बेमिसाल डॉक्टर एन. सी. मलिक के कुछ और दिलचस्प प्रसंग

मैं हूं अजमेर के हृदयस्थल नया बाजार की गोल प्याऊ। हर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक हलचल के केन्द्र इस बाजार में होने वाली हताई, सुगबुगाहट व गप्पबाजी की गवाह। गर कहें कि यही नब्ज है अजमेर की तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शहर में पत्ता भी हिले तो उसकी खबर यहां पहुचंती है। सियासी गणित की गणना यहीं पर होती है। यहीं से हवा बनती है। ऐसे अनेक किस्से मेरे जेहन में दफ्न हैं। पेश है ये किस्सा-

आजकल छोटी से छोटी बीमारी का इलाज भी बिना टेस्ट के नहीं होता। एक जमाना था जब हमारे यहां के वैद्य नाड़ी देख कर बीमारी का पता लगा लेते थे। ऐसे में अगर कोई डॉक्टर बीमार की दास्तां सुन कर इलाज कर दे तो उसे क्या कहेंगे? बेशक, ऐसे डॉक्टर को लंबे अनुभव से शरीर विज्ञान की गहरी समझ हो गई होगी। ऐसे अनुभवी और बेमिसाल डॉक्टर थे डॉ. एन. सी. मलिक। उनके बारे में एक किस्सा शहर के बुद्धिजीवियों में कहा-सुना जाता रहा है।
डॉक्टर मलिक से जुड़े कुछ प्रसंग पिछले ब्लॉग में आपसे साझा किए थे। हाल ही उनके सुपुत्र जाने-माने इंटरनेशनल टेबल टेनिस अंपायर श्री रणजीत मलिक ने डाक्टर साहब के बारे में कुछ और जानकारियां भेजी हैं, जो कि उनको द संस्कृति स्कूल में कार्यरत श्री राजेन्द्र प्रसाद शर्मा ने उनसे साझा कीं। श्री शर्मा की ही लेखनी में संस्मरण हूबहू आपके समक्ष प्रस्तुत है:-

rajendra prasad sharma
1. यह घटना 1976 की है। उस समय मेरे पिताजी की पोस्टिंग पुलिस हॉस्पिटल में कंपाउंडर के पद पर थी। एक सज्जन, जो कि शास्त्री नगर में रहते थे, की वृद्ध माताजी अस्वस्थ चल रही थीं। उस समय के अच्छे फिजीशियन डॉक्टर आर. एन. माथुर का इलाज चल रहा था। उसके तहत उनके ड्रिप पिताजी द्वारा लगाई जा रही थी। दो दिन तक ड्रिप बराबर चली, लेकिन तीसरे दिन उनको जबरदस्त रिएक्शन हो गया। पिताजी के पास जो भी एंटी डोज थे, वो देकर हालत को काबू किया गया। साथ ही उनको सलाह दी कि वे डॉक्टर माथुर को दिखाएं। उन्होंने भी एंटी रिएक्शन का जो भी ट्रीटमेंट था, वो दिया, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। फिर उन्होंने डॉक्टर एम. एस. माथुर, जो कि अच्छे फिजिशियन माने जाते थे, से इलाज करवाया, लेकिन फिर भी रिएक्शन खत्म नहीं हुआ। आखिर एक दिन वो पापा से सलाह करने आए। पापा ने उनको सलाह दी कि वो डॉक्टर मलिक साहब को दिखाए। उस समय डॉक्टर साहब हरिनगर, शास्त्री नगर में निवास करते थे। डॉक्टर साहब अपने डेकोरम का पूरा ध्यान रखते थे। डॉक्टर साहब से जब उन सज्जन ने घर पर चल कर देखने को कहा तो डॉक्टर साहब ने उनसे अपने डेकोरम के अनुसार टैक्सी लेकर आने को कहा। उन दिनों शहर में गिनी-चुनी टैक्सी हुआ करती थी। टैक्सी लाई गई। डॉक्टर मलिक साहब ने पेशेंट को देख कर एनाल्जिन लिख कर दी। पहले दिन, दिन में तीन बार, दूसरे दिन दो बार व तीसरे दिन एक बार देकर बंद करने की हिदायत दी। साथ ही कहा कि सिर्फ एनाल्जिन ही देनी है, उसका कोई भी सब्सीट्यूट नहीं होना चाहिए। उन सज्जन ने अपना सिर पीट लिया और यह सोच कर तीन दिन तक गोली नहीं दी कि मेरी मां को कोई जुकाम-बुखार-बदन दर्द थोड़े ही है। तीसरे दिन वो पापा के पास झगड़े के मूड से आए कि उन्होंने कहाकि कैसा अच्छा डॉक्टर बतलाया, जो इतना उनका खर्चा भी करवा दिया और दवा के नाम पर केवल एनाल्जिन दे दी। पापा ने उनको समझाया कि अगर मलिक साहब ने लिखी है तो सोच समझ कर लिखी है, वो देकर तो देखें। दूसरे दिन से एनाल्जिन चालू की गई और उनको आश्चर्य तब हुआ जब पहले दिन ही रिएक्शन का आधा असर खत्म हो गया और वो माताजी तीन दिन एनाल्जिन लेकर बिल्कुल स्वस्थ हो गईं।

2. यह घटना 1959 की है। मेरे पिताजी अभी का जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय, जो कि तब विक्टोरिया हॉस्पिटल हुआ करता था, में कंपाउंडर के पद पर कार्यरत थे। उस समय उनके पास हॉस्पिटल के स्टोर का चार्ज था। स्टोर की ऑडिट करने के लिए टीम आई हुई थी। एक दिन टीम के इंचार्ज ने पापा को बताया कि उनके बहुत तेज घबराहट, बेचैनी आदि हो रही है और ये समस्या उनको पिछले काफी सालों से है। उन्होंने कई डॉक्टर्स को दिखा कर इलाज लिया, लेकिन फर्क नहीं पड़ा। पिताजी ने उनसे कहा कि वे घबराए नहीं दोपहर में डॉक्टर मलिक अपने चेंबर में आएंगे, तब उनको दिखा देंगे। डॉक्टर मलिक उस समय विक्टोरिया हॉस्पिटल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे। डॉक्टर मलिक साहब को दिखाया गया। उन्होंने केवल उनसे उनकी मेडिकल हिस्ट्री पूछी और पिताजी से बोले इनका यूरीन टेस्ट करवा कर लाओ। यूरीन टेस्ट की रिपोर्ट ले जा कर दिखाई तो वे बोले पेट का एक्सरे करवा कर लाओ। एक्सरे की रिपोर्ट देखने के साथ ही डॉक्टर मलिक बोले, मरना चाहता है क्या, ये इतना बड़ा स्टोन पेट में लेकर क्यों घूम रहा है, इसका जल्द से जल्द ऑपरेशन करवाओ। जब वह सज्जन पेट संबंधी कोई बीमारी नहीं बता रहे थे, कई एक्सपर्ट डॉक्टर्स से इलाज ले चुके, लेकिन कोई भी ठीक से डायग्नोस नहीं कर पाया। ऐसे जानकार डॉक्टर थे मलिक साहब।

-तेजवानी गिरधर
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