यूं तो हर समाज राजनीतिक विचारधारा मे बंटा होता है , लेकिन जिस तरह इन 3 दिनों में विभिन्न समाजों के लोग व्यक्तिगत स्तर एक दूसरे का विरोध करते दिखे, यह संकेत खतरनाक है। मुख्यमंत्री अघोषित तौर पर अजमेर उपचुनाव के लिए लोगों की नब्ज टटोलने आई थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह ऐसा कर पाई ? क्या भाजपा से जुड़े लोगों ने उन्हें सच्चाई बताई होगी की आम आदमी किन समस्याओं से और सरकार की किन नीतियों से परेशान हैं ? कहा तो ये भी जा रहा है कि जिस समाज के लोगों ने कुछ सच्चाई बोलने की कोशिश भी की तो उन्हें उन्हें अन्य लोगों ने इशारों-इशारों में चुप करा दिया।
क्या चेत गई बना की
राजनीति में एक शब्द काम में लिया जाता है इसकी तो चेत गई। क्या सुरेंद्र सिंह शेखावत यानी लाला बना के लिए यह शब्द मुख्यमंत्री की यात्रा के दौरान खरा उतरा है। करीब 2 साल भाजपा से बाहर रहने के बाद पिछले महीने ही पार्टी में लौटे शेखावत को जिस तरह इन 3 दिनों में सीएम ने प्राथमिकता दी, उससे भाजपा के कई नेताओं की त्योरियां चढ़ गई है। वैसे जिस विधानसभा क्षेत्र में जनसंवाद कार्यक्रम रखा गया था ।वहां के नेताओं को ही उसमें शामिल होने की इजाजत थी । लेकिन लाला बना किशनगढ़ ,पुष्कर और अजमेर उत्तर तीनों के जनसंवाद में ही मुख्यमंत्री के आसपास नजर आए। अजमेर उत्तर में तो उन्होंने देवनानी की नींद ही उडा दी। कारण अजमेर उत्तर से भाजपा टिकट के वह हमेशा दावेदार रहे है। हालांकि पार्टी के लोगों का ही कहना है कि राजे ने शेखावत को राजपूत चेहरे के रूप में अपने साथ यह संदेश देने को रखा कि राजपूत उनसे नाराज नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या शेखावत अजमेर जिले में राजपूतों के इतने बड़े नेता हैं कि उनके साथ होने को इस नजर से देखा जाए कि राजपूत धीरे-धीरे मान रहे हैं? एक नेता का कहना था कि लाला बना को इसीलिए पार्टी में वापस शामिल किया गया था की वे CM के दौरे के समय राजपूतों का चेहरा बन सके । 2 साल तक वनवास भोगने के बाद 3 दिन मिले महत्व के कारण बना क्या कुछ राजनीतिक फायदा हासिल कर पाएंगे, यह भी देखना होगा । लेकिन कुछ लोग यह सवाल भी उठा रहे हैं कि कहीं इस जल्दबाजी से शेखावत का राजपूत समाज में विरोध शुरू ना हो जाए।
