधुनिकता के नाम पर स्थानीय कलाकारों व स्थानीय बच्चों का मनोबल तोडना जायज है । उनके टेलेंट को कुचलना जायज हे।
अनिल पाराशर संपादक बदलता पुष्कर

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