डॉ. भाकर का दावेदारी से कहीं ज्यादा हो रहा है प्रोजेक्शन

आगामी लोकसभा चुनाव के संदर्भ में इन दिनों एक नाम यकायक चमकने और चमकाने लगा है। वो है डॉ. दीपक भाकर। बताया जाता है कि वे अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार हैं। दावेदारी की प्रबलता को कैसे परिभाषित किया जाए, उसका क्या आधार माना जाए, इसको लेकर मतभिन्नता हो सकती है, मगर मीडिया जरूर उन्हें प्रबल दावेदार मान रहा है, बना भी रहा है।
सच बात तो ये है कि डॉ. भाकर अजमेर संसदीय क्षेत्र वासियों के लिए कोई सुपरिचित नाम नहीं है। आम आदमी की बात छोडिय़े, संभ्रांत तबके में भी चंद लोग ही उन्हें जानते हैं। कहने को भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता जरूर हैं, मगर स्थानीय गतिविधियों में उनकी सक्रियता नगण्य सी है। फिर भी वे प्रबल हैं तो यह सब मीडिया का ही कमाल नजर आता है। हो सकता है कि भाजपा हाईकमान में उनकी गहरी पेठ हो, बड़े-बड़े नेताओं से उनके गहरे ताल्लुक हों, मगर सामान्य मतदाता तक उनकी पहचान न के बराबर है। बेशक वे जाट जाति से हैं और इस संसदीय क्षेत्र में ढ़ाई लाख से ज्यादा जाट हैं, इस कारण उनका दावा बनता है। इसी वजह से खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। मगर मीडिया भी उनके प्रोजेक्शन के प्रभाव में आ कर खुद भी उन्हें प्रोजेक्ट करने लगे तो चौंकना स्वाभाविक है। विशेष रूप से पहले से, वर्षों से दावेदारी कर रहे नेताओं का चौंकना। वे इस बात से नहीं चौंक रहे कि डॉ. भाकर दावेदारी कैसे कर रहे हैं, बल्कि इसलिए कि मीडिया उनकी दावेदारी को मजबूत बता रहा है। स्वाभाविक रूप से उनको तकलीफ हो रही होगी। उनकी दावेदारी इस कारण है कि उनका कंट्रीब्यूशन है। अगर कोई प्रोजेक्शन करके प्रबल बने तो परेशानी होनी ही है। या तो वे प्रोजेक्शन के लिए कुछ जतन करें। पहले से दावेदार माने जा रहे नेताओं में अधिसंख्य ऐसे हैं जो अपने दम पर टिकट चाहते हैं, न कि प्रोजेक्शन के आधार पर। वे टिकट चाहते हैं और उसके लिए दावा भी करते हैं, मगर मिजाज ऐसा कि पार्टी टिकट दे तो ठीक, न दे तो भी ठीक। अब तक सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत तो चलन के सर्वथा विपरीत चलते हैं। मांगने से ज्यादा बेहतर वे ये मानते हैं कि पार्टी खुद उनकी योग्यता के आधार पर टिकट दे। यही दिक्कत है। उनकी दावेदारी पिछले बीस साल से है, मगर पार्टी ने आज तक उनकी पात्रता पर गौर नहीं किया।
दरअसल आज कल प्रोजेक्शन का चलन सा हो गया है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी तो प्रोजेक्शन की ही पैदाइश हैं। कुछ ऐसा ही आपने हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में देखा होगा। एक व्यक्ति आया। न जमीन पर पकड़ और न ऊपर सैटिंग। बोरा भर कर पैसे लाया। दबा कर लुटाया। खूब खिलाया, जम कर पिलाया। प्रचार ऐसा कि मानों टिकट मिल ही गया हो। मंत्री भी बन बैठे और रेवडिय़ां भी बांट दी। दमदार प्रोजेक्शन की इससे बड़ी मिसाल नहीं हो सकती। जाहिर तौर पर मीडिया भी उसका शिकार हुआ। उसे भी गलतफहमी हो गई। उसी ने उसकी गलतफहमी को और बढ़ा दिया। और नतीजा ये कि लुट कर चला गया। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। क्यों कि राजनीति में सदा दो और दो चार नहीं हुआ करते। कभी तीन तो कभी पांच भी हो जाते हैं।
खैर, बात डॉ. भाकर की। बता रहे हैं कि उन्होंने भी होर्डिंग्स-बैनर ऐसे लगाए हैं, मानो चुनाव प्रचार कर रहे हों। ऐसे में भला सबका चौंकना अस्वाभाविक तो नहीं। मीडिया हो या अन्य दावेदार, सब चकित हैं। हो सकता है, उन्हें इशारा हो गया हो। जो भी है, जल्द सामने आ जा जाएगा। खुदा खैर करे।

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