कही इतिहास के पन्नो में ही सिमट कर न रह जाये बघेरा में स्थित प्रेम की यह धरोहर

बघेरा =पाश्चात्य संस्कृति के प्रतीक वैलेंटाइन डे भले ही आज युवाओं के सर चढ़कर बोल रहा है और पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण में लगे हैं लेकिन भूल जाते हैं कि भारतीय संस्कृति और साथ ही धोरा की धरती राजस्थान अपने शौर्यता,अपने त्याग समर्पण,वीरता और प्रेम में अपनी अलग ही पहचान रखते हैं।
देश और प्रदेश में इनके प्रतीक रूप हमें प्रेरणा देते हैं हमें इतिहास को याद दिलाते हैं।
इसी क्रम में देखा जाए तो धोरा की धरती राजस्थान में अजमेर मेरवाड़ा में बघेरा एक ऐतिहासिक और पौराणिक ग्राम है जो आज उपतहसील मुख्यालय है। इतिहास ,आध्यत्मिक और प्रेम के अद्भुत स्मृतियों को अपने आप मे समेटता हुआ अपनी गवाही खुद ब खुद ही बयां कर रहा है , ऐसा ही एक कलात्मक और ऐतिहासिक गौरव अमर प्रेमी ढोला मारू के प्रेम और शादी का प्रतिक तोरणद्वार अपनी कहानी स्वमं बयां कर रहा है।
धरोहर संरक्षण अधिनियम 1961 के तहत नीला बोर्ड लगा कर इस तोरण द्वार को संरक्षित घोषित जरूर कर रखा है लेकिन यह नीला बोर्ड केवल औपचारिकता मात्रा प्रतीत होता है यह उस पुत्र की तरह नजर आता है जिसे गोद लेकर उसका अपने आपको संरक्षक घोषित कर उसे अपने हाल पर लावारिश की तरह छोड़ दिया जाये।
करीब 1100 से अधिक वर्षों से धूप -छाया- वर्षा की प्राकृतिक मार झेलता हुआ यह गौरव इतिहास और गांव का गौरव बढ़ाता आ रहा है लेकिन क्योकि इस इमारत के एक खंभे में बहुत चौड़ी दरार पड़ चुकी है, जिससे यह ऐतिहासिक स्मारक कभी भी धरासायी हो सकता है । यह गौरव आज जर्जर होकर अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है कोई इसकी सुध लेने वाला नही |
आखिर कौन है इसके लिए जिम्मेदार….. वह आम जनता जो कभी इसे अपना गौरव समझती थी उसके द्वारा की जाने वाली उपेक्षा या फिर नीला बोर्ड लगाकर अपने आपको इसका संरक्षक घोषित करने वाला विभाग और सरकार |
जिम्मेदार जो कोई भी हो, कारण जो कुछ भी हो लेकिन यह गोरव आज स्वयं ही मजबूर होकर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है और अपनी इस दुर्दशा पर खुद ही आंसू बहाने को मजबूर हो रही है ।
इंतजार है आज भी उस वक्त की जब विभाग और सरकार इसकी की सुध लेगी इंतजार है आज भी उन लोगों का जो इस धरोहर की कद्र करके इसे बचाने में अपना योगदान देंगे।
इंतजार है आज भी उस मसीहा का जो इस तोरण द्वार के दर्द को महसूस कर सके इंतजार है आज भी जो इस तोरण द्वार की दशा और पीड़ा को समझ सके इन्तजार है आज भी उस व्यक्ति की जो इस धरोहर की संरक्षण की मांग को धरोहर संरक्षण प्राधिकरण ,सरकार और संबंधित विभाग तक पहुंचाएं
अभी भी वक़्त है इसको बचाने के लिये ….जागो अगर इस धरोहर की यूं ही उपेक्षा होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियां यह कहा करेगी कि यहां कभी ढोला मारू की शादी का प्रतिक तोरण द्वार हुआ करता था .
अगर अब भी इसकी सुध नहीं ली गई तो इसे केवल इतिहास के पन्नों में ही पढ़ा जाएगा यह इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा इतिहास हमे कभी माफ नही करेगा ओर फिर बघेरा के इतिहास, प्रेम के इतिहास में रहेगी तो सिर्फ इसकी यादे, व इसके अवशेष ।

में हूँ बघेरा का गौरव….तोरण द्वार @
“गौरव हूं गांव का इतिहास हूँ गांव का गौरव बनकर छा जाऊंगा
मीत भूल कर भी मत करना मेरी उपेक्षा नही तो में कही खो जाऊंगा
यूं ही उपेक्षा करते रहे मेरी तो वक्त की तरह के पीछे छूट जाऊंगा
आंसू बहा रहा हूँ अपनी दशा पर टूट भी गया तो पहचान अपनी छोड़ जाऊंगा।

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