सिंगारिया की धमाकेदार शुरुआत का प्रतीक है इंदिरा स्मारक

अजमेर में रेलवे स्टेशन रोड पर जिस इंदिरा गांधी स्मारक की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है, वहां पर इंदिरा गांधी की मूर्ति स्थापित होने पर उसका श्रेय भले ही नगर सुधार न्यास सदर नरेन शहाणी भगत के खाते में जाए अथवा तुरत-फुरत में एनओसी देने के लिए नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया की वाहवाही हो, मगर कम लोगों को ही पता है कि असल में यह स्मारक केकड़ी के पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया की राजनीति में धमाकेदार शुरुआत की यादगार है।
हुआ ये था कि तकरीबन पच्चीस साल पहले जिन दिनों सिंगारिया कांग्रेस में सक्रिय हुए ही थे तो उन्होंने अपनी एंट्री धमाकेदार तरीके से करने के लिए स्टेशन रोड पर मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर इंदिरा गांधी के फोटो के साथ उनके लोकप्रिय बीस सूत्र का एक भित्ति चित्र लगवाया था। इस पर विवाद हुआ और बाद में विवाद तब ज्यादा बढ़ गया, जबकि उसके ऊपर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ भी लगा दिया गया। बाद में जब टैम्पो स्टैंड के लिए स्कूल के मैदान की जमीन ली गई तो दीवार तोड़े जाने के सबब इसे हटाने की नौबत आ गई। मगर कांग्रेसी अड़ गए। उन दिनों सिंगारिया, पूर्व विधायक हाजी कयूम खान, महेन्द्र सिंह रलावता, महेश ओझा, कैलाश झालीवाल वाली सशक्त लॉबी ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। बड़ी जद्दोजहद हुई। आखिर भित्ति चित्र वाली दीवार के हिस्से को छोड़ते हुए दोनों तरफ मार्ग निकालना पड़ा। बाद में पुराने भित्ति चित्र के ठीक पीछे नया भित्ति चित्र व्यवस्थित तरीके से बनवाया गया और तब से यह स्थान इंदिरा गांधी के स्मारक के रूप में स्थापित हो गया, जहां पर कांग्रेस का एक गुट जयंती व पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आया करता था।
यहां पर मूर्ति की स्थापना करने की बात तो बहुत बाद में आई। नगर सुधार न्यास ने वर्ष 2002 में मोइनिया इस्लामिया स्कूल के बाहर प्रतिमा लगाने के आवेदन किया था। इस पर संभागीय आयुक्त कार्यालय ने नगर सुधार न्यास को 16 अक्टूबर 2003, 6 जुलाई 2004, 6 सितंबर 2004, 7 अक्टूबर 2004 और फरवरी 2005 को पत्र लिखकर निगम की एनओसी पेश करने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रदेश में भाजपा का शासन होने की वजह से न्यास ने केवल 7 अप्रैल 2004 को पत्र लिखकर निगम से एनओसी देने का आग्रह कर इतिश्री कर ली। निगम में भाजपा का बोर्ड होने की वजह से मामला लटका रहा।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों गांधी जयंती पर कांग्रेस की एक सभा में मूर्ति स्थापना के मुद्दे को मुख्य रूप से शहर कांग्रेस महामंत्री प्रताप यादव ने उठाया था। इससे पहले भी वे अनेक बार इस मुद्दे पर राज्य सरकार से पत्र व्यवहार करते रहे हैं। उनका मुद्दा था कि जब केन्द्र व राज्य में कांग्रेस की सरकार है और नगर निगम में मेयर व न्यास में सदर कांग्रेस के हैं, तब भी क्या इंदिरा गांधी की प्रतिमा नियत स्थान पर लगने के इंतजार में न्यास में ही पड़ी रहेगी। इस पर भगत ने जैसे ही सफाई दी कि न्यास ने नगर निगम को इस संबंध में पत्र लिखा, लेकिन निगम स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है, तो बवाल हो गया। निगम में नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना ने इस बात पर नाराजगी जताई की बेमौके ऐसे मुद्दे न उठाए जाएं। इसके साथ ही सत्यावना ने भगत के इस बयान को भी गलत ठहराया कि न्यास ने प्रतिमा के संबंध में निगम के मेयर कमल बाकोलिया को कोई चिट्ठी लिखी है। उन्होंने दावा किया कि यूआईटी सदर चिट्ठी बता दें तो निगम की साधारण सभा में प्रस्ताव पारित कर प्रतिमा स्थापित करवाने के संबंध में कार्रवाई करेंगे। वस्तुस्थिति ये थी कि प्रस्ताव निगम के पास लंबित पड़ा था। जाहिर सी बात है कि वे इस मुद्दे को हथियाना चाहते थे, ताकि मूर्ति लगवाने में अपनी भूमिका भी दर्ज करवा सकें।
बहरहाल इस हलचल का परिणाम ये रहा कि मेयर कमल बाकोलिया ने दस साल से लंबित मामले का निबटारा कर दिया। बाकोलिया ने 6 सदस्यों की एक कमेटी का गठन कर दिया, इसमें तीन भाजपा के भागीरथ जोशी, दलजीत सिंह व दिनेश चौहान और तीन कांग्रेस के नरेश सत्यावना, चंद्रशेखर बालोटिया व श्रीमती चंद्रकांता पारलेचा का शामिल किया गया। इस कमेटी ने मेयर की अध्यक्षता में हुई बैठक में सर्वसम्मति से श्रीमती गांधी प्रतिमा लगाने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी। अब उम्मीद की जा रही है कि मूर्ति जल्द ही लग जाएगी। इसमें भी पेच ये आ सकता है कि मूर्ति के नीचे लगाए जाने वाले शिलापट्ट पर नाम किस-किस के आएंगे।
चलते-चलते यह बता दें कि जिस प्रकार तीन भाजपा पार्षदों ने मूर्ति लगाने के प्रस्ताव पर सहमति दी है, उसको लेकर भाजपा पार्षद दल में अंतर्विरोध चल रहा है। बताते हैं कि उन्होंने डिप्टी मेयर अजित सिंह तक को विश्वास में नहीं लिया है। इसको लेकर पार्षदों में गरमागरम बहस चल रही है, जिसका अंत क्या होगा, पता नहीं।
-तेजवानी गिरधर

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