*अजमेर* की जो धरा है थोडा हटके ज़रा है

नरेश रावलानी
नरेश रावलानी
शहर ये *खूबियों* और *रस-स्वादों* से भरा है
स्टेशन से निकलते ही मदार गेट दिखता है
जहाँ पर शरबत ओर आचार बिकता है
गेट में घुसते ही पुरानी मंडी नज़र आती है
इस सकड़ी गली को देख रूह कांप जाती है
एक बात दिमाग को बरबस कर जाती है
कैसे इस गली में औरतें दोने चाटती है
ये गली प्राचीन *अजमेर* की याद दिलाती है
यहां के प्रसिद्ध सोनहलवे से मिलवाती है
नया बाजार भी अपने दो रूप दिखाता है
दिन में ये सोने चांदी ओर बर्तनो का गढ़ कहलाता है
शाम ढलते ढलते चौपाटी सा नज़र आता है
जहां पावभाजी, छोला-कुल्चा, इडली, टिकिया मिलती है स्वाद
सर्दी में चरी की चाय और सूप मजा लीजिये जनाब
गर्मी में मिल्क बादाम ,फालूदा, सोडा सीकंजी गोला है लाज़वाब
*अजमेर* की कड़ी कचोरी का नहीं है कोई तोड़
नया बाजार चोपड़ हो या केसरगंज का मोड़
बरसात का मौसम अलग ही मज़ा लाता है
बिसिट के दाल पकौड़ों में आनंद आता है
लोग कहते है समझ समझ का फेर है
इसीलिए इस नगरी का नाम *अजमेर* है
लेकिन ये नगरी *स्वाद और सुगंध* का ढेर है
इसीलिए इस नगरी का नाम *अजमेर* है

प्रस्तुति
नरेश रावलानी

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