भागीरथ चौधरी का टिकट कटने का कोई आधार था ही नहीं

जैसे ही लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट षुरू हुई, भाजपा में टिकट के अनेक दावेदार उभर कर आ गए। उनमें से अधिसंख्य ने केवल औपचारिक दावेदारी के लिए दावेदारी की, केवल चार पांच ही प्रबल दावेदार माने गए। उनमें भी वास्तविक दावेदारी के रूप में अजमेर के मौजूदा सांसद भागीरथ चौधरी टॉप पर थे, मगर ऐसी धारणा बनाई गई कि उनका टिकट काटा जाएगा। नतीजतन सरिता गैना, बी पी सारस्वत, डॉ दीपक भाकर, पुखराज पहाडिया, धर्मेन्द्र गहलोत आदि के नाम चलने लगे। यहां तक किषनगढ में कांग्रेस के टिकट पर जीते पूर्व भाजपाई विकास चौधरी तक को भाजपा में ला कर टिकट देने के कयास लगाए जाने लगे। इन सब के बीच चौधरी ने चुप्पी साध ली और गुपचुप तैयारी में जुटे रहे। उनके निकटस्थों को पक्का अंदाजा था कि टिकट तो चौधरी को ही मिलेगा।
अव्वल तो चौधरी का टिकट कटने का कोई कारण ही नहीं था। उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रिजू झुंझुनवाला को चार लाख से भी अधिक मतों से हराया था। वह अपने आप में एक रिकार्ड है। आज तक उस आंकडे पर किसी को सहसा यकीन नहीं होता। यह सही है कि उसमें मोदी फैक्टर तो था ही, जाट वोट बैंक की भी भूमिका थी। आपको बता दें कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में ढाई लाख से भी ज्यादा जाटों के वोट हैं। अगर यह मान भी लिया जाए कि इस बार मोदी का जादू कुछ कम हो सकता है और एंटी इन्कंबेंसी के चलते वोट प्रतिषत गिर सकता है, मगर गिर गिर कर कितना गिरेगा, एक लाख वोट, दो लाख वोट या तीन लाख वोट, तब भी उनकी जीत का मतांतर एक लाख तो रहेगा ही। बस यही एक आधार था, जिसने उनका टिकट पक्का कर दिया। मिलनसारिता व सहज उपलब्धता को भी काउंट किया गया। यही सोच कर नया प्रयोग करने की बजाय पुराने पर ही दाव खेलने का निर्णय किया गया। टिकट कटने का एक मात्र पैमाना यह माना जा रहा था कि वे विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हार गए और तीसरे स्थान पर रहे थे। मगर धरातल की सच्चाई यह है कि वह हार परिस्थितिजन्य थी। एक तो भाजपा के बागी विकास चौधरी कांग्रेस का टिकट ले आए, जिन्होंने जाट वोट बैंक में सेंध मारी। पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी टाक ने भाजपा मानसिकता के कस्बाई वोट पर कब्जा रखते हुए मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। नजीजतन चौधरी हार गए। बहरहाल, जैसे ही नागौर से विधानसभा चुनाव हारी ज्योति मिर्धा को टिकट दिया गया तो यह अवधारणा धरी रह गई कि हारे हुए का टिकट काटा जाएगा। बेषक पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अलग समीकरण हैं, इस बार कांग्रेस के दिग्गज जाट प्रत्याषी रामचंद्र चौधरी सामने हैं, बावजूद इसके उनको टिकट दिए जाने को आम भाजपाई सही मान रहे हैं। कम से कम बाहरी सतीष पूनिया की तुलना में स्थानीय को मौका देने की वजह से प्रसन्न हैं। उनकी परफोरमेंस भी अच्छी रहने की उम्मीद जताई जा रही है। हो भी क्यों न, केवल एक को छोड कर जिले की सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। पूर्व निर्दलीय विधायक टाक भाजपा में लौट आए हैं, उसका भी फर्क तो पडेगा ही। लब्बोलुआब वे भाजपा के दमदार उम्मीदवार साबित होंगे, मगर इस बार कांग्रेस की ओर से जाट उम्मीदवार सामने होने के कारण पिछली बार की तुलना में एक तरफा नहीं होगा।

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