महफिल की सदारत कर सकते है दीवान परिवार के सदस्य

नाजिम पीरजादा ने मौरूसी अमले को लिखा पत्र

नवाब हिदायतउल्ला
अजमेर,: (नवाब हिदायत उल्ला) सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह में दरगाह दीवान की सदारत में होने वाली महफिल की सदारत दीवान परिवार के सदस्य व उनके प्रतिनिधि अपरिवर्जनीय परिस्थिति में कर सकते है।
दरगाह कमेटी के नाजिम आई बी पीरजादा ने बुधवार को मौरूसी अमले के अध्यक्ष हाजी मोहम्मद शब्बीर खान को एक पत्र लिखकर अवगत कराया कि दरगाह में गुरुवार को होने वाली साप्ताहिक महफिल में अमला अपने हस्बे दस्तूर ड्यूटी को अंजाम दे। उन्होंने बताया कि दरगाह के सज्जादानशीन बाबत जो विवाद उत्पन्न हुआ था इस संबंध में मंगलवार को वर्तमान सज्जादानशीन सैयद जैनुल आबेदीन अली खां द्वारा मीडिया के सामने स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने अपने पुत्र को नायब सज्जादानशीन नियुक्त नहीं किया है। उनके द्वारा केवल उत्तराधिकारी घोषित किया है जो उनका पारिवारिक मामला है। पत्र में नाजिम आई बी पीरजादा ने मौरूसी अमले को यह भी अवगत कराया कि न्यायालय मुंसिफ एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट अजमेर नगर (पश्चिम) में दीवानी प्रकरण संख्या 89/78 में न्यायालय द्वारा 25 सितम्बर 1982 को एक आदेश जारी कर स्पष्ट अंकित किया है कि परम्परा व रीति रिवाज के अनुसार सज्जादानशीन के प्रतिनिधि व परिवार के सदस्य द्वारा अपवर्जनीय परिस्थितियों में उसके पद का कार्य करवाया जा सकता है। इसलिए महफिल से संबंधित समस्त मौरूसी अमला दरगाह में होने वाली साप्ताहिक महफिल में हस्बे दस्तूर ड्यूटी अंजाम देते रहे है।

न्यायालय के फैसले को लेकर विवाद :
मौरूसी अमले को लिखे पत्र में नाजिम पीरजादा द्वारा जिस न्यायालय के फैसले का हवाला देकर दीवान के प्रतिनिधि व परिवार के सदस्यों द्वारा कार्य को अंजाम देने का उल्लेख किया गया है उसको लेकर वैधानिक विवाद उत्पन्न हो गया है। न्यायालय द्वारा 25 सितम्बर 1982 को सैयद खालिद मोइनी व दरगाह कमेटी के बीच चले एक वाद में टीआई पर फैसला सुनाते हुए यह आदेश जारी किया था लेकिन उक्त मुकदमा 25 अगस्त 1983 को अदम पैरवी में खारिज हो गया। कानून के जानकारों का कहना है कि जब मूल मुकदमा ही निस्तारित हो गया तो अंतरिम आदेश प्रभावी नहीं रहते है।

इनका कहना है :
मौरूसी अमले को जो पत्र लिखा गया है उसमें न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया है वह आज भी प्रभावी है। दरगाह कमेटी द्वारा इस मुकदमे में पैरवी करते हुए जवाब प्रस्तुत किया था। वादी द्वारा अदम पैरवी में वाद खारिज होने से फैसले की वैधानिकता समाप्त नहीं हुई है। इसलिए मौरूसी अमले को सूचना प्रेषित की गई है।
…..आई बी पीरजादा, नाजिम दरगाह कमेटी।

न्यायालय में जब वाद प्रस्तुत किया जाता है तब टीआई पर अंतरिम आदेश न्यायालय द्वारा दिया जाता है लेकिन जब मूल वाद निस्तारित हो जाता है तो टीआई पर जारी किया गया आदेश स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
…… एन के डोसी, वरिष्ठ अधिवक्ता।

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