बच्चे की जान बचाने में पड़े जान के लाले!

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
९ मई को प्रातः करीब सात बजे मैं और डॉ.एस के अरोडा सर रोज़ की तरह वीर उध्यान तक पैदल घूमने गए. लौटते वक़्त सागर विहार कॉलोनी में सामने से एक भयावह दृश्य नज़र आया. एक बच्चा 7-8 साल का साइकल पर लहराता हुआ और चिल्लाता हुआ हमारी तरफ आ रहा था उसके पीछे एक गाय भागती हुई उसका पीछा कर रही थी. अचानक गाय ने लात मारकर उसको गिराया और अपने पेरों के नीचे दबोचने की कोशीश में ही थी की मैंने तुरंत उसकी साइकिल दोनों हाथों से पकड़ कर हवा में उठाई और गाय पर तीन चार वार कर डाले.
गाय ने बच्चे को तो छोड़ा और मुझे पीछे खदेड़ने लगी और सींग घुमाये. इसी बीच अरोड़ा सर ने बच्चे को घसीट कर सामने एक घर के अधखुले फाटक में धकेला और एक पत्थर उठा कर गाय पर मारा. मैं गाय के खदेड़ने से कच्ची जमीन पर गिर पडा, साइकिल भी छूट गयी और गाय पूरे जोश से मुझे मारने मेरे ऊपर आने को हुई, ठीक उसी वक़्त मेरे हाथ में एक भाटा आ गया जिसे मैंने उस पर फेंक दिया, संयोगवश एक भाटा अरोड़ा सर ने भी उसी वक़्त मारा. इस डबल चोट से गाय थोडा संभालती तब तक मैं खडा हो गया और फिर साइकिल को हवा में उठाते हुए ढाल बना ली.
गाय ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कुछ सोचा और फिर आत्म समर्पण के भाव से ढीली पड़ कर पीछे हठने लगी. लेकिन कुछ दूर जाकर फिर दुबारा दौड़ती हुई मारने को आई, तब मैनें भागकर एक मकान में प्रवेश कर जान बचाई.
इस तरह मामूली खरोंचों और मांस पेशी की चोट खाकर बच भी गए पर………. ???
अब साता पूछाई भी खूब हो रही है, सब मेरे लाड कर कर रहे हैं, गर्वान्वित भी हो रहे हैं. लेकिन………..
१. पहला सवाल ये है की आवारा जानवर कब तक आम जन के जीवन से खेल कूद करते रहेंगे? मालिक लोग गायों को खाने पीने को तो मोहल्लों व सडकों पर छोड़ देते हैं, और उन्हें दू कर दूध खुद पीते या बेच देते हैं. याने गायों का खाना दूसरों के भरोसे !
2. सागर विहार के निवासियों का कहना है की उनके वार्ड के वर्तमान पार्षद महोदय कोई और न हो कर शहर के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ही हैं. उनके वार्ड में साफ़ सफाई तो अन्य वार्डों के मुकाबले उच्च दर्जे की हो रही है, परन्तु गायों का आतंक दुखदायी बना हुआ है. बच्चे के माँ बाप व कालोनी वासी पूछने लगे की “प्रभावशाली मेयर के होते हुए भी ये हाल है तो किसी पार्षद से तो क्या उम्मीद रखें.”
3. आये दिन सड़कों पर सूअर, गाय, भेंस, कुत्ते, बिल्ली आदि से जो दुर्घटनाएं हो रही हैं उनका कौन जिम्मेदार है? आखिर ये सब कब खत्म होगा?
४. नगर निगम की एनिमल ट्रेपिंग वेहिकल याने जानवर पकड़ने के पिंजड़े नुमा ट्रक और स्टाफ का प्रावधान होते हुए भी मोहल्लों व सड़कों पर भारी तादाद में इन जानवरों का होना बड़ी परेशानी का सबब है.
इन सब बातों को देखते हुए क्या हमारे शहर के आकाओं को इस समस्या का निदान करने की कभी फुर्सत मिलेगी?? स्मार्ट सिटी की बिमारी से तो शहर का हर शक्श ग्रसित था ही जिसका भूत भी अब उतरने लग गया है, पर सोचने की बात ये है की अपने शहर को स्मार्ट बनाने के लिए क्या कोई दूसरा आएगा?? इन समस्याओं को हमारे शहर के रहनुमा नहीं सुलझाएंगे तो और कौन सुलझाएगा??

डॉ. अशोक मित्तल,
मेडिकल जर्नलिस्ट,
मास्टर इन जर्नालिस्म एंड मास कम्युनिकेशन

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