कॉम्पलेक्स सीज करने की परिषद की अवैध कार्यवाही
आठ माह में दूसरी बार जेसीटी बिल्डिंग सीज
समझौता समिति में प्रकरण के बावजूद कार्यवाही
नगर के हाईवे कॉलोनी में नवनिर्मित व्यावसायिक कॉम्पलेक्स जेसीटी परिसर में रविवार को हिमालय परिवार का स्वागत समारोह स्थगित करना पड़ा, क्योंकि नगर परिषद ने इस भवन को शनिवार को ही सीज कर दिया। इससे पहले भी गत वर्ष 18 जून 2015 को यह भवन सीज कर दिया गया था जिसे 70 दिन बाद नगर परिषद ने सीज मुक्त किया। इस भवन में कॉम्पलेक्स मालिक जसवंत चौधरी व डॉ.मनोज जैन की ओर से रविवार 21 फरवरी की सुबह राज्यमंत्री मंडल के नवनियुक्त संसदीय सचिव व कई बोर्ड अध्यक्षों का स्वागत कार्यक्रम किया जाना था। नगर परिषद की सीज कार्यवाही के चलते यह स्वागत सम्मान धरा रह गया। नगर परिषद की इस अफलातूनी कार्यवाही को जहां भवन मालिक द्वारा रिश्वत की मांग पूरी नहीं करने पर की गई कार्यवाही बताया जा रहा है वहीं शहर में इस बात की भी चर्चा है कि रविवार को हिमालय परिवार द्वारा किये जाने वाले सम्मान समारोह में मगरे के दो विधायक सुरेश रावत (संसदीय सचिव) व हरिसिंह रावत (मगरा विकास बोर्ड अध्यक्ष) सहित अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष सरदार जसवीरसिंह (खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड आयोग), शिवशंकर हेड़ा (चेयरमैन अजमेर विकास प्राधिकरण) आदि को भी बुलाया गया था मगर स्थानीय विधायक शंकरसिंह रावत व सभापति बबीता चौहान के कार्ड में नाम तक नदारद थे। इस बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर सभापति ने विधायक के इशारे पर नये भवन को सीज कर दिया। ज्ञात रहे जेसीटी कॉम्पलेक्स के मालिक जसवंत चौधरी हिमालय परिवार द्वारा आयोजित सम्मान समारोह के संयोजक तथा हिमालय परिवार के प्रदेश उपाध्यक्ष है। हिमालय परिवार संस्था संघ व विहिप से जुड़े दिग्गज नेता इन्द्रेश कुमार के शीर्ष पद वाली संस्था है। कार्यक्रम स्थगित होने की प्रदेश के राजनैतिक गलियारों तक में गूंज सुनाई दिये जाने की खबर है।
शनिवार 20 फरवरी 2016 को नगर परिषद ने जेसीटी भवन को दुबारा सीज कर लिया। इससे पहले इसी भवन को 18 जून 2015 को साइड सेटबैक में निर्माण करा लेने के कारण सीज कर लिया था जिसे डीएलबी के निर्देश पर 28 अगस्त 2015 को सीज मुक्त कर पूरे मामले को समझौता समिति के सामने रख दिया जो अभी भी विचाराधीन है।
सीज कार्यवाही अवैध….
शनिवार को नगर परिषद की अतिक्रमण हटाओ टीम ने एसआई बुद्धाराम सहित पुलिस जाब्ता ले जाकर जेसीटी कॉम्पलेक्स को सीज कर लिया और उस पर सीज की कार्यवाही अंकित करने के साथ ही मुख्य द्वार पर ताले लगाकर सीलचपड़ी लगा दी। बताया जाता है कि 8 माह पूर्व जब 18 जून 2015 को कॉम्पलेक्स सीज कर 28 अगस्त 2015 को वापस खोला गया था तभी इसे वापस खोलने का जो आधार तय किया गया उसके मुताबिक भवन मालिक से करीब क्व4.45 लाख की राशि इसीलिए ली गई कि उन्होंने साइड सेटबैक को कवर कर लिया था जिसकी पेनल्टी लेकर मामला समझौता समिति में रखा गया। यह राशि लेने के बाद भवन मालिक को रिवाइज नक्शा पेश करने को भी कहा गया। अगर नगर परिषद को इस प्रकरण में कॉम्पलेक्स निर्माता के साइड सेटबैक को नियमित कर वैध करने की दिशा में आगे नहीं बढऩा होता तो वह भवन मालिक से इतनी बड़ी रकम क्यों लेती? उसे रिवाइज नक्शा पेश करने को क्यों कहती? और सीज किया भवन सीजमुक्त क्यों किया जाता?
