इंतजाम-बदइंतजाम में झूलता बीत जाता है उर्स मेला

उर्स मेला शुरू होने के साथ एक-दो दिन से सोशल मीडिया पर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव एडवोकेट राजेश टंडन का एक संदेश ब्लिंकिंग कर रहा है। वो ये कि वे दरगाह मेला क्षेत्र का दौरा करेंगे और प्रशासन को आगाह करेंगे कि कहां-कहां बदइंजामी है। अगर एक दिन में खामियां दुरुस्त नहीं की गईं तो वे कलेक्ट्रेट पर धरना आरंभ कर देंगे। इससे पहले उन्होंने बाकायदा विश्राम स्थली का दौरा करके बदइंजामात के फोटो भी शाया किए थे।
टंडन की एक खासियत है। वे आम तौर पर चुप रहते हैं और मौके पर चौका ठोक देते हैं। उनकी फितरत है कि जो मुद्दा सार्वजनिक व सर्वविदित तो होता है, मगर कोई सुध नहीं लेता, उसे ही पकड़ लेते हैं। यानि कि लीक से हट कर कुछ करने की उनकी पुरानी आदत है। इतना ही नहीं, कई बार एक ही तीर से कई निशाने भी मार देते हैं।
खैर, मुद्दा ये नहीं कि टंडन क्या करते हैं, बल्कि मुद्दा ये है कि उन्होंने जो मुद्दा उठाया है, उसमें कितना दम है। यह सही है कि हर बार उर्स में एक ढर्ऱे की तरह प्रशासन इंतजामात करता है। उसे ज्यादा फिक्र ये होती है कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मेले में कोई बड़ी गड़बड़ न हो जाए। बावजूद इसके बदइंतजामियां बिखरी पड़ी होती हैं। हर बार इक्का-दुक्का व्यक्ति या संस्था इस ओर ध्यान आकर्षित करती है, मगर होता-जाता कुछ नहीं। आम तौर पर अवाम की ओर से कोई खास हल्ला नहीं होता। मूलत: मेला क्षेत्र से बाहर के लोगों को तो कोई वास्ता ही नहीं होता। सच तो ये है कि आधे-अधूरे इंतजामात पर भी कुछ लोगों को शिकायत होती है कि सरकार तुष्टिकरण की नीति के तहत जायरीन का ज्यादा ख्याल रख रही है, जबकि उनके मेलों व पर्वों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। आपको बता दें कि कमोबेश इसी स्थिति के चलते पुष्कर रोड स्थित विश्राम स्थली बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से हटा दी गई, मगर इक्का-दुक्का को छोड़ कर कोई चूं तक नहीं बोला।
मेला क्षेत्र के लाभार्थी व्यापारी जरूर शुरू में थोड़ा-बहुत खुसर-फुसर करते हैं, वह भी अस्थाई अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान होने वाली जद्दोजहद में खो जाती है। और मेला आरंभ होने के बाद तो उनको अपने धंधे से ही फुर्सत नहीं मिलती। जायरीन को जियारत करवाने की अहम भूमिका निभाने वाले खादिमों की स्थिति तो उससे भी अधिक विकट होती है। उनको तो कब दिन उगा और कब रात हो गई, पता ही नहीं लगता। ऐसे में जायरीन को होने वाली दिक्कत की भला कौन फिक्र करे।
बात अगर मीडिया की करें तो वह जरूर नैतिक जिम्मेदारी पूरी करते हुए अपनी भूमिका अदा करता है। कई बार तो स्थानीय अखबारों ने बदइंतामियों पर पेज के पेज छाप दिए। उनका कुछ असर भी होता है, मगर थोड़ी-बहुत लीपापोती की जाती है। सच ये है कि जैसे आदर्श इंतजाम होने चाहिए, वे आज तक नजर नहीं आए।
मुद्दा ये है कि मेले के लिए किए जाने वाले इंतजामात से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं जायरीन। मगर वे तो आते हैं और चले जाते हैं। तकलीफ भी हो तो उसे सह कर जियारत के पहले मकसद से वास्ता रखते हैं। उनका कोई सांगठनिक स्वरूप भी नहीं होता। ऐसे में अगर टंडन को ये शिकायत है कि प्रशासनिक शिथिलता के चलते राज्य की कांग्रेस सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ता है तो वह वाजिब ही है। अब देखते हैं कि प्रशासन चेतता है या फिर जैसे-तैसे मेला संपन्न होने और उसके बाद शुक्राने के नाते ख्वाजा साहब के मजारे मुबारक पर चादर चढ़ा कर इतिश्री कर लेता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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