कैसे कटा अनिता भदेल का नाम?

जिस विधायक का नाम मुख्यमंत्री बनने के पैनल में रहा हो, जो उप मुख्यमंत्री बनते बनते रह जाए, उसे काबिना या राज्य मंत्री तक न बनाया जाए तो इसे आप क्या कहेंगे? किस्मत का खेल या राजनीतिक कुचक्र की परिणति? अनिता भदेल के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। अनेक पैरामीटर पर वे खरी उतरती हैं। संघ पश्ठभूमि, लगातार पांचवी बार की जीत, एक बार राज्यमंत्री का अनुभव, अनुसूचित जाति की महिला और विधानसभा में सर्वश्रेठ विधायक। षपथ ग्रहण समारोह से पहले तक राजस्थान का पूरा मीडिया उनके नाम की रट लगाए हुआ था। बावजूद इसके नए मं़ित्रयों की सूचि से उनका नाम नदारद था। हर किसी को आष्चर्य था। मगर मोदी है तो मुमकिन है। हालांकि हम ऐसा मान रहे हैं कि अनिता भदेल का नाम कट गया, मगर ऐसा भी हो सकता है कि उनके नाम पर केवल मीडिया टायल ही चली हो और उनके नाम पर कोई विचार ही नहीं हो रहा हो। बताया जाता है कि एक तो उनकी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से नजदीकी दुख दे गई, दूसरा अजमेर षहर से ही वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष का बडा पद दिया जा चुका था। जिले से एक और मंत्री बनना था, जिसकी पूर्ति तीसरी बार पुश्कर से जीते सुरेष रावत ने कर दी। एक और रावत विधायक ब्यावर के षंकर सिंह रावत चौथी बार जीत कर आए थे, मगर एक ही रावत को मंत्री बनाया जा सकता था। अजमेर और राजसमंद के भाजपा मानसिकता के रावतों को खुष जो करना था। अगर अजमेर संसदीय क्षेत्र के लिहाज से देखें तो दूदू विधानसभा क्षेत्र से जीते डॉ प्रेम चंद बैरवा पहले ही उपमुख्यमंत्री बनाए जा चुके थे। कुल मिला रिक्त स्थान बचा ही नहीं। किसी एक्स फैक्टर ने भी काम किया होगा, ताकि कार्यकर्ताओं का पोलराइजेषन न हो। कुल मिला कर लगातार पांच बार की अनुसूचित जाति की महिला विधायक को मंत्री पद न मिला तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा।

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