वैसे भी एक बार सीज कर लेने के बाद दुबारा उसी भवन को उन्हीं बिन्दुओं पर अवैध ठहराकर तो सीज किया ही नहीं जा सकता जबकि उन बिन्दुओं का निस्तारण करने के लिए मामला समझौता समिति में रख दिया गया। चूंकि प्रकरण समझौता समिति में है, इसलिए बिना समझौता समिति में सुनवाई किये इसे सीज करना निजी रंजिश बताई जा रही है।
आयुक्त का घटिया आचरण……
नगर परिषद आयुक्त ने 6 जनवरी 2016 को जसवंत चौधरी को एक नोटिस देकर उनके जेसीटी कॉम्पलेक्स के लिए 28 अगस्त 2015 को दिये गये वचनबद्धता पत्र के हवाले से कहा गया कि उसके बिन्दु संख्या 5 की आपने पालना नहीं की है जबकि बिन्दु संख्या 5 में न तो भवन मालिक ने अपने भवन के किसी भी हिस्से को अवैध माना और उसे हटाने की बात स्वीकारी थी। इसके बावजूद आयुक्त ने उन्हें सीज किये गये परिसर को तोडऩे, हटाने तथा पुन: सीज करने के नाम पर यह कार्यवाही अंजाम दे दी।
वास्तविकता यह है कि जेसीटी के मालिक जसवंत चौधरी ने जब अपने प्रकरण को राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर दर्ज कराया था तो इस मामले में सीएम कार्यालय से यह शिकायत निदेशक डीएलबी को भेजी गई है। डीएलबी ने आयुक्त से प्रकरण पूछा तो उन्होंने बताया कि भवन निर्माण पर लगाई गई रोक हटा दी गई है और निर्माण स्वीकृति 22 अप्रेल 2013 को ही जारी कर दी गई। इसमें आयुक्त ने कहीं भी यह बात नहीं लिखी कि कॉम्पलेक्स निर्माता ने भवन निर्माण सडक़ में अतिक्रमण कर बनाया। लेकिन अब राजनैतिक रूप से इस झूठ को फैलाया जा रहा है कि कॉम्पलेक्स का निर्माण सडक़ में अतिक्रमण कर बनाया गया।
केवल यही कॉम्पलेक्स क्यों?……
नगर परिषद आयुक्त द्वारा जेसीटी कॉम्पलेक्स को सीज करने की कार्यवाही के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि जब नगर परिषद में एक दर्जन कॉम्पलेक्स के कथित रूप से अवैध निर्माण व सीज करने की सूची बनी हुई है तो शनिवार को केवल जेसीटी कॉम्पलेक्स को ही सीज क्यों किया गया?
अगर नगर परिषद यह कहती है कि इस कॉम्पलेक्स का रविवार 21 फरवरी को उद्घाटन होना था, तो यह बात इसलिए भी बेसिर-पैर की और सरासर झूठी है क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। बहरहाल यह सच है कि 21 फरवरी को कॉम्पलेक्स में हिमालय परिवार की ओर से राज्य मंत्रिमंडल के नव प्रभार वाले मंत्रियों तथा कुछ आयोगों के नये बने अध्यक्षों का स्वागत कार्यक्रम रखा गया था और ऐसा कोई भी सामाजिक कार्यक्रम अपने स्वामित्व वाले परिसर में करना कतई अपराध नहीं है।
व्यावसायिक भूमि में सेटबैक नहीं……..
