मातृ भाषा संस्कारो की जननी और वाहक है

DSC_0197बाड़मेर / राजस्थानी भाषा एक प्राचीनतम भाषा है ।मातृ भाषा संस्कारो की जननी और वाहक है ।: बोली फूटती है, तब भाषा जन्म लेती है,उक्त विचार विश्व मातृ भाषा दिवस की पूर्व संध्या पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघरशा समिति बाड़मेर के तत्वावधान में आयोजित विच्चर गोष्ठी में राजस्थानी भाषा समिति के प्रदेश उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने व्यक्त किये ।भाटी ने कहा कि बोलचाल में मातृभाषा का उपयोग व्यक्ति की सादगी व् सौम्यता का परिचय देता है .
मुख्य वक्ता अखेदान बारहट ने कहा कि मातृभाषा में शब्दों का प्रवाह तीव्रता से होता है ।राजस्थान कि सांस्कृतिक साहियिक इतिहासिक विरासत को समझने समझाने में मातृभाषा का उपयोग प्रभावी रहता है ।
समिति के जिला सह संयोजक नरेश देव सारण ने कहा कि बिना मातृभाषा समाज का एक बड़ा वर्ग संवाद हीनता का शिकार होता है । मात्र भाषा में वेदव्यास , कबीर , मीरा ने जो काव्य रचे है उन रचनाओ को अगर वे अन्य बाषाओ में रचने कि कोशिश करते तो शायद सफल नहीं होते .मातृ भाषा पर डायल सोनी कि ये पंक्तिया बहुतयाद आती है ” मू निज वाणी छोड़ सिख लू हिंदी भी तो लाभ कई , थारी अंगेरजी री ज़िद सूं हिंदी भी तो हार गयी “।
इस अवसर पर बाबू भाई शेख ,दुरजन सिंह गुडीसर ,रमेश सिंह इन्दा ,जय श्री खत्री ,हितेश मुंदरा ,छोटू सिंह पंवार ,नरेंद्र खत्री ,एडवोकेट दलपत सिंह ,रमेश कड़वासरा ,रविन्द्र चौधरी ,शाहिद हुसैन ,नरपत सिंह लंगेरा ,मगाराम माली सहित समिति के कई कार्यकर्त्ता उपस्थित थे
शिक्षाविद एवं जिला उप पाटवी अनिल सुखानी राजस्थानी भाषा को आठवी अनुसूची में सम्मिलित करने और इसको मान्यता प्रदान करने की जरुरत पर बल दिया । । isaseकार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गों के युवाओ एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया ।

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