काश तब धर्मेश जैन की हुंकार सुन ली गई होती

धर्मेष जैन चिल्ला चिल्ला कर थक गए। औरों ने भी खूब हल्ला किया। मगर सुनने वाला कोई नहीं था। आज जब भारी बारिष के कारण आनासागर के पानी ने झलक कर मुख्य मार्गों को अपने आगोष में ले लिया। कई मकानों में पानी घुस गया, तब जा कर समझ में आ रहा है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर आनासागर के किनारे पाटना गलत था। झील की भराव क्षमता 16 से 13 फीट कर दिए जाने का हश्र आज सबके सामने है़?
यह सर्वविदित है कि अजमेर नगर विकास न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेष जैन आनासागर, एलिवेटेड रोड सहित अन्य मसलों पर समय समय पर आवाज उठाते रहे हैं। वे बार बार विरोध करते रहे कि पाथ वे के लिए आनासागर के किनारों को पाटना बहुत घातक हो जाएगा। उसमें जम कर भ्रश्टाचार हो रहा है, मगर उनकी किसी ने नहीं सुनी। यहां तक कि उनकी ही पार्टी के नेताओं ने चुप्पी साध रखी थी। एलिवेटेड रोड को मार्टिंडल ब्रिज से जोडने और उसे नसियां तक न उतारने की मांग भी हवा में उडा दी गई। आंदोलन भी किया, मगर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। उलटे रेस्टोरेंट को लपेटे में लेने की कोषिष की गई। जिस महावीर कॉलोनी में वे रहते हैं, उस पर भी षिकंजा कसने की कोषिष की गई। वे कहते रहे कि आज जो अफसर मनमानी कर रहे हैं, वे तो चले जाएंगे, भोगना तो जनता को पडेगा। वे बार बार चेताते रहे कि जिन पर जनता के दुख दर्द की सुध लेने का जिम्मा है, वे क्यों नहीं आंख पर पट्टी बांधे बैठे हैं, मगर उनकी आवाज नक्कार खाने में तूती तरह खो गई। इस मसले पर मीडिया भी लगातार रिपोर्ट करता रहा, मगर बर्बादी की स्क्रिप लिखी जाती रही। आनसागर के वजूद के साथ की गई छेडखानी परिणाम यह हुआ कि अब उसका गुस्सा फूट पडा है।
ऐसा नहीं है कि जिला प्रषासन आनासागर से जुडी समस्या से अनभिज्ञ है। उसे पता है कि जब भी भारी बारिष आती है तो आनासागर की चद्दर चलने पर अथवा चैनल गेट खोलने पर निचली बस्तियों में पानी भर जाता है। बहुत युक्तिपूर्वक आनासागर को खाली न किया जाए तो नगरा इलाके के घरों में पानी घुस जाता है। नगरा को बचाने की कोषिष जाए आनसागर के किनारे की कॉलोनियों में पानी घुस जाता है। इस सच्चाई को जनते हुए भी अदूरदर्षिता बरतते हुए आनासागर को छोटा किए जाने की हरकत जारी रखी गई। यह नहीं सोचा गया कि कभी भारी बारिष आई तो बहुत बडी परेषानी खडी हो जाएगी। आज जब हालात बिगडने का दोश विधायक वासुदेव देवनानी प्रषासन पर मढ रहे हैं तो सवाल उठता है कि असल समस्या तो आपकी ही देखरेख में पाली जाती रही। खैर, अब पछतावत होत क्या जब चिडिया चुग गइ्र खेत।

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