धैर्य को निकटता से जाना कुवेरा जी में

राज्य के वरिष्ठ पत्रकार श्री आर. डी. कुवेरा का जीवन संघर्ष के बाद सफलता की सजीव कहानी है। आज 88 साल की उम्र में भी वे पूर्ण स्वस्थ हैं और लेखन कार्य सतत जारी रखे हुए हैं। उनके जन्मदिन पर उनके बारे में लिखित एक आलेख आपसे दुबारा साझा करने का मन हो गया।
जीवन की एक बड़ी हकीकत ये है कि वक्त कैसा भी हो, अच्छा या बुरा, वह बदलता ही है। कभी एक जैसा नहीं रहता। उसकी इस उठापटक में जो धैर्य रखते हैं, वे सरवाइव कर जाते हैं और जो विचलित हो जाते हैं, वे निपट जाते हैं। इस सिलसिले मेें मुझे मेरे अभिन्न मित्र, स्वामी न्यूज के एमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी की एक बात सदा याद रहती है। वे ब्रह्मलीन स्वामी श्री हिरदाराम साहब के हवाले से बताते हैं कि घड़ी की सुइयां निरंतर चलती रहती हैं, परिवर्तनशील हैं, न तो वे उत्कर्ष के चरम बारह के अंक पर टिकती हैं और न ही धूल चाटने के प्रतीक साढ़े छह बजने पर अटकती हैं। जीवन में भी ऐसा ही है। सर्वश्रेष्ठ समय सदैव नहीं रहता और न ही बुरा से बुरा वक्त स्थाई होता है। हमारा विवेक इसी में है कि जीवन में साढ़े छह बजने पर हताश न हों, धैर्य रखें और बारह बजने पर फूल कर कुप्पा न हों। जब अच्छा वक्त तो ज्यादा से ज्यादा भले काम करें और बुरा वक्त आने पर उसके बीतने का इंतजार करें। इसे यूं भी तो कहा जाता है कि ऐसी कोई रात नहीं, जो सुबह के दर्शन न करवाती हो। बस धैर्य रखने की जरूरत है।

धैर्य रखने के लिए कहना आसान है, मगर धैर्य रखना बेहद कठिन है। मैने धैर्य रखने की इस कीमिया को करीब से देखा है। पिता तुल्य, मगर पर्याप्त वयांतर के बावजूद मेरे मित्र श्री आर. डी. कुवेरा में। पेशे से पत्रकार हैं और वर्तमान में हयात बुजुर्ग पत्रकारों में सबसे वरिष्ठ।
उनकी भौतिक उपलब्धि में शुमार है विरासत में दो पुत्रों श्री अनूप कुवेरा व श्री कमल कुवेरा को शहर के प्रतिष्ठित व्यवसाइयों में शुमार करवाना। मैंने अपने जीवन में उनसे ज्यादा धैर्यवान और पॉजीटिव व्यक्ति नहीं देखा। क्रोध भी उन्हें कभी नहीं आता। कैसी भी विपरीत परिस्थिति हो, कभी निराश व हताश नहीं होते। बुरे से बुरे में भी अच्छाई पर ध्यान केन्द्रित करने की उनकी विधा को सलाम करता हूं। उनसे करीब तीस साल से दोस्ती है। जाहिर है, कई मौके आए होंगे, जब विपरीत परिस्थिति का निर्माण हुआ होगा, मगर वे सदा सकारात्मक बने रहते हैं। व्यवस्था के खिलाफ मेरे मन में कई बार गुस्सा भर जाता है, मगर वे सदैव यही सिखाते हैं कि धैर्य रखो। सकारात्मकता में जीयो। कोई भी निर्णय गुस्से में मत करो। उनके स्टैंडिग इंस्ट्रक्शन हैं कि जब भी गुस्से में निर्णय करना हो, एक बार मुझ से जरूर मिल लेना। उनकी बात मानने की बहुत कोशिश करता हूं। कुछेक बार जरूर उनकी सीख पर अमल किया, मगर अधिकतर स्वाभिमान की खातिर बिना उनको बताए निर्णय ले ही लेता हूं। घाटे में भी रहता हूं, मगर आत्मा के साथ समझौता कैसे कर सकता हूं। वे सिखाते हैं कि वक्त की नजाकत व मजबूरी को देखते हुए समझौता करके टिके रहो, जबकि मैं ईगो के चक्कर में रणछोड़दास बन जाता हूं।
कुवेरा जी ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, मगर कभी विचलित नहीं हुए। जब उनके जवान पोते का एक सड़क दुर्घटना में निधन हुआ तो मैने देखा कि वे स्थितप्रज्ञ की तरह निर्विकार भाव से व्यवहार कर रहे थे। बेशक उनके भीतर भी झंझावात उठता होगा, मगर हरि इच्छा को इतनी सहजता से स्वीकार कर लेना वाकई अनूठा गुण है। पिछले काफी दिन से उनकी धर्मपत्नी बीमार चल रही थीं। वे खुद भी घुटने के चार ऑपरेशन करवाने के कारण तकलीफ में हैं, फिर भी सच्चे दिल से पत्नी की सेवा कर रहे थे। इतना सब कुछ होने के बाद भी दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर लिखे गए गौरव ग्रंथ के प्रकाशन में पूरे मन से लगे हुए रहे। इस काम से निवृत्त होने के पश्चात अस्वस्थ होने के बाद भी आए दिन फोन करते हैं कि चलो कुछ और करते हैं।
हाल ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। जीवन संगिनी का इस वयोवृद्ध अवस्था में साथ छोड़ जाना बहुत बड़ा वज्राघात है। धैर्य की इस प्रतिमूर्ति को ईश्वर इसे सहने की और अधिक क्षमता प्रदान करे, ऐसी प्रार्थना है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
[email protected]

error: Content is protected !!