-किसानों को मुफ्त बिजली देने, ब्राह्मी नदी का पानी बीसलपुर तक लाने, बीसलपुर बांध की ऊंचाई बढ़ाने जैसी घोषणाओं का अब क्या मतलब, विधानसभा चुनावों की घोषणा व आचार संहिता लागू होने से नहीं हो पाएगा अमल
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी गौरव यात्रा के समापन पर आज 6 अक्टूबर को अजमेर में आयोजित आमसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में यह घोषणाएं कीं। उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि सभा खत्म होते ही विधानसभा चुनावों का ऐलान होने के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाएगी। फिर भी उन्होंने यह घोषणाएं कर जनता को लुभाने की कोशिश की है। ऐसे में यह मुहावरा सटीक साबित होता है, ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी। मतलब ना इन सब घोषणाओं को पूरा करने के लिए प्रशासनिक व वित्तीय मंजूरी मिलेगी, ना बजट जारी होगा, ना टेंडर निकलेंगे, ना भरे जाएंगे, ना खुलेंगे और ना ही वर्क आर्डर दिए जा सकेंगे। इसी तरह किसानों को भी मुफ्त बिजली नहीं दी जा सकेगी। ऐसे में बार बार यही सवाल मन में उठता है कि जब मुख्यमंत्री को अवाम की इतनी ही चिंता थी तो पांच साल तक क्यों इंतजार किया। इन कामों को करने के लिए उनका किसने हाथ रोका था। किसानों को मुफ्त बिजली देने का फैसला तो सरकार बनते ही साल छह महीने बाद ही किया जा सकता था। बीसलपुर परियोजना केवल अजमेर व टोंक की प्यास बुझाने के लिए बनी थी लेकिन वोटों की राजनीति के चक्कर में अन्य जिलों को भी जोड़ दिया। यह भी नहीं कहते कि पानी की अन्य जिलों के लोगों को जरूरत नहीं है। पानी पर सबका हक है किंतु इसकी भराव क्षमता बढ़ाने और अन्य नदियों का पानी इसमें लाने की कोशिश नहीं की गई। जबकि चंबल नदी का पानी लिफ्ट कर बीसलपुर में लाने की मांग कई बार की जा चुकी है। बनास नदी का पानी रोक कर अजमेर की प्यास बुझाने के लिए टोंक जिले के बीसलपुर गांव में बांध बनाया गया था। यदि सरकार चार या पांच साल पहले ही बांध की ऊंचाई बढ़ाने का काम शुरू करा देती तो शायद अब तक पूरा हो जाता और अजमेर की जनता को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ता। बहरहाल चुनाव की घोषणा हो चुकी है। फिलहाल किसानों व जनता को कम से कम दिसम्बर तक मुंह पर अंगुली रखकर बैठना होगा।
✍प्रेम आनन्दकर
अजमेर, राजस्थान।
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