1 नवम्बर 1956 की कड़वी यादे

एक नवम्बर को अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान में विलय

ajmer map1नवम्बर 1956 और राजस्थान एकीकरण सातवे चरण के साथ सांतवा फेरा लगाकर अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान से गठजोड़ कर ही दिया।इस विलय के साथ मेरवाड़ा क्षेत्र के साथ आज तक किसी के अधीन नही रही मगरा क्षेत्र को राजस्थान में जोड़ा गया पर हमे मिला क्या ये जानकर हैरानी होगी।
राजस्थान में शामिल करने के साथ कई विषदंत भी बो दिए गए, जो नासूर बनकर उभर रहे है।
जैसा की विदित है की अंग्रेज रावत बाहुल्य इस क्षेत्र में नयाशहर जिसे अब ब्यावर कहते है जो की “बीअवेयर” से बना है जिसका अर्थ है “सावधान हो जाओ”। दक्षिणतम छोर पर महाराणा प्रताप के जीवन के एकमात्र प्रथम व अंतिम विजय युद्ध स्थली दिवेर -छापली है जिसे “डीअवयर” कहकर पुकारा जाता था। जिसका अर्थ होता था इसके बाद दक्षिण क्षेत्र में कोई सावधानी की जरूरत नही है। इस रावत बाहुल्य मगरा क्षेत्र से अंग्रेज भलीभाँति परिचित थे। जहा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से कई वर्ष पूर्व ही बरार के शहीद राजू सिंह रावत ने आंदोलन का शंखनाद किया जो भारत का पहला शंखनाद करने वाला व्यक्ति था । प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने हिलस्टेशन टॉडगढ़ को कर्मस्थली बनाया।
इस प्रकार रावतों की शक्ति को छिन्न-भिन्न करने के लिए मगरा का बेतुका बेमेल बंदरबांट बटवारा (परिसीमन )करने का खाका बना डाला। इस पर उनका विचार था की इन्हें चार भागो में बाट दो और राज करो।
ऐसा ही हुआ और मगरा क्षेत्र को अजमेर क्षेत्र में दक्षिण में टॉडगढ़ तक, उदयपुर क्षेत्र में उत्तर में ब्यावर तक , जोधपुर के अधीन रायपुर सेंदड़ा क्षेत्र कोटकिराना भीम के पास तक व भीलवाड़ा के बदनोर आसीन्द मांडल क्षेत्र में भीम के आस पास के सन्निकट क्षेत्र बाट दिए गए।।
आज मगरा क्षेत्र चार विभिन्न जिलो व तीन संभाग क्षेत्रो में विभाजित है।जबकि मगरा क्षेत्र का विस्तार मुख्यत ब्यावर से दिवेर तथा सोजत से आसीन्द का है। इसका अपना अलग एक जिला हो सकता था। उस समय बोये “विषदंत” आज नासूर बनकर उभर चुके है। ब्यावर के नजदीक क्षेत्र बोरवा ,शेखावास, बार ,डुंगरखेड़ा, सारोठ, बिलियावास, लगेतखेड़ा आज राजसमन्द जिले से सुदूर उत्तर में है। वही सेन्दडा क्षेत्र के कई गांव ब्यावर के आसपास सटे होने के बावजूद पाली जिले में सम्मिलित कर रखा है। इसी तरह भीम क्षेत्र के नजदीक गांव कोटकिराना, कललिया, बगड़ी पाली में है। इसी तरह अजमेर जिले के दूरस्थ गांव भीम राजसमन्द जिले चहुओर सीमा से गिरे होने के बावजूद भी बंदरबांट की चाल भालिया क्षेत्र बड़ाखेड़ा, बराखं, बामनहेड़ा, बंजारी व टॉडगढ़ क्षेत्र के मालातों की वेर व माथुवाड़ा दूरियों के जमले में फंसे है। इसी तरह भीम राजसमन्द से महज 1 किमी दुरी पर स्तिथ करेड़ा, मांडल, आसीन्द, बदनोर के गांव भीलवाड़ा में डाल रखा है। इसी तरह मारवाड़ जंक्शन पाली क्षेत्र के फुलाद, करमाल ,जोजावर भी विभाजन के दंश को झेल रहे है।

इस विभाजन के दंश को दूर करने के लिए चालीस साल पहले से ब्यावर को जिला बनाने की मांग उठी पर सरकारे बंदरबांट को सही करने के मूड में नजर नही आई। आज ब्यावर राजस्थान का तेरहवा बड़ा शहर “नया शहर” है जबकि राजस्थान में तेतीस जिले बन चुके है। इसमें से बीस जिला मुख्यालय ब्यावर शहर से छोटे है। इस तरह सरकार भी रावतों को अलग- थलग पड़े रखना चाहती है। एक कटु बात राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने ब्यावर क्षेत्र में सामाजिक कार्यक्रम में शिरकत करने आये तब “ब्यावर को रावतों का जिला कभी भी नही बनाने की” बात कही ।क्योंकि ब्यावर जिला बना तो रावत एक जिले में हो जायेंगे जो आज अलग अलग जिलो में है।

जसवन्त सिंह रावत”मण्डावर”
संस्थापक/अध्यक्ष- मगरा विकास क्रांति मंच, राजस्थान
प्रदेश प्रवक्ता- सम्राट पृथ्वीराज चौहान रावत परिषद
मो 9610028051

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