भाटी की तरह चौधरी का टिकट भी पक्का था, मगर मिला नहीं

हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण से हेमंत भाटी को टिकट नहीं मिल पाया तो हर किसी को आष्चर्य हुआ। असल में उनका टिकट पक्का माना जा रहा था। उन्हें पूर्व प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बेहद करीबी माना जाता है। इस मामले में लोग ज्यादा इसलिए चौंके कि पायलट के नजदीबी महेन्द्र सिह रलावता व नसीम अख्तर तो टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए, जबकि भाटी तो बेहद करीबी थे, फिर भी वंचित रहे गए। इसको लेकर अब कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इस घटना से मुझे एक वाकया याद आता है। बात 1993 के विधानसभा चुनाव की है। मैं अपने एक मित्र अनिल चांवरिया के टिकट के सिलसिले में दिल्ली में था। केन्द्रीय कशि मंत्रालय की बहुमंजिला इमारत टेडी मेडी बिल्डिंग में कांग्रेस दावेदारों का जमावडा था। तत्कालीन प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा दावेदारों के साक्षात्कार ले रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि इस गतिविधि की सारी मॉनिटरिंग अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी कर रहे थे, जो कि उनके बेहद करीबी थे, पुत्रवत, पारिवारिक सदस्य कह लीजिए। प्रदेष भर की दो सौ सीटों के दावेदारों को पहले चौधरी के पास हाजिरी लगानी पड रही थी, वहां नाम दर्ज करवाने के बाद ही दावेदार मदेरणा से मिल पा रहे थे। स्वाभाविक सी बात है कि सब लोग मसूदा से चौधरी का टिकट पक्का मान कर चल रहे थे। टिकट नहीं मिलने का तो कोई कारण ही नहीं था। मगर ऐसा हुआ नहीं। वह भी तब जबकि उन पर वर्षों से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ और पूर्व केबीनेट मंत्री हरेन्द्र मिर्धा का भी वरदहस्त था। कभी कभी ऐसा होता है। बडे नेता अपने खासमखास को टिकट नहीं दे पाते या नहीं दिलवा पाते। भाटी के साथ भी ऐसा ही हुआ। हर लिहाज से उनका टिकट पक्का था, उनकी जीत भी पक्की मानी जा रही थी, मगर जैसा बताया जा रहा है, कांग्रेस सेवादल के राश्टीय अध्यक्ष लालजी भाई देसाई ने हाईकमान से नजदीकी के चलते द्रोपदी कोली को टिकट दिलवा दिया। भाटी के लिए यह बहुत पीडादायक रहा। उन्होंने पूरे पांच साल तक पार्टी के लिए काम किया। पार्टी के कई कार्यक्रमों में जेब से पैसा पूरा किया। लोग सवाल कर रहे हैं कि जब लगातार दो बार हारी नसीम अख्तर इंसाफ को टिकट मिल सकता था, तो भाटी को क्यों नहीं। मगर मगर विधि के विधान के आगे भला कोई क्या कर सकता है। अब उन्हें नए सिरे से एक्सरसाइज करनी होगी। हार के बाद द्रोपदी कोली की अतिरिक्त सक्रियता भी एक चुनौती होगी।

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