नगर परिषद सीमा क्षेत्र में यदि आवासीय भवन निर्माण की मंजूरी ली जाती है तो उसमें साइट सेटबैक छोडऩे का प्रावधान है लेकिन यदि कोई इस भूमि का व्यावसायिक उपयोग परिवर्तन कराकर निर्माण कराता है तो वह इस प्रावधान से मुक्त है। यही वजह है कि व्यावसायिक भवन निर्माण कराने वाले भारी रकम देकर नगर परिषद से निर्माण स्वीकृति लेते हैं क्योंकि करोड़ों की बेशकीमती भूमि को साइट सेटबैक छोडक़र कोई कॉम्पलेक्स बनायेगा तो करोड़ों की भूमि अनुपयोगी नहीं छोड़ सकता। इस लिहाज से जेसीटी को भी साइट सेटबैक निर्माण से मुक्त रखा जाना है। वैसे भी साइट सेटबैक कवर कर लेने की कॉम्पलेक्स मालिक ने पैनल्टी अदा करते हुए क्व4 लाख 44 हजार 533 की रसीद कटा दी। इसके बाद सीज किये गये कॉम्पलेक्स को सीज मुक्त कर दिया गया और मामले को समझौता समिति में रख दिया।
अब जबकि समझौता समिति की बैठक ही नहीं हुई और कॉम्पलेक्स मालिक ने जो वचनबद्धता पत्र दिया, वह भी समझौता समिति के लिए ही है और उसे ही इस प्रकरण के शेष बिन्दुओं का निस्तारण करना है जिसमें यह बात स्वयंसिद्ध मानी जाती है कि कॉम्पलेक्स के निर्माण संबंधी सभी अनियमितताएं निस्तारित कर नक्शे को नये स्वरूप में मंजूरी देकर वैध करने पर सहमति हो गई है और उसके लिए जरूरी राजस्व परिषद कोष में जमा हो चुका है। इसके बाद केवल औपचारिकताओं की खानापूर्ति ही बचती है। लेकिन आयुक्त ने राजनैतिक दुराग्रह और निजी रंजिश व रिश्वत की मोटी रकम नहीं मिलने के चक्कर में कॉम्पलेक्स को दुबारा सीज कर दिया जो आज तक कभी कही भी किसी स्थानीय निकाय प्रशासन ने नहीं किया।
निजी कार्यक्रम के कार्ड में नाम छपाने की धौंस किसलिए?………
सुना गया है कि जेसीटी कॉम्पलेक्स के मालिक जसवंत चौधरी पर हिमालय परिवार के प्रदेश उपाध्यक्ष व कार्यक्रम संयोजक के नाते सम्मान समारोह में विधायक व सभापति को बुलाकर उनका भी सम्मान नहीं करने और कार्ड में नाम नहीं छपाने के कारण नफरत की कार्यवाही करते हुए चौधरी को अपमानित करने के लिए यह सब किया गया। लेकिन यह किस नियम में है कि व्यक्ति अपने निजी कार्यक्रमों में विधायक या सभापति को आमंत्रित करे और कार्ड दें। सम्मान पाने के लिए योग्यता व विनम्रता बढ़ानी पड़ती है। ब्लैकमेल करने और वाजिब काम के लिए रिश्वतखोरी करने वालों को कौन सम्मानित करेगा जो ऐसी धौंस दिखाई जा रही है।
नगर परिषद ने डेढ़ माह में भी संशोधित मानचित्र क्यों नहीं किया स्वीकृत?……
नगर परिषद अपने आपको पाक दामन बता तो रही है लेकिन उसके चेहरे पर कितनी कालिख पुती है यह जगजाहिर है। जब नगर परिषद को कॉम्पलेक्स मालिक ने 28 अगस्त 2015 को ही करीब क्व 4.45 लाख जमा करा दिये और नगर परिषद ने सीज कॉम्पलेक्स को खोलकर मामला समझौता समिति के सामने रखते हुए कॉम्पलेक्स मालिक को संशोधित मानचित्र पेश करने को कह दिया तब कॉम्पलेक्स मालिक ने 8 जनवरी 2016 को चार प्रतियों में नक्शा स्वीकृति हेतु पेश कर दिया। इसके बावजूद उसके संशोधित मानचित्र को नगर परिषद द्वारा स्वीकृत करने की कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई?
इतना ही नहीं नगर परिषद को कॉम्पलेक्स मालिक ने 16 नवम्बर 2015 को एक नोटिस देकर उसके प्रकरण में हुई कार्यवाही की पत्रावली मांगी तथा सभापति द्वारा इस मामले में लिखे गये युटीलिटी नोट, 9 नवम्बर व 10 नवम्बर को हुई समझौता समिति की बैठक का एजेंड़ा व उसमें रखे प्रकरणों की पत्रावली तथा समझौता समिति द्वारा लिये गये निर्णयों की प्रतिलिपियां मांगी लेकिन प्रार्थी को दुबारा सीज करने तक भी नहीं लौटाई। बल्कि सच तो यह है कि 28 अगस्त 2015 के बाद कॉम्पलेक्स के भौतिक स्वरूप में ही कोई परिवर्तन नहीं किया गया। तो फिर यह सब कार्यवाही किसलिए?
– रामप्रसाद कुमावत
‘निरन्तर’ दैनिक ब्यावर।