हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में अजमेर शहर की दोनों सीटें अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण जितवाने के बाद भी शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव को हटा दिया गया। भाजपा हाईकमान का यह फैसला चौंकाने वाला है। भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी के लिहाज से भी यह बदलाव चकित करता है। एक ओर जहां माना जाता है कि प्रदेश भाजपा में संघ लॉबी हावी हो गई है और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के युग का अवसान हो गया, वहीं राजे लॉबी के शिवशंकर हेडा को अध्यक्ष बना दिया गया है, जबकि संघ लॉबी के यादव हटा दिए गए हैं। यादव को न केवल राज्यसभा सदस्य भूपेद्र यादव का करीबी माना जाता है, अपितु संघ पृष्ठभूमि के दिग्गज नेता ओम प्रकाश माथुर व श्रीकिशन सोनगरा के करीबी रहे हैं। उनको हटाए जाने का कारण क्या है, यह भाजपाइयों की समझ से बाहर है। यदि उन्हें हटा कर किसी और युवा व ऊर्जावान को अध्यक्ष बनाते तो भी समझ में आ सकता था कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बदलाव किया गया है।
फिलहाल यही समझा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में वैश्य समुदाय को राजी करने के लिए नई नियुक्ति हुई है, लेकिन इससे यह भी आशय निकलता है कि लोकसभा चुनाव में वैश्य समुदाय के दावेदारों, जिनमें स्वयं हेडा भी शामिल है, की आशाओं पर तुषारापात हो गया है। अर्थात जाट बहुल इस सीट पर भाजपा किसी जाट को ही प्रत्याशी बनाने के मूड में है।
रही संगठन के और सक्रिय होने की तो कम से कम हेडा से यह उम्मीद गलत ही की जा रही है। वे पूर्व में भी 2006 से लेकर 2011 तक शहर अध्यक्ष रहे हैं। तब के हालात से सब वाकिफ हैं। उनकी हालत ये थी कि नगर निगम चुनाव में सारी टिकटें अजमेर शहर के दोनों विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने आपस में बांट ली थीं। लुंजपुंज नेता गिने जाने वाले हेडा की सिफारिश पर किसी को टिकट नहीं मिल पाई थी। यही वजह रही कि उनकी लॉबी के कुछ लोग समानांतर कार्यक्रम कर रहे थे। पिछले भाजपा शासनकाल में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जनवरी 2016 में एडीए अध्यक्ष पद उनकी ताजपोशी की और राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया गया, मगर वे अपने खाते में कुछ खास उपलब्धि दर्ज नहीं करवा पाए। उनका कार्यकाल ढ़ीलाढ़ाला ही रहा। ऐसे में अब वे कोई नौ की तेरह कर पाएंगे, उसकी उम्मीद कैसे की जा सकती है।
रहा सवाल अरविंद यादव का तो उनके लिए यह झटका वाकई तगड़ा है। फिलहाल उनको कोई नयी जिम्मेदारी नहीं दी गई है। यह सही है कि लोकसभा उप चुनाव में उत्तर विधानसभा क्षेत्र में करीब सवा छह हजार और दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से करीब 12 हजार वोटों से पार्टी पिछड़ी थी, लेकिन हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा दोनों सीटें जीत गई। बावजूद इसके उन्हें हटाये जाने से भाजपा कार्यकर्ता चकित हैं। विशेष रूप से युवा कार्यकर्ताओं में गलत संदेश गया है। सवाल उठता है कि क्या दोनों सीटें जीतने में उनकी कोई भूमिका नहीं रही, देवनानी व भदेल अपने-अपने दम पर जीते?
ज्ञातव्य है कि शहर अध्यक्ष बदले जाने की चर्चा काफी समय से चल रही थी, मगर लोकसभा उपचुनाव व बाद में विधानसभा चुनाव के कारण बदलाव नहीं किया गया। आनंद सिंह राजावत का नाम लगभग फाइनल हो चुका था, मगर देवनानी ने उन्हें नहीं बनने दिया। इसी प्रकार भूपेन्द्र यादव के खासमखास पार्षद जे. के. शर्मा का नाम भी चला, जिनके संबंध देवनानी व भदेल से समान थे, मगर उनकी आशाओं पर भी पानी फिर गया है।
आखिर में एक बात और। पिछले पंद्रह साल में शहर भाजपा देवनानी व भदेल लॉबी में ही बंटी रही है। उन पर किसी अध्यक्ष का जोर नहीं चला। यहां तक कि पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत तक को वे नहीं गांठते थे। अब देखने वाली बात ये होगी कि हेडा अपनी नई पारी कैसे खेलते हैं।