अजमेर में काफी पुराने हैं ईसाइयों के चर्च

रॉबसन मेमोरियल केथेडरल चर्च

कैथोलिक चर्च

ईसाइयों के मुख्य धार्मिक पर्व क्रिसमस पर आइये जानें कि अजमेर ईसाइयों की उपस्थिति व चर्चों का इतिहास क्या है:-अजमेर में ईसाई धर्मावलम्बियों की उपस्थिति का इतिहास काफी पुराना है। सन् 1860 के आसपास ईसाई समुदाय की आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति अंग्रेज सेना के पुरोहित किया करते थे। बाद में आगरा के मिशनरी पुरोहित आया करते थे। सन् 1982 में फ्रांस के कुछ मिशनरी अजमेर आए। केसरगंज स्थित चर्च मदर मेरी को समर्पित है। इसका निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ और यह 28 दिसम्बर 1898 को इसका उद्घाटन हुआ। प्राचीन धरोहर होने के नाते भारतीय पुरातत्त्व विभाग इसकी देखरेख करता है। यह चर्च न केवल सबसे पुराना है, अपितु काफी बड़ा भी है। इसकी काफी मान्यता है, क्योंकि यहां बिशप स्वामी का सिंहासन है। लेटिन भाषा में बिशप स्वामी के सिंहासन को केथेड्रा कहते हैं। इसी कारण इसे केथेड्रल यानि महागिरिजाघर कहा जाता है।
मेयो लिंक रोड भट्टा स्थित चर्च की स्थापना 1913 में हुई। यह चर्च भी मदर मेरी के प्रति समर्पित है। मदार स्थित चर्च की स्थापना सन् 2006 में हुई। यह मदर मेरी की पवित्र माला होली रोसरी के प्रति समर्पित है। नसीराबाद रोड पर परबतपुरा गांव में स्थित चर्च की स्थापना सन् 1905 में हुई। यह संत जोसफ के प्रति समर्पित है। भवानीखेड़ा गांव में स्थित चर्च की स्थापना 1905 में हुई। यह संत मार्टिन को समर्पित है।
फॉयसागर रोड पर हाथीखेड़ा गांव में 1979 में आए फादर रोबर्ट लुईस की तपस्या से फलस्वरूप कई लोग शारीरिक चंगाई व ईश्वर की शक्ति का अहसास करने लगे। मदर मेरी के प्रति लोगों की आस्था को देखते हुए बिशप स्वामी ने इसे तीर्थस्थल घोषित कर दिया। हर 16 जुलाई को मदर मेरी का पर्व बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
-तेजवानी गिरधर

error: Content is protected !!