आनासागर झील बनाई अन्नाजी ने, उद्धार कराया दीनबंधु चौधरी ने

यह सर्वविदित है कि अजमेर की ऐतिहासिक आनासागर झील का निर्माण सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पितामह राजा अरणोराज उर्फ अन्नाजी ने 1135-50 में करवाया था। बाद में इसके इर्दगिर्द खूब विकास कार्य हुए। लेकिन एक समय ऐसा भी आया कि अकाल पडने पर यह पूरी तरह से सूख गई। बात 20 अप्रैल, 2007 की है, जब इसकी भराव क्षमता को बढाने का संकल्प दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी ने सिटीजन्स कौंसिल के जरिए कराने का संकल्प लिया और उसे पूरा भी किया। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर बनाई गई पुस्तक दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ में आनासागर के उद्धार की कहानी कुछ लेखकों ने बयां की है। पुस्तक का समस्त प्रबंधन और सामग्री संकलन का काम अजमेर के वरिश्ठ स्वतंत्र अधिस्वीकृत पत्रकार आर डी कुवेरा ने किया है। पुश्कर के पूर्व कांग्रेस विधायक व तत्कालीन अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष डॉ श्रीगोपाल बाहेती ने अपने आलेख में लिखा है कि अजमेर के लोगों ने अजमेर की पहचान आनासागर झील में बच्चों को क्रिकेट व फुटबाल खेलते देखा और वे ही अजमेर वासी उसी क्रिकेट-फुटबाल मैदान को पानी से लबालब छलकता देख रहे हैं। यह देन है श्री दीनबंधुजी की। उन्होंने सन् 1987 में यह बीड़ा उठाया और पूरा शहर लग गया झील की खुदाई में। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, क्या महिला, क्या पुरुष, अधिकारी, कर्मचारी, नेता, फौजी सभी ने अपना भरपूर सहयोग दिया। यह उन्हीं का दम का था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी ने भी भरपूर सहयोग दिया और संसाधन भी उपलब्ध कराये। वाह दीनबंधु जी वाह, झील बनाई तो राजा अन्नाजी ने पर संवारी व संरक्षित की आपने, आपका साधुवाद।
वरिश्ठ पत्रकार श्री नरेन्द्र चौहान ने इस सिलसिले में अपने उद्गार कुछ तरह से प्रकट किए हैं। सपनों की कोई जात तो होती नहीं है। नींद के अलावा जागते हुए भी ढ़ेरों सपनीले सपने आ धमकते हैं। ऐसा ही चमकदार सपना देखा था दीनूजी ने। लेकिन सामने था क्रिकेट का मैदान बन चुका अजमेर का गौरव आनासागर। आंखों का क्या, झील का पानी भी सूख चुका था। मछलियां दम तोड़ चुकी थीं और माहौल में था सांय-सांय करता सन्नाटा और झील की आने वाली मौत की गुपचुप पदचाप। चौधरी साहब ने लगभग असंभव बीड़ा उठाया। राज्य की कांग्रेसी हुकूमत के सरताज हरिदेव जी जोशी से पंद्रह लाख रुपए मंजूर कराए और आनासागर की ऐतिहासिक खुदाई के लिए अजमेर आने के पीले चांवल भेजे। जोशी जी आए और अजमेरी जन सैलाब के बीच खुदाई का पहला फावड़ा एक हाथ से झील की जर्जर जमीन पर दे मारा। उस समय मुख्य सचिव श्री मीठा लाल मेहता भी उनके साथ खुदाई में साथ थे, जिनका अजमेर से विशेष जुड़ाव रहा था। आंखन देखा वह मंजर आज भी मेरे दिलों दिमाग में जेबस्त है। झील के किनारे गुजरते हुए अब जब पानी की उत्ताल तरंगों से टकरा शीतल हवा की बहारें मन-शरीर को छूती हैं तो उस दौर का अफसाना-ए-जिक्र जरूरी हो जाता है और अफसानों को हकीकत में तब्दील होते देखने का सुखद अहसास भी होता है। इस महायज्ञ से आहुतियों की शुरुआत हो चुकी थी और हजारों हाथ गेंती-फावड़ों के साथ तरबतर पसीने में भी जीवटी उल्लास से जुट गए थे। श्रमदान के इस जनाआंदोलन में तीन माह में 84 लाख क्यूबिक फीट मिट्टी झील से निकाल ली गई।
प्रसंगवष यह जानना उचित रहेगा कि मुगल शासक कलाप्रेमी शाहजहां ने 1637 में झील के किनारे संगमरमर की 4 बारहदरियां एवं एक खामखां का दरवाजा बनवा कर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा दिए। शासक जहांगीर ने इसके किनारे एक आलीशान बाग बनवाया, जिसे कभी दौलत बाग और आज सुभाष उद्यान के नाम से जाना जाता है। झील के पूरा सूख जाने पर खुदाई के दौरान बीचों बीच एक टापू बनवाया गया था, जहां एक रेस्टोरेंट स्थापित किया गया था। झील में नौका विहार की भी व्यवस्था है। अजमेर नगर सुधार न्यास के तत्कालन अध्यक्ष डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के कार्यकाल में ऋषि घाटी पर वैकल्पिक मार्ग बनवाया गया। वहीं रामप्रसाद घाट भी बनवाया गया।

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