भाजपा में गैर सिंधी के रूप में उभरे पार्षद जे. के. शर्मा

अजमेर। हालांकि फिलहाल शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का अजमेर उत्तर से टिकट पक्का माना जा रहा है, क्योंकि एक तो वे लगातार तीन बार जीते हैं और दूसरा ये कि वे सिटिंग मंत्री हैं। मगर ग्राउंड रिपोर्ट में माना जा रहा है कि इस बार देवनानी का जीतना कठिन है, ऐसे में उनके स्थान दूसरे सिंधी के रूप में कंवल प्रकाश किशनानी का नाम प्रमुखता के साथ लिया जा रहा है। दूसरी ओर देवनानी पर हमले के बहाने गैर सिंधी भी पूरी ताकत लगा रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पार्षद नीरज जैन व जे. के. शर्मा की दावेदारी सामने आ रही है।
माना जा रहा है कि हेड़ा को टिकट इसलिए नहीं दिया जाएगा क्योंकि एक तो वे उम्रदराज हैं और दूसरा वे वर्तमान में लाभ के पद का आनंद उठा रहे हैं। गहलोत का नाम संघ की ओर से उछाला जा रहा है, मगर उनकी माली जाति के इतने वोट नहीं कि उन पर दाव खेला जाए। इसी प्रकार शेखावत का नाम दावेदारों में है तो सही, मगर चूंकि वे एक बार बगावत कर चुके हैं, इस कारण उन्हें गंभीर नहीं माना जा रहा। जहां तक नीरज जैन का सवाल है, तो वे हैं तो दमदार, मगर उनका आक्रामक रुख उनकी दावेदारी में बाधा बन रहा है। बाकी बचे शर्मा। वे राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव के खासमखास हैं। चूंकि ब्राह्मण देवनानी से नाराज है, इस कारण उन पर दाव खेलने पर विचार किया जा सकता है। वैसे अरविंद यादव के स्थान पर शर्मा के शहर भाजपा अध्यक्ष बनने की पूरी संभावना थी, मगर देवनानी के अड़ंगे के कारण वे मन मसोस कर रह गए। उनके बारे में यह सोच है कि वे महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की तुलना में देवनानी के ज्यादा करीब हैं, मगर अध्यक्ष बनने में बाधक बनने के बाद उनके संबंधों में पहले जैसी बात नहीं रही। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, कांग्रेस में लोकसभा उपचुनाव में रघु शर्मा के जीतने के बाद भाजपा के पास उनके मुकाबले देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत हैं, मगर उन पर देहात की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, इस कारण ऐन चुनाव के मौके पर उन पर दाव खेला जाएगा, इसमें तनिक संदेह है। वैसे भी यह मिथक टूट चुका है कि वे मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पसंद हैं। उन्होंने संगठन में जम कर काम किया, मगर इनाम के रूप में वसुंधरा ने उन्हें कुछ नहीं दिया। समझा जाता है कि ब्राह्मण लॉबी से जे. के. शर्मा को आगे लाया जा सकता है। उनका सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है कि उनकी छवि पूरी तरह से साफ है। नगर निगम के पार्षद के बतौर पूरी तरह से सक्रिय हैं। मधुरभाषी होने के कारण किसी के साथ विवाद भी नहीं है। कुंदननगर इलाके में रहते हैं, इस कारण उनके राजपूतों से भी अच्छे रिश्ते हैं।
कुल जमा बात ये है कि अगर भाजपा गैर सिंधी का प्रयोग करती है तो शर्मा का नाम गंभीरता से उभर सकता है। उनके आका भूपेन्द्र यादव की दिल्ली में अच्छी पकड़ है, संभव है वे टिकट दिलवाने में उनकी मदद करने में कामयाब हो जाएं।

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